मुग़लकालीन प्रमुख चित्र
चित्रकला के क्षेत्र में मुग़लों का विशिष्ट योगदान रहा है। उन्होंने राजदरबार, शिकार तथा युद्ध के दृश्यों से सम्बन्धित नए विषयों को आरम्भ किया तथा नए रंगों और आकारों की शुरुआत की। उन्होंने चित्रकला की ऐसी जीवंत परम्परा की नींव डाली, जो मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद भी देश के विभिन्न भागों में जीवित रही। इस शैली की समृद्धी का एक मुख्य कारण यह भी था कि भारत में चित्रकला की बहुत पुरानी परम्परा थी। यद्यपि बारहवीं शताब्दी के पहले के ताड़पत्र उपलब्ध नहीं हैं, जिनसे चित्रकला की शैली का पता चल सके। अजन्ता के चित्र इस समृद्ध परम्परा के सार्थक प्रमाण हैं। लगता है कि आठवीं शताब्दी के बाद चित्रकला की परम्परा का ह्रास हुआ, पर तेरहवीं शताब्दी के बाद की ताड़पत्र की पांडुलिपियों तथा चित्रित जैन पांडुलिपियों से सिद्ध हो जाता है कि यह परम्परा मरी नहीं थी।
कुछ विशिष्ट चित्र
- एक कृशकाय घोड़े के साथ एक मजनूँ का निर्जन स्थान में भटकता हुआ चित्र - बसावन
- बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह का एक चित्र - फ़ारुख़ बेग़
- जहाँगीर के आदेश पर बिसनदास एवं अबुल हसन का एक सामूहिक चित्र तथा अपना भी एक चित्र - दौलत।
- साइबेरियन का एक बिरला सारस - उस्ताद मंसूर
- बंगाल का एक अनोखा पुष्प - उस्ताद मंसूर
- ड्यूटर के संत जान पॉल की तस्वीर - अबुल हसन
- 'तुजुक-ए-जहाँगीरी' के लिए मुखपृष्ठ की चित्रकारी - अबुल हसन
- लंदन के पुस्तकालय में एक चित्र उपलब्ध है, जिसमें एक चिनार के पेड़ पर असंख्य गिलहरियाँ अनेक मुद्राओं में चित्रित हैं। इसे अबुल हसन की कृति माना जाता है, किन्तु पृष्ठ भाग पर अबुल हसन एवं मंसूर दोनों का नाम अंकित होने के कारण इसे दोनों को संयुक्त कृति माना जाता है।
जहाँगीर कालीन एक प्रसिद्ध चित्रकार मनोहर का नाम 'तुजुक-ए-जहाँगीरी' में नहीं मिलता है।
मुग़ल काल में यूरोपीय चित्रों के महत्त्वपूर्ण ब्योरों का अध्ययन कर उन्हें अपने चित्रों में संजोने वाले महत्वपूर्ण चित्रकारों में शामिल थे- बसावन, केशवदास, मिशकिन, दौलत, अबुल हसन आदि।
यूरोपीय प्रभाव वाले चित्रकारों में संभवतः मिशकिन सर्वश्रेष्ठ था।
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