सुमुखि सवैया

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सुमुखि सवैया सात जगण और लघु-गुरु से यह छन्द बनता है; 11, 12 वर्णों पर यति होती है। मदिरा सवैया आदि में लघु वर्ण जोड़ने से यह शब्द बनता है। *"सखीन सों देत उराहनो नित्य, सो चित्त सँकोच सने लहिये।" [1]

  • "अनन्य हिमांशु, सदा तरुणीजन की परिरम्भण-शीतलता।"[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. देव : शब्द रसायन, प्र. 10 : पृष्ठ 152
  2. चन्द्राकार

धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 740।

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