बिहार का भूगोल

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भू-आकृती

प्राकृतिक रूप से यह राज्य गंगा नदी द्वारा दो भागों में विभाजित है, उत्तर बिहार मैदान और दक्षिण बिहार मैदान। सुदूर पश्चिमोत्तर में हिमालय की तराई को छोड़कर गंगा का उत्तरी मैदान समुद्र तल से 75 मीटर से भी कम की ऊँचाई पर जलोढ़ समतली क्षेत्र का निर्माण करता है और यहाँ बाढ़ आने की संभावना हमेशा बनी रहती है। घाघरा गंडक, बागमती, कोसी, महानंदा और अन्य नदीयाँ नेपाल में हिमालय से नीचे उतरती हैं और अलग-अलग जलमार्गों से होती हुई गंगा में मिलती हैं। झीलों और गर्त लुप्त हो चुकी इन धाराओं के प्रमाण हैं। विनाशकारी बाढ़ लाने के लिए लंबे समय तक 'बिहार का शोक' मानी जाने वाली कोसी नदी अब कृत्रिम पोतारोहणों में सीमित हो गई है। उत्तरी मैदान की मिट्टी ज़्यादातर नई कछारी मिट्टी है, जिसमें बूढ़ी गंडक नदी के पश्चिम में खड़ियायुक्त व हल्की कण वाली (ज़्यादातर दोमट बलुई) और पूर्व में खड़ियामुक्त व भारी कण वाली (दोमट चिकनी) मिट्टी है। हिमालय के भूकंपीय क्षेत्र में स्थित होने के कारण यह क्षेत्र एक अन्य प्राकृतिक आपदा (भूकंपीय गतिविधियों) से प्रभावित है। 1934 और 1988 के भीषण भूकंप ने भारी तबाही हुई और जानमाल को क्षति पहुँची।

दक्षिण-पश्चिम में सोन घाटी के पार स्थित कैमूर पठार में क्षैतिज बलुकाश्म की परत चूना-पत्थर की परतों से ढ़की है। उत्तर के मुक़ाबले दक्षिण गांगेय मैदान ज़्यादा विविध है और अनेक पहाड़ियों का उत्थान कछारी सतह से होता है। सोन नदी को छोड़कर सभी नदीयाँ छोटी हैं, जिनके जल को सिंचाई नहरों की ओर मोड़ दिया जाता है। यहाँ की मृदा काली चिकनी या पीली दोमट मिट्टी से संघटित अपेक्षाकृत पुरानी जलोढ़ीय है। यह ख़ासकर क्षेत्र के दक्षिण की ओर अनुर्वर व रतीली है।


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