अरिष्ट

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वाल्मीकि रामायण सुन्दर काण्ड[1] के अनुसार लंका में समुद्रतट पर स्थित एक पर्वत, जिस पर चढ़कर हनुमान ने लंका से लौटते समय, समुद्र को कूद कर पार किया था-

'आरुरोह गिरिश्रेष्ठमरिष्टमरिमर्दन:,
तुंगपद्मकजुष्टाभिर्नीलाभिर्वनराजिभि:'।

इसी के सामने भारत में समुद्र के दूसरे तट पर महेंद्र पर्वत की स्थिति थी।[2] हनुमान के अरिष्ट पर आरूढ़ होने के पश्चात् इस पर्वत की दशा की अद्भुत वर्णन वाल्मीकि ने किया है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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