अनुसूया मन्दिर, उत्तराखण्ड

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:08, 16 नवम्बर 2014 का अवतरण (Text replace - " करीब" to " क़रीब")
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
अनुसूया मन्दिर, उत्तराखण्ड
'अनुसूया मन्दिर', उत्तराखण्ड
'अनुसूया मन्दिर', उत्तराखण्ड
विवरण 'अनुसूया मन्दिर' उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ तथा पर्यटन स्थलों में से एक है। यह मन्दिर देवी अनुसूया को समर्पित है।
ज़िला चमोली ज़िला
राज्य उत्तराखण्ड
पौराणिक मान्यता मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में जप और यज्ञ करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है।
विशेष यहाँ स्थानीय स्तर पर उगाए गए गेहूँ के आटे से बना प्रसाद श्रद्धालुओं को दिया जाता है।
संबंधित लेख उत्तराखण्ड, दत्तात्रेय, दत्तात्रेय जयंती
अन्य जानकारी प्रतिवर्ष 'दत्तात्रेय जयंती समारोह' के अवसर यहाँ 'नौदी मेले' का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें यहाँ के ग्रामीण अपने गाँवों से देव डोलियाँ लेकर पहुँचते हैं।

अनुसूया मन्दिर उत्तराखण्ड के चमोली ज़िले में मंडल से क़रीब छ: किलोमीटर की ऊँचाई पर पहाड़ों में स्थित है। यह मन्दिर देवी अनुसूया को समर्पित है। यहाँ प्रतिवर्ष 'दत्तात्रेय जयंती समारोह' मनाया जाता है। इस जयंती में पूरे राज्य से हज़ारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। इस अवसर पर 'नौदी मेले' का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें भारी संख्या में लोग अपने-अपने गांवों से देव डोलियों को लेकर पहुंचते हैं।

पौराणिक मान्यता

देव डोलियाँ माता अनुसूया और अत्रि मुनि के आश्रम का भ्रमण करती हैं। माता अनसूया के प्राचीन मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए एक बड़ा यज्ञ भी कराया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में जप और यज्ञ करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है। इसी मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थान पर माता अनसूया ने अपने तप के बल पर 'त्रिदेव' (ब्रह्मा, विष्णु और शंकर) को शिशु रूप में परिवर्तित कर पालने में खेलने पर मजबूर कर दिया था। बाद में काफ़ी तपस्या के बाद त्रिदेवों को पुन: उनका रूप प्रदान किया और फिर यहीं तीन मुख वाले दत्तात्रेय का जन्म हुआ। इसी के बाद से यहाँ संतान की कामना को लेकर लोग आते हैं। यहाँ 'दत्तात्रेय मंदिर' की स्थापना भी की गई है।

ऐतिहासिकता

प्राचीन काल में यहाँ देवी अनुसूया का छोटा-सा मंदिर था। सत्रहवीं सदी में कत्यूरी राजाओं ने इस स्थान पर अनुसूया देवी के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। अठारहवीं सदी में आए विनाशकारी भूकंप से यह मंदिर ध्वस्त हो गया। इसके बाद संत ऐत्वारगिरी महाराज ने ग्रामीणों की मदद से इस मंदिर का पुन: निर्माण करवाया।

कैसे पहुंचे

यहाँ आने के लिए यात्री ऋषिकेश से चमोली तक 250 किलोमीटर की दूरी तय कर सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं। यहाँ से दस किलोमीटर गोपेश्वर पहुंचने के बाद 13 किलोमीटर दूर मंडल तक भी वाहन की सुविधा है। मंडल से पांच किलोमीटर पैदल चढ़ाई चढ़कर देवी अनुसूया के मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

विशेषता

'नवरात्र' के दिनों में अनुसूया देवी के मंदिर में नौ दिन तक मंडल घाटी के ग्रामीण माँ का पूजन करते है। मंदिर की विशेषता यह है कि दूसरे मंदिरों की तरह यहाँ पर बलि प्रथा का प्रावधान नहीं है। यहाँ श्रद्धालुओं को विशेष प्रसाद दिया जाता है। यह स्थानीय स्तर पर उगाए गए गेहूँ के आटे से बनाया जाता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख