दादाजी कोंडदेव
दादाजी कोंण्डदेव या 'खोंडदेव' एक मराठा ब्राह्मण और महान मराठा नेता शिवाजी (1627-1680 ई.) के गुरु और अभिभावक थे। उन्होंने अपने शिष्य शिवाजी के मन में बचपन से ही साहस और पराक्रम के उदात्त भाव के साथ-साथ प्राचीन भारत के महान हिन्दू वीरों के प्रति श्रद्धा की भावना भरी। कोंण्डदेव ने गायों और ब्राह्मणों को पूज्य बताया था।
शिवाजी के गुरु
दादाजी कोंण्डदेव का जन्म महाराष्ट्र के 'डाउंड' गाँव में हुआ था। सौभाग्यवश शिवाजी के दादा मालोजी राजे भोसले उसी गाँव के पाटिल थे। उन्होंने युवा दादाजी कोंण्डदेव की ईमानदारी और बुद्धिमत्ता को पहचाना और उन्हें बारामती क्षेत्र का हवलदार नियुक्त कर दिया, जो हाल ही में मालोजी के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में शामिल किया गया था। इस समय शिवाजी की उम्र आठ वर्ष थी, और वे अपने पिता से संस्कृत और युद्ध कला के प्रारंभिक गुर सीख चुके थे। दादोजी कोंण्डदेव ने 1636 ई. से लेकर 1646 ई. तक शिवाजी की शिक्षा और उनकी युद्ध कला को तराशने का कार्य किया। इस दौरान उन्होंने व्यक्तिगत रूप से शिवाजी को युद्ध कौशल और युद्ध नीति के अनेक गुर सिखाए और इसके अलावा अन्य योग्य शिक्षकों की भी नियुक्ति की, जिनसे उन्होंने तलवारबाजी और घुड़सवारी के गुर सीखे।
निधन
कोंण्डदेव की दी हुई शिक्षाओं से ही प्रेरित होकर शिवाजी ने भारत में स्वराज्य स्थापित करने का संकल्प किया। दादाजी खोंडदेव ने शिवाजी के छोटे-से राज्य का शासन सुव्यवस्थित करके उसकी भावी राजस्व प्रणाली की आधारशिला रखी थी। 1647 ई. में दादाजी कोंण्डदेव की मृत्यु हो गई। उस समय उनकी उम्र 72 साल थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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