नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित सभी मामलों के लिए भारत सरकार का नोडल मंत्रालय है। इस मंत्रालय का व्यापक उद्देश्य भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा का विकास तथा उसकी स्थापना करना है।
सृजन
सन 1981 में अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत आयोग (केस) की स्थापना की गई थी। वर्ष 1982 में अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत विभाग (डीएनईएस) बनाया गया। इसके बाद 1992 में अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय (एमएनईएस) बनाया गया। वर्ष 2006 में अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय (एमएनईएस) का नाम बदलकर 'नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय' कर दिया गया।
मंत्रालय का महत्त्व
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा की भूमिका को देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए बढ़ती चिंता के साथ हाल के दिनों में अत्यधिक महत्त्व दिया गया है। ऊर्जा आत्मनिर्भरता को सन 1970 के दौरान घटे दो तेल आघातों को ध्यान में रखते हुए देश में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए प्रमुख प्रेरक के रूप में पहचाना गया। तेल की कीमतों में अचानक वृद्धि, इसकी आपूर्ति से जुड़ी अनिश्चितता और भुगतानों के संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव से मार्च, 1981 में विज्ञान और प्रौद्योगिक विभाग के अंदर अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत आयोग की स्थापना की गई थी। इस आयोग को नीति निर्धारण और उनके कार्यान्वयन, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा के विकास हेतु कार्यक्रम बनाने के दायित्व के साथ क्षेत्र में इनके अनुसंधान और विकास के समन्वय तथा सघन बनाने का दायित्व भी सौंपा गया था। 1982 में तत्कालीन ऊर्जा मंत्रालय में एक नए विभाग अर्थात अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत विभाग (डीएनईएस), जिसमें केस को निहित किया गया था, का सृजन किया गया। वर्ष 1992 में डीएनईएस को अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय बनाया गया। अक्टूबर, 2006 में इसे 'नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय' का नया नाम दे दिया गया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 दिसम्बर, 2012।