पंच महायज्ञ
पंच महायज्ञ हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्त्वपूर्ण बताये गए हैं। धर्मशास्त्रों ने भी हर गृहस्थ को प्रतिदिन पंच महायज्ञ करने के लिए कहा है। नियमित रूप से इन पंच यज्ञों को करने से सुख-समृद्धि व जीवन में प्रसन्नता बनी रहती है। इन महायज्ञों के करने से ही मनुष्य का जीवन, परिवार, समाज शुद्ध, सदाचारी और सुखी रहता है।
पंच यज्ञ की महत्ता
पर्याप्त धन-धान्य होने पर भी अधिकांश परिवार दु:खी और असाध्य रोगों से ग्रस्त रहते हैं, क्योंकि उन परिवारों में पंच महायज्ञ नहीं होते। मानव जीवन का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति है। इन चारों की प्राप्ति तभी संभव है, जब वैदिक विधान से पंच महायज्ञों को नित्य किया जाये। पंच महायज्ञ का उल्लेख 'मनुस्मृति' में मिलने पर भी उसका मूल यजुर्वेद के शतपथ ब्राह्मण हैं। इसीलिये ये वेदोक्त है। जो वैदिक धर्म में विश्वास रखते हैं, उन्हें हर दिन ये 5 यज्ञ करते रहने के लिए मनुस्मृति[1] में निम्न मंत्र दिया गया है-
'अध्यापनं ब्रह्म यज्ञः पित्र यज्ञस्तु तर्पणं |
होमोदैवो बलिर्भौतो न्रयज्ञो अतिथि पूजनं ||
प्रकार
मानव जीवन के लिए जो पंच महायज्ञ महत्त्वपूर्ण माने गये हैं, वे निम्नलिखित हैं-
- ब्रह्मयज्ञ (स्वाध्याय)
- देवयज्ञ (होम)
- पितृयज्ञ (पिंडक्रिया)
- भूतयज्ञ (बलि वैश्वेदेव)
- अतिथियज्ञ (अतिथिसत्कार)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मनुस्मृति, 3-70
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