गाधिसूनु कह हृदयँ हँसि
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गाधिसूनु कह हृदयँ हँसि
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
गाधिसूनु कह हृदयँ हँसि मुनिहि हरिअरइ सूझ। |
- भावार्थ-
विश्वामित्र ने हृदय में हँसकर कहा - मुनि को हरा-ही-हरा सूझ रहा है (अर्थात सर्वत्र विजयी होने के कारण ये राम-लक्ष्मण को भी साधारण क्षत्रिय ही समझ रहे हैं), किंतु यह लौहमयी (केवल फौलाद की बनी हुई) खाँड़ (खाँड़ा - खड्ग) है, ऊख की (रस की) खाँड़ नहीं है (जो मुँह में लेते ही गल जाए। खेद है,) मुनि अब भी बेसमझ बने हुए हैं; इनके प्रभाव को नहीं समझ रहे हैं॥ 275॥
गाधिसूनु कह हृदयँ हँसि |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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