शिवाजी और अफ़ज़ल ख़ाँ
शिवाजी कई दुर्गों को पुन: हासिल करने में सफल हो गए थे। उन्होंने समुद्र और घाटों के बीच तटीय क्षेत्र कोंकण पर भी धावा बोल दिया और उसके उत्तरी भाग पर अधिकार कर लिया। स्वाभाविक था कि बीजापुर का सुल्तान उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई करता। उसने अफ़ज़ल ख़ाँ के नेतृत्व में 10,000 सैनिकों की टुकड़ी शिवाजी को पकड़ने के लिए भेजी। उन दिनों छल-कपट और विश्वासघात की नीति अपनाना आम बात थी और शिवाजी और अफ़ज़ल ख़ाँ दोनों ने ही अनेक अवसरों पर इसका सहारा लिया।
शिवाजी की सेना को खुले मैदान में लड़ने का अभ्यास नहीं था, अतः वह अफ़ज़ल ख़ाँ के साथ युद्ध करने से कतराने लगे। अफ़ज़ल ख़ाँ ने शिवाजी को निमंत्रण भेजा और वादा किया कि वह उन्हें सुल्तान से माफ़ी दिलवा देगा। किंतु ब्राह्मण दूत कृष्णजी भाष्कर ने अफ़ज़ल ख़ाँ का वास्तविक उद्देश्य शिवाजी को बता दिया। सारी बात जानते हुए शिवाजी किसी भी धोखे का सामना करने के लिए तैयार होकर गए और अरक्षित होकर जाने का नाटक किया। गले मिलने के बहाने अफ़ज़ल ख़ाँ ने शिवाजी का गला दबाने का प्रयास किया, किंतु शिवाजी तो तैयार होकर आए थे। उन्होंने बघनख से उसका काम तमाम कर दिया। इस घटना को लेकर ग्रांट डफ़ जैसे यूरोपीय इतिहासकार शिवाजी पर विश्वासघात और हत्या का आरोप लगाते हैं, जो सरासर ग़लत है, क्योंकि शिवाजी ने आत्मरक्षा में ही ऐसा किया था। इस विजय से मित्र और शत्रु दोनों ही पक्षों में शिवाजी का सम्मान बढ़ गया। दूरदराज़ के इलाकों से जवान उनकी सेना में भरती होने के लिए आने लगे। शिवाजी में उनकी अटूट आस्था थी।
इस बीच दक्षिण में मराठा शक्ति के इस चमत्कारी उत्थान पर औरंगज़ेब बराबर दृष्टि रखे हुए था। पूना और उसके आसपास के क्षेत्रों, जो अहमदनगर राज्य के हिस्से थे और 1636 की संधि के अंतर्गत बीजापुर को सौंप दिए गए थे, को अब मुग़ल वापस माँगने लगे। पहले तो बीजापुर ने मुग़लों की इस बात को मान लिया था कि वह शिवाजी से निपट लेगा और इस पर कुछ सीमा तक अमल भी किया गया, किंतु बीजापुर का सुल्तान यह भी नहीं चाहता था कि शिवाजी पूरी तरह नष्ट हो जाएँ। क्योंकि तब उसे मुग़लों का सीधा सामना करना पड़ता। औरंगज़ेब ने अपने संबंधी शाइस्ता ख़ाँ को शिवाजी से निपटने की ज़िम्मेदारी सौंपी। शाइस्ता ख़ाँ दक्षिणी सूबे का सूबेदार था। आत्मविश्वास से भरे सूबेदार शाहस्ता ख़ाँ ने पूना पर कब्ज़ा कर लिया, चाकण के क़िलों को अपने अधिकार में ले लिया और दो वर्षों के भीतर ही उसने कल्याण सहित संपूर्ण उत्तरी कोंकण पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। केवल दक्षिण कि कुछ जागीरें ही शिवाजी के पास रह गईं। शाइस्ता ख़ाँ को आशा थी कि वर्षा समाप्त होने पर वह उन्हें भी जीत लेगा। शिवाजी ने इस अवसर का लाभ उठाया। उन्होंने चुने हुए चार सौ सिपाही लेकर बारात का साज सजाया और पूना में प्रविष्ट हो गए। आधी रात के समय उन्होंने सूबेदार के घर धावा बोल दिया। सूबेदार और उसके सिपाही तैयार नहीं थे। नौकरानी की होशियारी से शाइस्ता ख़ाँ तो बच निकला, किंतु मुग़ल सेना को मौत के घाट उतार दिया गया।
शिवाजी और अफ़ज़ल ख़ाँ |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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