कुलजम स्वरूप
कुलजम स्वरूप नामक ग्रंथ स्वामी प्राणनाथ द्वारा प्रणीत है। 'प्रणामी सम्प्रदाय' की अनुश्रुति के आधार पर कहा जा सकता है कि स्वामी प्राणनाथ द्वारा प्रणीत 18 हज़ार चौपाईयाँ इस बृहत ग्रंथ में संगृहीत हैं। इसका सम्पादन लगभग सन 1694 ई. में स्वामी प्राणनाथ के परमधाम प्रवेश के बाद उनके एक प्रमुख शिष्य केसोदास ने पन्ना में किया था। उसी रूप में प्रणामी सम्प्रदाय में आज तक यह ग्रंथ सुरक्षित है।[1]
महत्त्व
'गुरु ग्रंथ साहिब' की तरह कुलजम स्वरूप भी एक धर्म ग्रंथ के रूप में प्रत्येक प्रणामी मन्दिर में पूजा जाता है। पन्ना के 'प्रणामी मन्दिर' में, जिसका निर्माण महाराज छत्रसाल ने करवाया था, एक प्रणामी पाठशाला लगती है, जिसमें प्रणामी धर्म के बालकों को कई वर्षों तक इस ग्रंथ का अध्ययन कराया जाता है। इस ग्रंथ की अनेक हस्तलिखित प्रतियाँ देखने को मिली हैं। यत्र-तत्र कुछ शब्द रूपों की भिन्नता के अतिरिक्त वे सब पाठ की समानता प्रकट करती हैं। इस दृष्टि से हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथों में इसका विशेष महत्त्व है।
अर्थ
प्रणामी सम्प्रदाय में इस ग्रंथ को 'कुलजम स्वरूप', 'स्वरूप साहब', 'तारतम्य सागर' अथवा 'निजानन्द सागर' के नाम से अभिहित किया जाता है। 'कुलजम स्वरूप' का अर्थ है "प्राणनाथ की उन बानियों का पूर्ण संग्रह (कुलजमा), जिनमें स्वामीजी का वास्तविक स्वरूप सुरक्षित है।" छत्रसाल के समसामयिक शिष्य ब्रजभूषण द्वारा रचित 'वृत्तांत मुक्तावली' में कहा गया है कि- "बानी श्रीमुख की सकल कुलजम लीला रूप"।[2] स्वर्गीय डॉक्टर हीरालाल ने 'कुलजम' को अरबी कुलजम (सागर) का तद्भव रूपांतर माना है।[1]
खण्ड
'कुलजम स्वरूप' लगभग 1000 पृष्ठों का बृहदाकार ग्रंथ है, जिसे 14 खण्डों में विभाजित किया गया है। ये खण्ड निम्नलिखित हैं[1]-
- रास (1010 चौपाईयाँ, गुजराती भाषा)
- प्रकाश (1176 हिन्दी अनुवाद सहित गुजराती चौपाईयाँ)
- षट्सत् (230 गुजराती चौपाईयाँ)
- कलस (168 हिन्दी अनुवाद सहित गुजराती चौपाईयाँ)
- सनन्ध (1691 हिन्दी अनुवाद सहित हिन्दुस्तानी चौपाईयाँ)
- किरन्तन (2103 हिन्दी या हिन्दुस्तानी चौपाईयाँ)
- खुलासा (1019 हिन्दी या हिन्दुस्तानी चौपाईयाँ)
- खिलवत (1094 हिन्दी या हिन्दुस्तानी चौपाईयाँ)
- परकरमा (2484 हिन्दी या हिन्दुस्तानी चौपाईयाँ)
- सागर (1128 हिन्दी या हिन्दुस्तानी चौपाईयाँ)
- सिंगार (2209 हिन्दी या हिन्दुस्तानी चौपाईयाँ)
- सिंधी बानी (599 हिन्दी अनुवाद सहित सिन्धी चौपाईयाँ)
- मारफत (1034 हिन्दी या हिन्दुस्तानी चौपाईयाँ)
- क्यामतनामा छोटा ओ क्यामतनामा बड़ा (667 हिन्दी या हिन्दुस्तानी पद)
स्वामी प्राणनाथ की जीवनी से सम्बद्ध बानियों में उपयुक्त ग्रंथों की रचना-तिथि, स्थान आदि का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। स्वामी प्राणनाथ ने सबसे पहले सन 1655 ई. में प्रमोधपुरी (बन्दीगृह) में बानियों की रचना प्रातम्भ की थी। उसके बाद सूरत, अनूपशहर तथा पन्ना में उन्होंने सन 1694 ई. तक बानियों का प्रणयन किया।
वर्ण्य-विषय
'कुलजम स्वरूप' का मुख्य वर्ण्य-विषय प्रणामी धर्म या निजानन्द सम्प्रदाय का विवेचन ही है। यह धर्म एक सुधार आन्दोलन के रूप में प्रारम्भ हुआ था। क्षर-अक्षर से परे अक्षरातीत पर-ब्रह्म श्रीकृष्ण इसके उपास्य हैं। 'रास', 'प्रकाश', 'षट्सत' और 'कलस' में कृष्ण-भक्ति का ही विवेचन मिलता है। 'सनन्ध' में भागवत पुराण और क़ुरान का समन्वय किया गया है। 'खुलासा', 'मारफत', 'क्यातनामा' आदि में इस्लाम धर्म के समन्वय का प्रयत्न किया गया है। 'परकरमा' में परमधाम के सौन्दर्य का वर्णन है। इससे स्वामी प्राणनाथ के विस्तृत भौगोलिक तथा वनस्पति जगत्, वास्तुकला, चित्रकला और मूर्तिकला विषयक ज्ञान का परिचय मिलता है।[1]
'सागर' और 'सिंगार' में राधा और कृष्ण के विराट शृंगार तथा उनकी आठों याम की लीला का वर्णन है। शुद्ध काव्य की दृष्टि से किरन्तन के पद ही पूर्ण रूप से साहित्यिक कहे जा सकते हैं। किरन्तन नामक ग्रंथ को छोड़कर अन्य सभी ग्रंथ चौपाई, छन्द में लिखे गये हैं। किरन्तन में पद शैली का प्रयोग हुआ है, परंतु वास्तव में ये पद तुकांत गद्य मात्र कहे जा सकते हैं। प्राणनाथ द्वारा प्रयुक्त चौपाई छन्द में भी अनेक दोष पाये जाते हैं।
भाषा
स्वामी प्राणनाथ ने अपनी भाषा को 'हिन्दोस्तानी' (हिन्दवी या हिन्दुस्तानी) कहा है। इनकी भाषा में खड़ी बोली या हिन्दवी का मध्यकालीन रूप सुरक्षित है। उसमें तद्भव शब्दों की प्रधानता है। संस्कृत, फ़ारसी, अरबी आदि के शब्द भी स्वतंत्रतापूर्वक तद्भत रूप में ही प्रयुक्त हुए हैं। इस्लाम धर्म के विवेचन में फ़ारसी और अरबी शब्दों की बहुलता से भाषा कुछ दुरूह हो गयी है। प्राणनाथ की भाषा में प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग प्रचुरता से हुआ है।
स्वामी प्राणनाथ ने अपने को सच्चा हिन्दू और सच्चा मुसलमान या मोमिन घोषित किया है और मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के कट्टर अनुयायियों को सर्वत्र काफिर बताया है। धार्मिक, साहित्यिक, सामाजिक तथा भाषिक दृष्टि से 'कुलजम स्वरूप' एक अमूल्य ग्रंथ कहा जा सकता है। अभी तक यह केवल हस्तलिखित रूप में ही प्राप्त है।
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