आपातकाल (भारत)

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आपातकाल (अंग्रेज़ी: The Emergency) स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। 26 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित लगा दिया गया। जयप्रकाश नारायण ने आपातकाल के इस समय को "भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि" कहा था। आपातकाल लागू होने के बाद जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अन्य सैकड़ों छोटे-बड़े नेताओं को गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। ऐसा माना जाता है कि आपातकाल के दौरान एक लाख व्यक्तियों को देश की विभिन्न जेलों में बंद किया गया। इनमें मात्र राजनीतिक व्यक्ति ही नहीं, आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी थे जो ऐसे आंदोलनों के समय लूटपाट करते थे। साथ ही भ्रष्ट कालाबाज़ारियों और हिस्ट्रीशीटर अपराधियों को बंद कर दिया गया।

ऐसे लगा आपातकाल

सन 1971 के युद्ध में सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया तथा अमरीका ने पाकिस्तान का। घरेलू मोर्चे पर इसका असर यह हुआ कि आर्थिक क्षेत्र में भारत की नीतियां अधिकाधिक समाजवादी होती गई तथा अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भी भारत कई तरह की संधियों आदि के माध्यम से सोवियत संघ के निकट आता गया । व्यापार- कारोबार पर राज्य का नियंत्रण अधिकाधिक बढ़ता गया। आयकर की दरें अपने 80-90 प्रतिशत तक पहुंच रही थीं। आर्थिक स्वतंत्रता सीमित से सीमित होती जा रही थी। दुर्भाग्य से 1971-1972 और 1972-1973 भारी सूखा के वर्ष भी रहे। इससे एक तरफ अनाज उत्पादन गिरा तो दूसरी तरफ बिजली उत्पादन पर भी नकारात्मक असर हुआ। इन्हीं वर्षो के दौरान कच्चे तेल के दाम तीन गुना तक बढ़े, जिससे 1971 के बाद के वर्षो में महंगाई दर 10 प्रतिशत से भी अधिक रही। समन्वित असर यह हुआ कि गरीबी, बेरोजगारी तथा महंगाई अपने चरम पर पहुंच रहे थे। नतीजा था व्यापक असंतोष। पर एकाधिकारवाद की ओर बढ़ रही कांग्रेस एक राजनीतिक दल के रूप में इस असंतोष को समायोजित करने के लिए तैयार नहीं थी।[1]

गुजरात के अंसगठित नवनिर्माण आंदोलन से सबक लेते हुए जेपी ने बिहार के छात्र आंदोलन को एक संगठन, लक्ष्य, नेतृत्व और करिश्मा प्रदान किया। उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे एक साल के लिए अपना कॉलेज छोड़कर एक वैकल्पिक राजनीतिक प्रणाली के निर्माण के लिए संघर्ष करें। लगभग सभी राजनीतिक दल अपने मतभेद भुलाकर जेपी के साथ खड़े हो गए। जल्दी ही आंदोलन का लक्ष्य प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हटाना और भ्रष्टाचार तथा एकाधिकारवादी शासन का अंत हो गया। बताया जाता है कि जेपी के मार्च, 1975 के "संसद मार्च" में 4 लाख से भी अधिक लोग सम्मिलित हुए। 25 जून, 1975 की रामलीला मैदान की महारैली में जेपी ने पुलिस और सैनिक बलों से असंवैधानिक और अनैतिक आदेशो को नहीं मानने का आग्रह किया। बाद में इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने के लिए "आंतरिक अशांति" की आशंका को इसी भाषण के आधार पर तर्कसंगत ठहराया।

न्यायपालिका की भूमिका

इस पूरी स्थिति में इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय ने आग में घी डालने के लिए काम किया। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगाया। उन पर चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग, अधिक खर्च करने का आरोप राजनारायण ने लगाया था। उच्च न्यायालय ने आरोपों को आंशिक रूप से सही ठहराया। इंदिरा गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार करते हुए फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस कृष्ण अय्यर ने 24 जून, 1975 के अपने अंतरिम आदेश में इंदिरा गांधी को बिना शर्त राहत नहीं दी। पूर्व दृष्टांतों के आधार पर इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बने रहने, संसदीय कार्रवाई में भाग लेने की अनुमति दी पर संसद में वोट करने की अनुमति नहीं दी। विपक्ष की प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग तेज हो गई।[1]

आपातकाल की घोषणा

25 जून, 1975 की मध्यरात्रि को मंत्रिमंडल की अनुशंसा पर राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। यद्यपि हकीकत यह है कि आपातकाल की घोषणा रेडियो पर पहले कर दी गई तथा बाद में सुबह मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उस पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किए। यद्यपि संवैधानिक प्रावधान यह है कि मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उसकी अनुशंसा पर जब राष्ट्रपति हस्ताक्षर कर देते हैं, तब आपातकाल की घोषणा की जा सकती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 आपातकाल के 40 साल (हिंदी) patrika.com। अभिगमन तिथि: 07 अक्टूबर, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

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