नारायण भाई देसाई
नारायण भाई देसाई
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पूरा नाम | नारायण भाई देसाई |
अन्य नाम | नारायण भाई देसाई |
जन्म भूमि | सरस गाँव, सूरत ज़िला |
मृत्यु | 15 मार्च, 2015 |
मृत्यु स्थान | गुजरात के वलसाड जिले के वेदछी गांव |
संतान | नचिकेता देसाई |
नागरिकता | भारतीय |
भाषा | गुजराती, संस्कृत, बांग्ला भाषा, हिन्दी, मराठी और अंग्रेज़ी भाषा |
पुरस्कार-उपाधि | यूनेस्को शांति पुरस्कार, केंद्रीय साहित्य अकादमी, जमनालाल बजाज, मूर्तिदेवी, उमाशंकर स्नेहरश्मि, रणजीतराम सुवर्ण चंद्रक, नर्मद चंद्रक व दर्शक अवॉर्ड |
विशेष योगदान | बापू की गोद में नारायण देसाई इस डायरी में उन्होंने गांधीजी के नित्य प्रति के क्रिया कलापों का अधिकारिक वर्णन प्रस्तुत किया है। |
संबंधित लेख | नारायण भाई देसाई के प्रेरक प्रसंग |
रचनाएँ | 'बापू की गोद में', आदि। |
अन्य जानकारी | यू ट्यूब पर बापूकथा |
नारायण भाई देसाई (अंग्रेज़ी: Narayan Bhai Desai, जन्म- ; मृत्यु- 15 मार्च, 2015) राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विश्वसनीय सचिव महादेव हरिभाई देसाई के पुत्र हैं।
जीवन परिचय
नारायण भाई देसाई का जन्म सूरत ज़िले के सरस गाँव में हुआ था। इनके पिता महादेव हरिभाई देसाई महात्मा गाँधी के सचिव थे। सर्वोदय जमात को प्रेरित व समृद्ध करने वाले नारायण भाई गुजरात के एक छोटे से गांव में महात्मा गांधी के सचिव महादेव देसाई व दुर्गा बेन के घर जन्म लेकर अब 90 वर्ष के हो गये थे। अपने जीवन के अहम 20 साल उन्होंने महात्मा गांधी के साथ बिताए. वे सर्वोदय विचार तथा अणुविरोधी आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता रहे . भूदान, ग्रामदान, दंगा शमन के लिए बनी शांति सेना, लोक समिति, सर्वसेवा संघ तथा संपूर्ण क्रांति आंदोलन के वे पहली कतार के अग्रिम कार्यकर्ता रहे. उनका ज्यादा टाइम सर्व सेवा संघ में गुजरा।
विलक्षण प्रतिभा
जिस उम्र में बच्चों को स्कूल व टीचर्स का आकलन करने का ज्ञान नहीं होता है. उस उम्र में यदि बच्चा सबसे अच्छे स्कूल को पहले ही दिन खारिज कर दे तो यह उसके विलक्षण प्रतिभा का ही परिचय होगा. ऐसे ही विलक्षण प्रतिभा के धनी लोगों में नारायण भाई देसाई का नाम शामिल है. प्रसंग ये है उन्होंने पहले ही दिन वर्धा के एक फेमस स्कूल को फेल करार कर दिया था. अपने अनुकूल न होने पर उन्होंने दूसरे दिन स्कूल न जाने का निश्चय कर लिया. जिसकी जानकारी उन्होंने अपने गार्जियन महात्मा गांधी को पत्र के माध्यम से दिया. इतनी छोटी सी उम्र में स्कूल की पहचान कर लेना सबके बस में नहीं है. गांधी जी से इस पर उनको शाबासी मिली थी ।
नेतृत्व
नारायण देसाई स्वातंत्र्योत्तर भारत में विनोबा और जेपी के निकट सहयोगी रहे। गुजराती भाषा के साहित्यकार के रूप में भी वे जाने जाते हैं। उनके पिता और २५ वर्षों तक गांधीजी के सचिव महादेव देसाई की जीवनी 'अग्निकुंड में खिला गुलाब' के लिए उन्हें केन्द्रीय साहित्य अकादमी तथा गांधीजी की गुजराती में जीवनी - 'मारु जीवन एज मारी वाणी' के लिए ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी पुरस्कार मिला था। भूदान आंदोलन, संपूर्ण क्रांति आंदोलन जैसे कई राष्ट्रीय आंदोलनों में नारायण देसाई की सक्रिय भूमिका रही। दंगों के समय उन्होंने शांति सेना का नेतृत्व भी किया था। बिहार आंदोलन में सक्रियता के कारण तत्कालीन राज्य सरकार ने उन्हें बिहार निकाला कर दिया था। उन्होंने युद्ध विरोधी अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी और कार्यकर्ता प्रशिक्षण के लिए संपूर्ण क्रांति आंदोलन विद्यालय की स्थापना में सहयोग दिया था। उनके परिवार में पुत्री संघमित्रा, पुत्र नचिकेता देसाई व अफलातून देसाई हैं। नारायणभाई की पत्नी का देहावसान 26 वर्ष पहले ही हो गया था। नारायणभाई को साहित्य अकादमी पुरस्कार, मूर्तिदेवी पुरस्कार सहित कई साहित्यिक पुरस्कार तथा यूनेस्को से शांति पुरस्कार मिले थे। नारायणभाई को 75 से अधिक वर्षो के सामाजिक जीवन में महात्मा गांधी, विनोबा भावे और लोकनायक जयप्रकाश नारायण का निकट साहचर्य मिला था। कहना न होगा कि वह गांधी की गोद में पले-बढ़े थे। वह गुजरात विद्यापीठ के कुलाधिपति भी रहे। उन नारायण भाई देसाई ने हिंदी, गुजराती तथा इंग्लिश में दर्जनों पुस्तकें लिखी है. वो गुजरात विद्यापीठ के चांसलर भी रहे।
रचना
2002 के गुजरात दंगे के दौरान कुछ न कर पाने की व्यथा के कारण उनके भीतर से गांधी कथा निकली और देश-विदेश में गांधी कथा की 108 कड़ियां उन्होंने पूरी की। वर्ष 2002 के गुजरात जनसंहार के प्रायश्चित स्वरूप नारायणभाई ने लोगों को सर्वधर्म समभाव का संदेश देने के लिए गांधीकथा-वाचन शुरू किया था। गांधी के जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन वह जिस अंदाज में किया करते थे, वह अद्वितीय था। उन नारायण भाई देसाई ने हिंदी, गुजराती तथा इंग्लिश में दर्जनों पुस्तकें लिखी है.उन्होंने गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी में साहित्य लेखन किया और आपातकाल के दौरान 'तानाशाही' के खिलाफ कई पत्रिकाओं के संपादन के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा। नारायणभाई ने कभी किसी स्कूल या कॉलेज का मुंह नहीं देखा, लेकिन वह अंग्रेजी, बंगला, उड़िया, मराठी, गुजराती, संस्कृत और हिंदी भाषाओं पर समान अधिकार रखते थे। इन सभी भाषाओं में वह धाराप्रवाह लिखते और बोलते थे।
योगदान
वो गुजरात विद्यापीठ के चांसलर भी रहे। भारत व भारत से बाहर 89 गांधी कथा सुना कर उन्होने जन जीवन को गांधी के प्रेरक जीवन से जोड़ने का अद्भुत काम किया। कथा निशुल्क होती थी दान में प्राप्त पैसे का उपयोग सर्वोदय साहित्य के प्रचार प्रसार में होता था। आज उन्होने देह त्याग दी है और उनकी आत्मा अनंत में विचरण के लिए चल दी है पर गांधी परम्परा की ये अद्भुत कड़ी हमेशा के लिए अजर अमर है। नारायणभाई को 75 से अधिक वर्षो के सामाजिक जीवन में महात्मा गांधी, विनोबा भावे और लोकनायक जयप्रकाश नारायण का निकट साहचर्य मिला था। कहना न होगा कि वह गांधी की गोद में पले-बढ़े थे। वह गुजरात विद्यापीठ के कुलाधिपति भी रहे। भारत व भारत से बाहर 89 गांधी कथा सुना कर उन्होने जन जीवन को गांधी के प्रेरक जीवन से जोड़ने का अद्भुत काम किया। कथा निशुल्क होती थी दान में प्राप्त पैसे का उपयोग सर्वोदय साहित्य के प्रचार प्रसार में होता था। आज उन्होने देह त्याग दी है और उनकी आत्मा अनंत में विचरण के लिए चल दी है पर गांधी परम्परा की ये अद्भुत कड़ी हमेशा के लिए अजर अमर है।
पुरस्कार
उन्हें यूनेस्को शांति पुरस्कार, केंद्रीय साहित्य अकादमी, जमनालाल बजाज, मूर्तिदेवी, उमाशंकर स्नेहरश्मि, रणजीतराम सुवर्ण चंद्रक, नर्मद चंद्रक व दर्शक अवॉर्ड सहित कई अवार्ड से नवाजा गया.पुरस्कार उनको पाकर धन्य हो गए।
निधन
मृत्यु- 15 मार्च, 2015 गुजरात के वलसाड जिले के वेदछी गांव उनका देहांत हो गया।
शोक संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर जारी शोक संदेश में कहा, "नारायण भाई देसाई एक ऐसे विद्वान के रूप में जाने जाएंगे, जिन्होंने गांधी को आम जनता के करीब लाया। उनके निधन की खबर सुनकर गहरा दुख हुआ।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
शर्मा, लीलाधर भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ 611।
बाहरी कड़ियाँ
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