भोला पासवान शास्त्री
भोला पासवान शास्त्री
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पूरा नाम | भोला पासवान शास्त्री |
जन्म | 21 सितंबर, 1914 |
जन्म भूमि | बैरगाछी गांव, पूर्णिया ज़िला, बिहार |
मृत्यु | 4 सितंबर, 1984 |
मृत्यु स्थान | पटना, बिहार |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
पद | मुख्यमंत्री, बिहार (तीन बार) |
कार्य काल | प्रथम- 22 मार्च 1968 से 29 जून 1968 तक द्वितीय- 22 जून 1969 से 4 जुलाई 1969 तक |
शिक्षा | शास्त्री की डिग्री |
विद्यालय | दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय |
संबंधित लेख | मुख्यमंत्री, बिहार के मुख्यमंत्री |
अन्य जानकारी | सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और सार्वजनिक संपत्ति से खुद को दूर रखने के कारण ही भोला पासवान शास्त्री "बिहार की राजनीति के विदेह" कहे गए। |
भोला पासवान शास्त्री (अंग्रेज़ी: Bhola Paswan Shastri, जन्म- 21 सितंबर, 1914, पूर्णिया ज़िला, बिहार; मृत्यु- 4 सितंबर, 1984, पटना, बिहार) भारतीय राजनीतिज्ञ और बिहार के आठवें मुख्यमंत्री थे। वह तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे- 22 मार्च 1968 से 29 जून 1968 तक, फिर 22 जून 1969 से 4 जुलाई 1969 तक और फिर तीसरी बार 2 जून 1971 से 9 जनवरी 1972 तक।
परिचय
भोला पासवान शास्त्री को बिहार की राजनीति का विदेह कहा जाता है। भोला पासवान शास्त्री सादा जीवन और उच्च विचार के व्यक्तित्व के थे और हमेशा सादगी से जीते रहे। उन्होंने कभी भी निजी तौर पर धन नहीं बनाया और इसी कारण से बिहार की राजनीति के वे विदेह कहे गए। भोला पासवान शास्त्री का जन्म 21 सितंबर 1914 को पूर्णिया जिले के बैरगाछी गांव में एक साधारण दलित परिवार में हुआ। दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री की डिग्री लेने के कारण उनके नाम के साथ 'शास्त्री' लगा था। भोला पासवान शास्त्री, जवाहरलाल नेहरू के निकटतम नेता थे और बाबा साहब अम्बेडकर के नेहरू जी से मतान्तर होने के बाजजूद नेहरू जी के साथ रहे। बिहार में भोला पासवान शास्त्री आठवें सीएम थे।
इंदिरा गाँधी ने इन्हें तीन दफा बिहार का मुख्यमंत्री और एक या दो बार केंद्र में मंत्री बनाया। मगर इनकी ईमानदारी ऐसी थी कि मरे तो खाते में इतने पैसे नहीं थे कि ठीक से श्राद्ध कर्म हो सके। बिरंची पासवान जो शास्त्री जी के भतीजे हैं, उन्होंने ही शास्त्री जी को मुखाग्नि दी थी। शास्त्री जी को अपनी कोई संतान नहीं थी। विवाहित जरूर थे मगर पत्नी से अलग हो गये थे। पूर्णिया के तत्कालीन जिलाधीश ने इनका श्राद्ध कर्म करवाया था। गांव के सभी लोगों को गाड़ी से पूर्णिया ले जाया गया था। चुंकि मुखाग्नि उन्होंने दी थी सो श्राद्ध भी उनके ही हाथों सम्पन्न हुआ।
सादा जीवन शैली
भोला पासवान शास्त्री के समकालीन पूर्णिया के सांसद फणि गोपाल सेन थे और दोनों सादगी भरे जीवन शैली के लिए जाने जाते थे। बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान शास्त्री की जयंती पूर्णिया में और पटना में राजकीय स्तर पर मनाई जाती है। भोला पासवान शास्त्री को ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में याद किया जाता है जो पेड़ के नीचे जमीन पर कंबल बिछाकर बैठने में संकोच नहीं करते थे। उन्होंने कोई धन संग्रह नहीं किया। उनके परिजन आज भी समान्य जीवन जीते हैं जिन्हें सरकार ने समय-समय पर थोड़ी मदद भी दी है। अब उनके गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क बन गई है।
सीएम, सांसद और मंत्री
भोला पासवान शास्त्री की जयंती के मौके पर भोला पासवान शास्त्री के गांव बैरगाछी और उनके स्मारक स्थल काझा कोठी में माल्यार्पण और सर्वधर्म प्रार्थना सभा की जाती है। वे सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और सार्वजनिक संपत्ति से खुद को दूर रहने के कारण बिहार की राजनीति के 'विदेह' कहे गए। वे 1972 में राज्यसभा सांसद भी मनोनीत हुए और केन्द्र सरकार में मंत्री भी बने।
नहीं जमा की कोई संपत्ति
भोला पासवान शास्त्री ने मिसाल पेश करते हुए पूर्णिया अथवा अपने गांव बैरगाछी में कोई संपत्ति जमा नहीं की और आम आदमी की तरह जिंदगी जी। यहां तक लाभ के पद से परिजनों को दूर रखा। उनका गांव घर और उनके परिजन आज भी सामान्य जिंदगी जी रहे हैं। वे मंत्री और मुख्यमंत्री रहते हुए भी पेड़ के नीचे जमीन पर कंबल बिछाकर बैठने में संकोच नहीं करते थे और वहीं पर अधिकारियों से मीटिंग कर शासकीय संचिकाओं का निपटारा भी कर दिया करते थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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क्रमांक | राज्य | मुख्यमंत्री | तस्वीर | पार्टी | पदभार ग्रहण |