अनीता कुंडू

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अनीता कुंडू
अनीता कुंडू
अनीता कुंडू
पूरा नाम अनीता कुंडू
जन्म 8 जुलाई, 1991
जन्म भूमि हिसार, हरियाणा
अभिभावक माता- राजपति देवी
कर्म भूमि भारत
खेल-क्षेत्र पर्वतारोहण
पुरस्कार-उपाधि तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार, 2019

कल्पना चावला पुरस्कार

प्रसिद्धि भारतीय महिला पर्वतारोही
नागरिकता भारतीय
विशेष अनीता कुंडू पहली महिला पर्वतारोही हैं, जिन्होंने विश्व के सबसे ऊंचे पर्वत एवरेस्ट पर नेपाल और चीन दोनों तरफ़ से चढ़ाई पूरी की है।
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अनीता कुंडू (अंग्रेज़ी: Anita Kundu, जन्म- 8 जुलाई, 1991, हिसार, हरियाणा) भारत की प्रसिद्ध पर्वतारोही हैं। वह पहली महिला पर्वतारोही हैं, जिन्होंने विश्व के सबसे ऊंचे पर्वत एवरेस्ट पर नेपाल और चीन दोनों तरफ़ से चढ़ाई पूरी की है। हरियाणा के हिसार की रहने वाली अनीता कुंडू सब-इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हैं। अनीता कुंडू को प्रतिष्ठित 'तेनज़िंग नोर्गे नेशनल अवार्ड-19' से भी सम्मानित गया है। यह पुरस्कार उन्हें एक वर्चुअल प्रोग्राम में भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों दिया गया। अनीता कुंडू ने यह अवार्ड ‘लैंड ऐडवेंचर’ कैटेगरी में जीता है।

परिचय

अनीता कुंडू के लिए काम कुछ भी था, लेकिन आसान नहीं था। गरीबी, नुकसान और निराशा से घिरे बचपन से लेकर अपने आप में एक वास्तविक पर्वतारोही बनने तक वह पुरुषों और महिलाओं के लिए समान रूप से प्रेरणा बन गई हैं। 8 जुलाई, 1991 को हरियाणा के हिसार में एक किसान परिवार में जन्मी अनीता कुंडू का प्रारंभिक बचपन घोर गरीबी में गुजरा था।[1]

पिता की नृत्यु

13 साल की उम्र में अपने पिता को खोने के बाद अनीता कुंडू को उनके रिश्तेदारों द्वारा लगातार शादी करने के लिए मजबूर किया गया। वह अफसोस करती हैं और कहती हैं- मेरे पिताजी में एक जुनून था। मैं घर का सबसे बड़ा बच्चा थी और मेरे पिताजी चाहते थे कि मैं एक अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज बनूं। जब मैं 12 साल की थी, तब मैंने बॉक्सिंग क्लास भी ज्वाइन कर ली थी, लेकिन पिता की मौत ने सब कुछ बदल दिया।

मुक्केबाज़ी

एक स्थानीय अखाड़े में बॉक्सिंग सीखने से लेकर अनीता कुंडू का जीवन पूरी तरह से उथल-पुथल भरा रहा। अनीता ने शादी करने के विचार को सिरे से खारिज कर दिया और घर की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। आय का कोई स्रोत नहीं होने के कारण, अनीता और उसकी माँ राजपति देवी ने दूध बेचना शुरू कर दिया और खेती में लग गए।

पुलिस की नौकरी

अनीता कुंडू बताती हैं कि किशोरावस्था के दौरान उन्हें और उनके परिवार को पड़ोसियों और रिश्तेदारों द्वारा मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, जो अनीता को शादी के लिए बोलते रहते थे। जिसे वह इनकार करती रहीं। वर्षों के संघर्ष के बाद उन्होंने आखिरकार 2008 में एक सफलता हासिल की। जब उन्हें हरियाणा पुलिस में नौकरी मिली और जिंदगी पटरी पर लौटने लगी। हरियाणा पुलिस में प्रशिक्षण के दौरान ही उन्हें पर्वतारोहण में रुचि हुई। वह एक ऐसे क्षेत्र पर हावी हो गईं जो पुरुषों के गढ़ के रूप में अधिक जाना जाता था और तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा।[1]

पर्वतारोहण

अनीता कुंडू

हरियाणा पुलिस में प्रशिक्षण के दौरान रॉक क्लाइम्बिंग के विचार ने अनीता कुंडू को आकर्षित किया और वह इसके बारे में ओर जानने कोशिश करने लगीं। हालांकि, उस समय उनके आस-पास के लोगों ने यह कहकर हतोत्साहित किया कि यह खेल महिलाओं के लिए नहीं है। बेफिक्र और दृढ़ निश्चयी अनीता कुंडू ने अपने डीजीपी से मदद मांगी, जिन्होंने उन्हें पर्वतारोहण और उन्नत रॉक-क्लाइम्बिंग सीखने की अनुमति दी और उन्हें रॉक-क्लाइम्बिंग सीखने के लिए 2009 में उन्हें भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में स्थानांतरित कर दिया गया। जहाँ उन्होंने पर्वतारोहण में कई उन्नत पाठ्यक्रम किए, जैसे- वजन प्रशिक्षण, उच्च ऊंचाई पर दौड़ना, जंगल में जीवित रहने के कौशल से लेकर भोजन या पानी के बिना जीवित रहना आदि। यहाँ उन्हें सबसे कठिन प्रशिक्षण से गुजरना पड़ा।

एवरेस्ट पर विजय

अनीता कुंडू ने एक ऐसे खेल में काम किया, जिसमें यकीनन महिलाओं की तुलना में पुरुषों का अधिक वर्चस्व है और आखिरकार वह अपनी योग्यता साबित कर सकीं। 2009 और 2011 के बीच अनीता ने माउंट सतोपंथ और माउंट कोकस्टेट सहित भारत के कुछ सबसे तकनीकी और चुनौतीपूर्ण शिखरों पर चढ़ाई की। अनीता पहली बार 2013 में नेपाल की ओर से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए 6 सदस्यीय टीम के साथ दो महीने के अभियान पर गई थीं। उन्हें एक महिला पर्वतारोही होने के साथ-साथ शाकाहारी होने की सभी बाधाओं का सामना करना पड़ा। ठंड के मौसम के कारण आप दो महीने तक स्नान नहीं कर सकते हैं। उन्हें सूखे मेवे, सूप और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों पर जीवित रहना पड़ा।

नेपाल की ओर से सफलतापूर्वक चोटी पर चढ़ने के बाद अनीता कुंडू ने पहली बार 2015 में चीन की ओर से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयास किया। दुर्भाग्य से भूकंप तब आया, जब वह लगभग 22,000 फीट की ऊंचाई पर थीं। उनकी टीम के कुछ सदस्य भूकंप से नहीं बच सके और रेस्क्यू टीम के पहुंचने से पहले ही कई लोग घायल हो गए थे। वह बताती हैं, 'मेरे साथ रहने वाले लोगों में से कोई भी कभी वापस नहीं गया। लेकिन अनीता 2017 में एक और प्रयास करने के लिए लौट आईं और 21 मई, 2017 को शिखर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने में सफल रहीं।[1]

इसके बाद अनीता कुंडू सेवन समिट्स पर चढ़ने के मिशन पर निकलीं, जिसमें सात महाद्वीपों में से प्रत्येक के सबसे ऊंचे पहाड़ शामिल हैं और वर्ष 2021 में दुनिया के प्रत्येक महाद्वीप के सबसे ऊंचे शिखर पर तिरंगा फहराकर देश का नाम रौशन किया। वह दुनिया की उन सभी 14 चोटियों पर भी चढ़ना चाहती हैं, जिनकी ऊंचाई 8000 मीटर से अधिक है।

विजयी चोटियाँ

12 साल से पर्वतारोहण कर रही अनीता ने माउंट एवरेस्ट 3 बार, अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी विनसन मासिफ, अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो, यूरोप के सबसे ऊंचे शिखर एल्बर्स, दक्षिण अमेरिका की एकोनकागुआ, ऑस्ट्रेलिया की कार्सटेंस पिरामिड शिखर, उत्तराखंड में स्थित रुदुगैरा के 5800 मीटर ऊंचे शिखर को फतेह किया है। उतरी अमेरिका की देनाली पर भी उन्होंने संघर्ष किया। माउंट एवरेस्ट के समान ही माउंट मनास्लू को भी अनीता ने फतेह किया है। इन उपलब्धियों के लिए अनीता को तेनजिंग नोर्गे नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।[2]

सम्मान एवं पुरस्कार

  1. तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार, 2019
  2. कल्पना चावला पुरस्कार


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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