विष्णु-वन्दना

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सशंखचक्रं सकिरीटकुण्डलं
सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्।
सहारवक्ष:स्थलकौस्तुभश्रियं
नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम्।।

सर्वरूप हरि-वन्दन

यं शैवा: समुपासते शिव इति ब्रह्मेति वेदान्तिनो
बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटव: कर्तेति नैयायिका:।
अर्हन्नित्यथ जैनशासनरता: कर्मेति मीमांसका:
सोऽयं लो विदधातु वांछितफलं त्रैलोक्यनाथो हरि:।।

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