बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र
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बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र भारत के राष्ट्रीयकृत बैंकों में से एक है। प्रारम्भ से ही छोटी इकाइयों को मदद देने के कारण इस बैंक ने आज के कई औद्योगिक घरानों को जन्म दिया है। बैंक ने 1998 में स्वायत्त दर्जा प्राप्त किया था। यह सरकार के हस्तक्षेप के बिना ही सरल प्रक्रियाओं के साथ अधिक से अधिक सेवाएं देने में मदद करता है।
- बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र, यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यू.आई.डी.ए.आई.) के लिए पंजीयक बन गया है। 27 अक्तूबर, 2010 को नई दिल्ली में संपन्न एक कार्यक्रम में बैंक और यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा समझौते के ज्ञापन (एम.ओ.यू.) पर हस्ताक्षर किए गए थे।[1]
- बैंक 10.00 लाख रुपये की अधिकृत पूंजी के साथ 16 सितम्बर, 1935 को पंजीकृत हुआ था और8 फ़रवरी, 1936 को इसने सक्रिय रूप से व्यापार शुरू किया।
- अपनी स्थापना के बाद से ही 'बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र' को एक आम आदमी के बैंक के रूप में जाना गया।
- छोटी इकाइयों को प्रारंभिक मदद देने के कारण बैंक ने आज के कई औद्योगिक घरानों को जन्म दिया है।
- 1969 में राष्ट्रीयकरण के बाद बैंक का तेजी से विस्तार हुआ। अब इसकी पूरे भारत में (31 मार्च, 2008 के अनुसार) 1375 शाखाएँ है।
- महाराष्ट्र में किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक की तुलना में 'बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र' सबसे ज्यादा शाखाओं के नेटवर्क वाला बैंक है।
- बैंक की स्थापना स्वर्गीय वी. जी. काले और स्वर्गीय डी. के. साठे के नेतृत्व में स्वप्नदर्शी व्यक्तियों के समूह द्वारा की गयी थी और 16 सितंबर, 1935 को पुणे में इसे एक बैंकिंग कंपनी के रूप में पंजीकृत किया गया था। इनका स्वप्न आम आदमी तक पहुंचना और उनकी सेवा करना और उनकी सभी बैंकिंग जरूरतों को पूरा करना था। बैंक और इसके कर्मचारियों के सफल नेतृत्व ने उनके सपनों को पूरा करने का प्रयास किया है।
- 'बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र' ने लाभ के पहलू की अनदेखी कर सामाजिक बैंकिंग के क्षेत्र में श्रेष्ठता हासिल की है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों की 38 प्रतिशत शाखाओं के साथ प्राथमिकता क्षेत्र के ऋण का एक अच्छा हिस्सा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 दिसम्बर, 2013।