जीवाणु
जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छङा, आदि आकार की हो सकती है। ये प्रोकैरियोटिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते है।
ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में[1], जल में,भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाएं जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाएं जाते हैं.[2] जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है।[3] ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलिए नाइट्रोजन के स्थीरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधे जातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है।[4] जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्मजैविकी की ही एक शाखा है।
मानव शरीर में जितनी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा अधिक तो जीवाणु कोष है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहारनाल में पाएं जाते हैं। [5] हानिकारक जीवाणु इम्मयुन तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर का नुकसान नही पहुंचा पाते है। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि. सिर्फ क्षय रग से प्रतिवर्ष लगभग २० लाख लोग मरते हैं जिनमें से अधिकांश उप-सहारा क्षेत्र के होते हैं। [6] विकसित देशों में जीवाणुओं के संक्रमण का उपचार करने के लिए तथा कृषि कार्यों में प्रतिजैविक का उपयोग होता है, इसलिए जुवाणुओं में इन प्रतिजैविक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक शक्ति विकसित होती जा रही है। औद्दोगिक क्षेत्र में जीवाणुओं के किण्वन क्रिया द्वारा दही, पनीर इत्यादि वस्तुओं का निर्माण होता है। इनका उपयोग प्रतिजैविकी तथा और रसायनों के निर्माण में तथा जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होता है।[7]
पहले जीवाणुओं को पैधा माना जाता था परंतु अब उनका वर्गीकरण प्रोकैरियोट्स के रुप में होता है। दुसरे जन्तु कोशिकों तथा यूकैरियोट्स की भांति जीवाणु कोष में पूर्ण विकसीत केन्द्रक का सर्वथा आभाव होता है जबकि दोहरी झिल्ली युक्त कोसिकांग यदा कदा ही पाएं जाते है। पारंपरिक रूप से जीवाणु शब्द का प्रयोग सभी सजीवों के लिए होता था, परंतु यह वैज्ञानिक वर्गीकरण १९९० में हुए एक खोज के बाद बदल गया जिसमें पता चला कि प्रोकैरियोटिक सजीव वास्तव में दो भिन्न समूह के जीवों से बने है जिनका क्रम विकाश एक ही पूर्वज से हुआ. इन दो प्रकार के जीवों को जीवाणु एवं आर्किया कहा जाता है।[8]
इतिहास
जीवाणुओं को सबसे पहले डच वैज्ञानिक एण्टनी वाँन ल्यूवोनहूक ने १६७६ ई. में अपना ही बनाएं एकल लेंस सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखा,[9] पर उस समय उसने इन्हें जंतुक समझा था। उसने रायल सोसाइटि को अपने अवलोकनों की पुष्टि के लिए कई पत्र लिखें।[10][11][12] १६८३ ई. में ल्यूवेनहॉक ने जीवाणु का चित्रण कर अपने मत की पुष्टि की। १८६४ ई. में फ्रांसनिवासी लूई पाश्चर तथा १८९० ई. में कोच ने यह मत व्यक्त किया कि इन जीवाणुओं से रोग फैलते हैं।[13] पाश्चर ने १९८९ में प्रयोंगो द्वारा दिखाया कि किण्वन की रासायनिक क्रिया सुक्ष्मजीवों द्वारा होती है। कोच सूक्ष्मजैविकी के क्षेत्र में युगपुरूष माने जाते हैं, इन्होंने कॉलेरा, ऐन्थ्रेक्स तथा क्षय रोगो पर गहन अध्ययन किया। अंततः कोच ने यह सिद्ध कर दीया कि कई रोग सूक्ष्मजीवों के कारण होते हैं। इसके लिए १९०५ ई. में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[14] कोच न रोगों एवं उनके कारक जीवों का पता लगाने के लिए कुछ परिकल्पनाएं की थी जो आज भी इस्तेमाल होती हैं।[15] जीवाणु कई रोगों के कारक हैं यह १९वीं शताब्दी तक सभी जान गएं परन्तु फिर भी कोई प्रभावी प्रतिजैविकी की खोज नहीं हो सकी।[16] सबसे पहले प्रतिजैविकी का आविष्कार १९१० में पॉल एहरिच ने किया। जिससे सिफलिस रोग की चिकित्सा संभव हो सकी।[17] इसके लिए १९०८ ई. में उन्हें चिकित्साशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। इन्होंने जीवाणुओं को अभिरंजित करने की कारगार विधियां खोज निकाली, जिनके आधार पर ग्राम स्टेन की रचना संभव हुई।[18]
उत्पत्ति एवं क्रमविकास
आधुनिक जीवाणुओं के पूर्वज वे एक कोशिकीय सूक्ष्मजीव थें जिनकी उत्पत्ति ४० करोड़ वर्षों पूर्व पृथ्वीं पर जीवन के प्रथम रूप में हुई। लगभग ३० करोड़ वर्षों तक पृथ्वीं पर जीवन के नाम पर सूक्ष्मजीव ही थे। इनमें जीवाणु तथा आर्किया मुख्य थें।[19][20] स्ट्रोमेटोलाइट्स जैसे जीवाणुओं के जीवाश्म पाये गएं हैं परन्तु इनकी अस्पष्ट बाह्य संरचना के कारण जीवाणुओं को समझनें में इनसे कोई खास मदद नहीं मिली।
संदर्भ
- ↑ साँचा:Cite journal
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- ↑ 2002 WHO mortality data। {{{publisher}}}। अभिगमन तिथि: 2007-01-20।
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- ↑ Pasteur's Papers on the Germ Theory LSU Law Center's Medical and Public Health Law Site, Historic Public Health Articles। अभिगमन तिथि: 2006-11-23।
- ↑ The Nobel Prize in Physiology or Medicine 1905 Nobelprize.org। अभिगमन तिथि: 2006-11-22।
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- ↑ Biography of Paul Ehrlich Nobelprize.org। अभिगमन तिथि: 2006-11-26।
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