रॉबर्ट क्लाइव

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रॉबर्ट क्लाइब ब्रिटिश सेना में एक सैनिक के पद पर तैनात हुआ था, किन्तु अपनी सूझबूझ, समझदारी और बुद्धि से उसने एक बहुत ऊँचा पद प्राप्त कर लिया था। रॉबर्ट क्लाइब का जन्म 29 सितम्बर, 1725 ई. में हुआ था। क्लाइब ने भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को मुख्य रूप से मजबूती प्रदान की थी। क्लाइब ने ही अपनी उच्च महत्त्वाकांक्षाओं और कूटनीति से सम्पूर्ण भारत को अंग्रेज़ों का गुलाम बनाने में मुख्य भूमिका निभाई थी। पहले प्लासी का युद्ध और फिर बक्सर आदि के कई युद्धों को जीतकर क्लाइब ने भारत में ब्रिटिश सत्ता को मजबूती प्रदान कर दी थी। भारत में मुग़लों का वर्चस्व समाप्त करने में भी क्लाइब का बड़ा योगदान था।

भारत आगमन

रॉबर्ट क्लाइब कम्पनी के एक 'क्लर्क' (लिपिक) के रूप में भारत आया था। उसे मुख्य रूप से गवर्नर को पत्र आदि लिखने के कार्य के लिये रखा गया था। वह सदैव अपने साथ तलवार, बन्दूक़ और एक घोड़ा रखता था। क्लाइब को आवश्यकता के अनुसार सैनिकों को कहीं पर भी भेजने और युद्ध लड़ने के अधिकार भी प्राप्त थे। पहली बार वह 1757-1760 ई. और फिर दूसरी बार 1765-1767 ई. तक वह बंगाल का गवर्नर रहा था।

कार्यकाल

भारत में अपने कार्यकाल के दौरान रॉबर्ट क्लाइब ने बंगाल में अंग्रेज़ों की स्थिति अत्यंत ही दृढ़ कर दी थी। बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुग़ल सम्राट शाहआलम द्वितीय, इन तीनों को ही क्लाइब की सूझबूझ, चालाकी और कूटनीति ने परास्त कर दिया था। 23 जून, 1757 ई. को प्लासी का युद्ध और 1764 ई. में बक्सर का युद्ध जीतकर क्लाइब ने बंगाल में ब्रिटिश हुकूमत के विरोध को पूर्णतया समाप्त कर दिया था। 1757 से 1760 ईं. तक बंगाल का गर्वनर रहने के बाद क्लाइव 1760 ई. में इंग्लैंड लौट गया। उसके पश्चात् बंगाल का स्थानापन्न गर्वनर 'होलवेल' बना। तत्पश्चात् 'वेन्सिटार्ट' बंगाल का गर्वनर बना। बक्सर की विजय के उपरान्त क्लाइव को पुनः भारत में अंग्रेज़ी प्रदेशों का मुख्य सेनापति तथा गर्वनर बनाकर भेजा गया था। 10 अप्रैल, 1765 को क्लाइव ने दूसरी बार मद्रास की धरती पर पैर रखा था और 3 मई, 1765 को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में कार्यभार ग्रहण किया।

इलाहाबाद की सन्धियाँ

क्लाइव ने 12 अगस्त, 1765 को मुग़ल सम्राट शाहआलम द्वितीय से इलाहाबाद में एक सन्धि की, जिसकी शर्तों के अनुसार- कम्पनी को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई। सम्राट शाहआलम के लिए इलाहाबाद तथा कड़ा के ज़िले एवं कम्पनी द्वारा प्रति वर्ष 26 लाख रुपये वार्षिक पेंशन देने की व्यवस्था की गई। कम्पनी ने अवध के नवाब से कड़ा और मनिकपुर छीनकर मुग़ल बादशाह को दे दिया। इसे 'इलाहाबाद की पहली सन्धि' के नाम से जाना जाता है। क्लाइव ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ 16 अगस्त, 1765 को एक सन्धि की, जिसे 'इलाहाबाद की दूसरी सन्धि' के रूप में जाना जाता है। सन्धि की शर्तों के अनुसार- नवाब ने इलाहाबाद व कड़ा के ज़िले शाहआलम द्वितीय को देने का वायदा किया और युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए उसने कम्पनी को 50 लाख रुपये भी देने का वायदा किया। इन दोनों सन्धियों के सम्पन्न हो जाने पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थिति अत्यन्त ही मजबूत हो गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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