पिथौरागढ़
पिथौरागढ़
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विवरण | प्रकृति की गोद में बसा उत्तराखण्ड का यह नगर पहाड़ों के बीच रखे कटोरे जैसा है। |
राज्य | उत्तराखण्ड |
ज़िला | पिथौरागढ़ ज़िला |
स्थापना | 24 फरवरी 1960 |
मार्ग स्थिति | यह शहर सड़क मार्ग द्वारा दिल्ली से 489 कि.मी. तथा टनकपुर से 151 कि.मी. दूरी पर स्थित है। |
प्रसिद्धि | उल्का देवी मंदिर (सिद्धपीठ) |
कैसे पहुँचें | किसी भी शहर से बस और टैक्सी द्वारा पहुँचा जा सकता है। |
हवाई अड्डा, नैनी सैनी | |
टनकपुर रेलवे स्टेशन | |
क्या देखें | उत्तराखण्ड पर्यटन |
क्या खायें | स्थानीय दाल |
क्या ख़रीदें | जूते, ऊन के वस्त्र |
सावधानी | बरसात में भूस्खलन |
गूगल मानचित्र, हवाई अड्डा | |
अन्य जानकारी | पिथौरागढ़ में आप ट्रेकिंग का भी आनन्द ले सकते हैं। |
पिथौरागढ़ उत्तराखंड राज्य का एक नगर है। पिथौरागढ़ उत्तराखण्ड राज्य के पूर्व में स्थित सीमान्त जनपद है। इसके उत्तर में तिब्बत, पूर्व में नेपाल, दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व में अल्मोड़ा, एवं उत्तर-पश्चिम में चमोली ज़िले पड़ते हैं। यह नगर समुद्र तल से 1645 मीटर की उंचाई पर स्थित है। पिथौरागढ़ का क्षेत्रफल 2,788 वर्ग मील है, पिथौरागढ़ का अधिकांश भाग पहाड़ी एवं ऊबड़-खाबड़ है। पिथौरागढ़ एक शासन केंद्र भी है। कुमाऊँ में चंद वंशीय शासन में यह जनपद शक्ति का मुख्य केन्द्र था। कैलाश मानसरोवर की यात्रा का आरंभ इसी जनपद से होता है। यह नगर उनी कपडों और केन के हस्त शिल्प के लिये जाना जाता है। हवाई पट्टी नैनी सैनी टनकपुर कुमांउ मण्डल के जनपद चम्पावत पिथौरागढ और लोहाघाट जाने के लिये अंतिम रेलवे केन्द्र है यहाँ गोरखाओं द्वारा निर्मित 18वी शताब्दी का क़िला जो पिथौरागढ फोर्ट के नाम से जाना जाता है। पहाड़ी भाग होने के कारण पिथौरागढ़ की विशेष उन्नति नहीं हो सकी है।
इतिहास
पिथौरागढ़ का पुराना नाम सोरघाटी है। सोर शब्द का अर्थ होता है-- सरोबर। यहाँ पर माना जाता है कि पहले इस घाटी में सात सरोवर थे। दिन-प्रतिदिन सरोवरों का पानी सूखता चला गया और यहाँ पर पठारी भूमि का जन्म हुआ। पठारी भूमी होने के कारण इसका नाम पिथौरा गढ़ पड़ा, पर अधिकांश लोगों का मानना है कि यहाँ राय पिथौरा की राजधानी थी। उन्हीं के नाम से इस जगह का नाम पिथौरागढ़ पड़ा। राय पिथौरा ने नेपाल से कई बार टक्कर ली थी। यही राजा पृथ्वीशाह के नाम से प्रसिद्ध हुआ।[1]
स्थापना
पिथौरागढ़ अल्मोड़ा जनपद की एक तहसील थी। इसी एक तहसील से 24 फरवरी 1960 को पिथौरागढ़ ज़िला का जन्म हुआ। तथा इस सीमान्त ज़िला पिथौरागढ़ को सुचारु रुप से चलाने के लिए चार तहसीलों (पिथौरागढ़, डीडी घाट, धारचुला और मुन्स्यारी) का निर्माण 1 अप्रैल 1960 को हुआ। इस जगह की महत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली गयी। शासन ने प्रशासन को सुदृढ़ करने हेतु 13 मई 1972 को अल्मोड़ ज़िले से चम्पावत तहसील को निकालकर पिथौरागढ़ में मिला दिया। चम्पावत तहसील कुमाऊँ की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाला क्षेत्र है। कत्यूरी एवं चन्द राजाओं का यह काली कुमाऊँ-चम्पावत वाला क्षेत्र विशेष महत्व रखता है। आठवीं शताबादी से अठारहवीं शताब्दी तक चम्पावत कुमाऊँ के राजाओं की राजधानी रहा है।[1]
तहसील और गाँव
पूर्व में पिथौरागढ़ जनपद में डीडी हाट, धारचूला, मुनस्यारी, चम्पावत और पिथौरागढ़ नामक पाँच तहसीले थीं परन्तु चम्पावत के पृथक् जनपद बन जाने के कारण अब इस जनपद में डीडी हाट, धारचूला, मुनस्यारी, और पिथौरागढ़ नामक चार तहसीले हैं। इन चार तहसीलों में पिथौरागढ़ में पिथौरागढ़, डीडी हाट, कनालीछीना, धारचूला, गंगोलाहाट, मुनस्यारी, बेरीनाग, मुनाकोट, लोहाघाट, चम्पावत, पाटी, बाराकोट नामक बारह विकासखंड हैं जिनमें 87 न्याय पंचायतें, 808 ग्राम सभाएँ और कुल छोटे-बड़े 2324 गाँव हैं।[1]
पर्यटन
पिथौरागढ़ समुद्रतल से 1615 मीटर की उँचाई पर 6.47 वर्ग किलोमीटर की परिधि में बसा हुआ है। इस नगर का महत्व चन्द राजाओं के समय से रहा है। यह नगर सुन्दर घाटी के बीच बसा है। कुमाऊँ पर होने वाले आक्रमणों को पिथौरागढ़ ने सुदृढ़ किले की तरह झेला है। जिस घाटी में पिथौरागढ़ स्थित है, उसकी लम्बाई 8 किमी. और चौड़ाई 15 किमी. है। रमणीय घाटी का मनोहर नगर पिथौरागढ़ सैलानियों का स्वर्ग है।
लिटिल कश्मीर
पिथौरागढ़ को प्रमुख हिल रिजोर्ट के रूप में जाना जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता पर्यटकों को अपनी ओर अधिक आकर्षित करती है। पिथौरागढ़ समुद्र तल से 1,851 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पिथौरागढ़ को लिटिल कश्मीर के नाम से भी जाना जाता है। पिथौरागढ़ सुन्दर - सुन्दर घाटियों का जनपद है। नदी घाटियों का जनपद है। नदी घाटियों में यहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य बिखरा हुआ है। सीढ़ीनुमा खेतों की सुन्दरता पर्यटकों का मन मोह लेती है। यहाँ के पर्वतों की अनोखी अदा सैलानियों को मुग्ध कर देती है। नदियों का कल-कलस्वर प्रकृति प्रेमियों को अलौकिक आनन्द देता है।
कैसे पहुँचे
पिथौरागढ़ पहुँचने के लिए दो मार्ग मुख्य हैं। एक मार्ग टनकपुर से और दूसरा काठगोदाम-हल्द्वानी से है। पिथौरागढ़ का हवाई अड्डा पन्तनगर अल्मोड़ा के मार्ग से 249 किमी. की दूरी पर है। समीप का रेलवे स्टेशन टनकपुर 151 किमी. की दूरी पर है। काठगोदाम का रेलवे स्टेशन पिथौरागढ़ से 212 किमी. की दूरी पर है।
आवास एवं विश्राम गृह
पिथौरागढ़ नगर में पर्यटकों के रहने-खाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है। यहाँ 24 शैयाओं का एक आवासगृह है। वन विभाग और ज़िला परिषद का विश्रामगृह है। इसके अलावा यहाँ आनन्द होटल, धामी होटल, सम्राट होटल, होटल ज्योति, ज्येतिर्मयी होटल, लक्ष्मी होटल, जीत होटल, कार्की होटल, अलंकार होटल, राजा होटल, त्रिशुल होटल आदि कुछ ऐसे होटल हैं जहाँ सैलानियों के लिए हर प्रकार की सुविधाऐं प्रदान करवाई जाती है।
शरदकालीन उत्सव
पर्यटकों के लिए 'कुमाऊँ मंडल विकास निगम' की ओर से व्यवस्था की जाती है। शरद काल में यहाँ एक 'शरद कालीन उत्सव' मनाया जाता है। इस उत्सव मेले में पिथौरागढ़ की सांस्कृतिक झाँकी दिखाई जाती है। सुन्दर-सुन्दर नृत्यों का आयोजन किया जाता है।
क्या ख़रीदें
पिथौरागढ़ में स्थानीय उद्योग की वस्तुओं का विक्रय भी होता है। राजकीय सीमान्त उद्योग के द्वारा कई वस्तुओं का निर्माण होता है। यहाँ के जूते, ऊन के वस्त्र और किंरगाल से बनी हुई वस्तुओं की अच्छी मांग है। सैलानी यहाँ से इन वस्तुओं को ख़रीदकर ले जाते हैं।
मनोरंजन
पिथौरागढ़ में सिनेमा हॉल के अलावा स्टेडियम और नेहरु युवा केन्द्र भी है। मनोरंजन के कई साधन हैं। पिकनिक स्थल हैं। यहाँ पर्यटक जाकर प्रकृति का आनन्द ले सकते हैं।
दर्शनीय स्थल
पिथौरागढ़ और आस पास अनेक इतिहास दर्शनीय स्थल हैं-
उल्का देवी मंदिर
पिथौरागढ़ से एक किलोमीटर की दूरी पर उल्का देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है। लगभग एक किलोमीटर पर राधा-कृष्ण मन्दिर भी दर्शनार्थियों का मुख्य आकर्षण है। इसी तरह एक किलो टर पर राय गुफ़ा और एक ही किलोमीटर की दूरी पर भटकोट का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
थल केदार
थल केदार में शिव का मन्दिर है। पिथौरागढ़ से इसकी दूरी 6 किमी है। यह अत्यन्त सुषमापूर्ण स्थान है। शिवरात्रि के दिन यहाँ पर एक विशाल मेला लगता है। दूर-दूर के यात्री इस अवसर पर यहाँ आते हैं। पिथौरागढ़ में थल मेला का भी विशेष महत्व है। मेले के अवसर पर यहाँ पर नृत्यों का आयोजन भी होता है। अन्य आकर्षक कार्यक्रम भी सम्पन्न किए जाते हैं थल केदार पिथौरागढ से 20 किमी दूर शिवपुरी नामक स्थान पर प्राकृतिक गुफ़ा है जिसका मुहाना अत्यधिक छोटा है और ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से जाने वाला मोटे से मोटा व्यक्ति भी इसे पार कर जाता है और दुर्भावना रखने वाला व्यक्ति चाहे कितना भी दुबला क्यों न हो इस गुफ़ा के मुहाने में फंस जाता है।
चण्डाक
पिथौरागढ़ से केवल 7 किलोमीटर दूर समुद्रतल से 1800 मीटर की ऊँचाई पर चण्डाक नामक रमणीय स्थल स्थित है। पर्यटक चण्डाक जाकर पिकनिक करते हैं। यहाँ की प्राकृतिक छटा अत्यन्त आकर्षक है। चण्डाक से सम्पूर्ण घाटी बहुत साफ़ और आकर्षक दिखाई देती है। पर्यटक सम्पूर्ण घाटी के अद्भुत् सौन्दर्य को देखने हेतु चण्डाक अवश्य आते हैं। आजकल यहाँ मैग्नासाइट के उद्योग लग जाने से इस स्थान का महत्व और भी बढ़ गया है। औद्योगिक नगर के रुप में अब इस स्थान की प्रगति हो रही है।[1]
ध्वज
'ध्वज' पिथौरागढ़ का ध्वज है। यह अत्यन्त सौन्दर्य वाला स्थल है। यहाँ से हिमालय का दृश्य इतना आकर्षक है कि पर्यटन एवं प्रकृति-प्रेमी केवल यहाँ से हिमालय के अद्भुत सुषमा के दर्शन हेतु दूर-दूर से आते है। हिमालय का हिमरूपी चाँदी का-सा भव्य सुकुट दर्शकों को आपार शान्ति देता है। पिथौरागढ़ धारचूला मोटर मार्ग के 18वें किलोमीटर पर समुद्रतल से 2100 मीटर की ऊँचाई पर 'ध्वज' स्थित है। प्रकृति के अत्यन्त लुभावने स्थलों में ध्वज की गिनती की जाती है।[1]
एबट माउंट
पिथौरागढ़-टनकपुर मोटर मार्ग पर लोहाघाट से पहले एबट माउंट का दर्शनीय स्थल आता है। यह स्थल समुद्रतल से 2001 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। लोहाघाट की सीमा में पड़ने वाला यह स्थान कुमाऊँ के अत्यन्त रमणीय स्थलों में गिना जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता इतनी आकर्षक है कि कई महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों ने यहाँ रहने के लिए सुन्दर-सुन्दर बंगले बनवा लिए हैं। पर्वत चोटी के आस-पास ये सभी बंगले आधुनिक सुविधाओं को लेकर बनाये गये हैं। सैलानी एबट माउंट पर जाकर हिमालय के विभिन्न अंचलों के आकर्षक दृश्य देखते हैं। नीचे घाटी की सुषमा भी यहाँ से साफ़ दिखाई देती है।[1]
लोहाघाट
पिथौरागढ़ टनकपुर मोटर - मार्ग के 62वें किलोमीटर की दूरी पर समुद्रतल से 1706 मीटर की ऊँचाई पर लोहाघाट नामक नगर स्थित है। इसके पास ही लोहावती नदी बहती है। लोहाघाट का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। लोहाघाट के आस-पास अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जहाँ पर्यटक घूमते हुऐ दिखाई देते हैं। पर्यटकों के लिए पर्यटन आवासगृह के अलावा सा. नि. विभाग का विश्राम - गृह और ज़िला परिषद का डाक बंगला भी उप लब्ध हो जाता है। इसके अलावा यहाँ पर कुछ होटल भी हैं जहाँ रहने और खाने का सुन्दर व्यवस्था हो जाती है। लोहाघाट में कॉलेज, बैंक, डाकघर के अलावा एक छोटा सा परन्तु आकर्षक बाज़ार है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
“खण्ड 7”, हिन्दी विश्वकोश, 1966 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 221।
बाहरी कड़ियाँ
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