बूँदी चित्रकला
बूँदी चित्रकला राजस्थान की राजपूत चित्रकला शैली में से एक है। बूँदी शैली की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता पृष्ठ भूमि के भू-दृश्य हैं। चित्रों में कदली, आम व पीपल के वृक्षों के साथ-साथ फूल-पत्तियों और बेलों को चित्रित किया गया है। चित्र के ऊपर वृक्षावली बनाना एवं नीचे पानी, कमल, बत्तख़ें आदि चित्रित करना बूँदी चित्रकला की विशेषता रही है।
इतिहास
यह चित्रकला शैली चित्रण की प्रसिद्ध राजस्थानी शैली है। यह 17वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक बूंदी राज्य और उनके पड़ोसी क्षेत्र कोटा[1] में फली-फूली। बूँदी चित्रकला की सबसे पहले की कृतियों (लगभग 1625) में राजस्थानी चरित्र, विशेषकर पुरुषों और स्त्रियों के चित्रों में है, लेकिन इस पर मुग़ल प्रभाव काफ़ी स्पष्ठ है। उत्कृष्टता और चमक में बूंदी चित्रकला, दक्कन की चित्रकला से मिलती-जुलती है। वहां के शासकों से बूँदी और कोटा का संपर्क था।
विशेषता
घनी हरियाली, नाटकीय रात्रि आकाश, गहरे रंग की पृष्ठभूमि में हल्के घुमावों के ज़रिये जल के चित्रण का विशेष तरीक़ा और स्पष्ट सचलता बूँदी चित्रकला शैली की विशेषता है। यह शैली 18वीं शताब्दी के पहले पूर्वार्द्ध में अपने चरम पर थी, लेकिन 19वीं शताब्दी में भी फलती-फूलती रही और राम सिंह द्वितीय (1828-66 ई.) के शासनकाल के दौरान कोटा में इसका स्वर्णिम काल था। इन चित्रों में उस क्षेत्र के घने और पर्वतीय जंगलों में राजाओं द्वारा बाघ के शिकार और राजा के जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दोनों ही अब राजस्थान में
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