माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट एशिया में नेपाल और चीन (तिब्बत) की सीमा पर स्थित वृहद हिमालय पर्वत श्रृंखला का सर्वोच्च शिखर है। यह पृथ्वी का सर्वोच्च स्थल है। माउंट एवरेस्ट को संस्कृत में देवगिरि, तिब्बती में चोमोलुंग्मा, चीनी भाषा (रोमनीकृत) में चु-मु-लांग-मा-फेंग, (पिनयिन) कोमोलांग्मा फेंग, नेपाली में सगरमाथा कहते हैं।
भौतिक विशेषताएँ
हिमालय के दक्षिण-पूर्व, पूर्वोत्तर तथा पश्चिम के तीन बंजर कटक ऊपर उठाते हुए दो शिखरों का निर्माण करते हैं; पहला 8,848 मीटर (एवरेस्ट) और दूसरा 8,748 मीटर (साउथ पीक) ऊँचा शिखर है। इस पर्वत को इसके पूर्वोत्तर पक्ष से, जो तिब्बत के पठार से 3,600 मीटर ऊपर उठता है, सीधे देखा जा सकता है। इससे कुछ मोटे शिखर चांगत्से (उत्तर, 7,560 मीटर), खूंबुत्से (पश्चिमोत्तर, 6,655 मीटर), नुपत्से (दक्षिण-पश्चिम, 7,861 मीटर) तथा ल्होत्से (दक्षिण, 8,501 मीटर) हैं, जो इसके आधार के चारों ओर ऊपर उठते हुए एवरेस्ट को नेपाल की तरफ से आँख से ओझल कर देते हैं। एवरेस्ट शिखर की ओर जाने वाले मार्ग का दो-तिहाई भाग पृथ्वी के वायुमंडल के उस हिस्से में है, जहाँ ऑक्सीजन का स्तर कम है। ऊपरी ढलानों पर ऑक्सीजन की कमी, तेज़ हवाओं तथा अत्यधिक ठंड के कारण किसी प्रकार का वानस्पतिक या प्राणी जीवन सम्भव नहीं है। ग्रीष्मकालीन मानसून (मई से सितम्बर) के दौरान हिमपात होता है। पर्वत के किनारे मुख्य कटक द्वारा एक-दूसरे से अलग हैं। पर्वत की ढलानों पर आधार तक बर्फ़ की चादर बिछी रहती है। शिखर चट्टानों की तरह कठोर बर्फ़ से बना है और उसके ऊपर बर्फ़ की जो परतें जमी हैं, उनकी ऊँचाई वर्ष भर में 1.5 से 2 मीटर तक बढ़ती-घटती रहती है। शिखर की ऊँचाई सितम्बर में सबसे ज़्यादा तथा मई में पश्चिमोत्तर से बहकर आने वाली जाड़े की तेज़ हवा के कारण घटकर सबसे कम रह जाती हैं।
हिमनद
माउंट एवरेस्ट के आसपास बहने वाले प्रमुख स्वतंत्र हिमनद (ग्लेशियर) हैं-
- पूर्व में कांगशुंग
- पूर्व, मुख्य तथा पश्चिम रोंगबक हिमनद (उत्तर व पश्चिमोत्तर)
- पुमोरी हिमनद (पश्चिमोत्तर)
- खुंबू हिमनद (पश्चिम तथा दक्षिण)
- ल्होत्से-नुपत्से कटक
- एवरेस्ट के बीच की बर्फ़ की घाटी पश्चिमी क्वम।
जल निकास
पर्वत की जल निकास प्रणाली शिखर से दक्षिण-पश्चिम, उत्तर तथा पूर्व की तरफ़ उन्मुख है। खुंबू हिमनद पिघलकर नेपाल की लोबुज्या (लोबुचे) नदी में परिवर्तित हो जाता है, जो आगे दूध कोसी नदी में समाहित होने से पहले दक्षिण-पश्चिम में इम्जा नदी कहलाती है। तिब्बत में रोंग-चू नदी पुमोरी और रोंगबक हिमनदों से निकलती है तथा कर्माचु नदी कांशशुंग हिमनद से निकलती है। रोंग-चू और दूध कोसी नदी की घाटियाँ क्रमश: शिखर के लिए उत्तरी तथा दक्षिणी सम्पर्क मार्ग बनाती हैं।
अध्ययन एवं खोज
माउण्ट एवरेस्ट स्थानीय लोगों के लिए पूजनीय है। इसके तिब्बती व नेपाली नामों का अर्थ विश्व की मातृदेवी है। 1852 में भारत सरकार द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण से इस तथ्य को स्थापित किये जाने तक इसे पृथ्वी की सतह पर सर्वोच्च शिखर के रूप में मान्यता नहीं मिली थी। पहले यह शिखर पीक XV के नाम से जाना जाता था। 1830 से 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल रहे थे अंग्रेज़ कर्नल सर जॉर्ज एवरेस्ट। आधुनिक भूगणितीय सर्वेक्षण की नींव भारत में उन्होंने ही रखी थी। दक्षिण की कन्याकुमारी से लेकर उत्तर की मसूरी तक हिमालयी पर्वत श्रेणी के वृत्तांश (meridional ark) को मापने जैसा असंभव सा कार्य सर्वप्रथम उन्होंने ही किया था। उनके इसी बहुमूल्य तथा मौलिक कार्य के कारण 1865 में हिमालय के सर्वोच्च शिखर का नाम उनके नाम पर रखा गया था। गुरुत्वाकर्षण परिवर्तनों तथा प्रकाश अपवर्तन के कारण बदलते बर्फ़ के स्तर की वजह से शिखर की सही ऊँचाई अक्सर एक विवाद का विषय बनी। वर्तमान में मान्य 8,848 मीटर[1] की ऊँचाई 1952 से 1954 के बीच सर्वे ऑफ़ इंडिया द्वारा स्थापित की गई।
- शिखर पर विजय
एवरेस्ट शिखर पर विजय के प्रयास 1920 में तिब्बत की तरफ़ के रास्ते के खुलने के बाद शुरू हुए। पूर्वोत्तर कग़ार की तरफ़ से शिखर पर पहुँचने के लगातार सात प्रयास (1921-38) और दक्षिण-पूर्वी कग़ार की तरफ़ से तीन प्रयास (1951-52) ठंडी-शुष्क तेज़ हवाओं, बीहड़ क्षेत्र तथा अत्यधिक ऊँचाई के कारण विफल रहे।
अन्तत: 1953 में रॉयल जिओग्रैफ़िकल सोसाइटी तथा अल्पाइन क्लब की जौएण्ट हिमालयन कमिटी के प्रयासों से एवरेस्ट पर विजय प्राप्त कर ली गई। इस जीत में पर्वतारोहियों ने खुली तथा बन्द सर्किट ऑक्सीजन प्रणाली, बाहरी वातावरण से अप्रभावित रहने वाले विशेष प्रकार के जूते व पोशाक और छोटे रेडियो उपकरणों का प्रयोग किया था। पर्वतारोहियों के द्वारा इस अभियान मार्ग में आठ शिविर स्थापित किये गए तथा यह मार्ग खुंबू हिमप्रपात व हिमनद, वेस्ट सी. डब्ल्यू. एम. और ल्होत्से से होते हुए 8,000 मीटर की ऊँचाई पर चट्टानी शिखर साउथ कोल तक पहुँचता था। यहाँ से 29 मई 1953 को दो पर्वतारोहियों न्यूज़ीलैण्ड के एडमंड हिलेरी (बाद में सर एडमंड) तथा नेपाल के शेरपा तेनज़िंग नोर्गे दक्षिण-पूर्वी कग़ार से बढ़ते हुए दक्षिणी शिखर और फिर चोटी तक पहुँचे। इसके बाद से अब तक लगभग पौने चार हज़ार पर्वतारोहियों ने यह प्रयास किया है, जिनमें 2,436 सफल रहे, 210 की रास्ते में ही मौत हो गई और शेष पर्वतारोहण अधूरा छोड़ कर लौट आए।
- एवरेस्ट अभियान
अमेरिका का पहला सफल एवरेस्ट अभियान 1963 में हुआ। इस दल के जेम्स डब्ल्यू व्हिटेकर तथा नेपाल के नावांग गोंबू शिखर पर सबसे पहले (1 मई) पहुँचे। चार पर्वतारोही इस चोटी पर 22 मई को पहुँचे, जिनमें थॉमस एफ़. हॉर्नबिन तथा विलियम एफ़. अनसोल्ड एवरेस्ट पर उस पश्चिमी पर्वतश्रेणी के रास्ते चढ़े, जहाँ से पहले कोई भी नहीं चढ़ पाया था। यह जोड़ी साउथ कोल की तरफ़ से नीचे उतरी और विपरीत रास्तों का इस्तेमाल करने वाली पहली पर्वतारोही जोड़ी बनी। इसके बाद तो विभिन्न देशों द्वारा संचालित कई अभियान दल एवरेस्ट पर पहुँच चुके हैं। जापानी दल की ताबेई जुनको तथा नेपाल की अंग त्सेरिंग शिखर पर पहुँचने वाली (16 मई, 1975) पहली महिलाएँ थीं। दो ब्रिटिश पर्वतारोही 25 सितम्बर, 1975 को पहली बार दक्षिण-पश्चिम दिशा से तथा दो जापानी उत्तरी दीवार की तरफ़ से शिखर पर पहुँचे।
समाचार
20 मई, 2011, शुक्रवार
नया रिकॉर्ड, 45 की उम्र में एवरेस्ट फ़तह
झारखंड की पर्वतारोही प्रेमलता अग्रवाल ने दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली सबसे उम्रदराज़़ भारतीय महिला होने का गौरव हासिल करते हुए पर्वतारोहण के क्षेत्र में एक नया इतिहास रचा। 45 की उम्र में प्रेमलता अग्रवाल ने गुरुवार रात लगभग 26000 फुट की ऊंचाई पर स्थित चौथे शिविर से चढ़ाई शुरू कर शुक्रवार सुबह पौने दस बजे क़रीब 29000 पुट ऊंची एवरेस्ट पर सफलता पूर्वक तिरंगा फहरा दिया। उनके इस अभियान में सहयोग करने वाले टाटा स्टील ने प्रेमलता को इस उपलब्धि पर बधाई दी है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आंशिक कम या ज़्यादा की गुंज़ाइश के साथ
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