अहमद पटेल

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अहमदभाई मोहम्मदभाई पटेल (अंग्रेज़ी: Ahmedbhai Mohammedbhai Patel, जन्म- 21 अगस्त, 1949, भरूच, गुजरात; मृत्यु- 25 नवंबर, 2020, गुरुग्राम, हरियाणा) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। वह 2001 से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार रहे। 2004 और 2009 में हुए स्थानीय चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन का श्रेय भी काफी हद तक अहमद पटेल ही दिया जाता है। अहमद पटेल कांग्रेस में हमेशा संगठन के आदमी माने गए। वे पहली बार चर्चा में तब आए थे, जब 1985 में राजीव गांधी ने उन्हें ऑस्कर फर्नांडीस और अरुण सिंह के साथ अपना संसदीय सचिव बनाया था। तब इन तीनों को अनौपचारिक चर्चाओं में 'अमर-अकबर-एंथनी' गैंग कहा जाता था। अहमद पटेल के दोस्त, विरोधी और सहकर्मी उन्हें 'अहमद भाई' कहकर पुकारते रहे, लेकिन वे हमेशा सत्ता और प्रचार से खुद को दूर रखना ही पसंद करते थे। सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और संभवतः प्रणब मुखर्जी के बाद यूपीए के 2004 से 2014 के शासन काल में अहमद पटेल सबसे ताकतवर नेता थे।

परिचय

अहमद पटेल का जन्म 21 अगस्त, 1949 को भरूच, गुजरात में हुआ। उनका विवाह 1976 में मेमूना अहमद से हुआ। इनकी दो संतानों में एक बेटा और एक बेटी है। अहमद पटेल मीडिया के सामने बहुत ही कम आते थे। इन्हें गांधी-नेहरू परिवार के काफी करीब माना जाता था।

राजनीतिक सफ़र

अहमद पटेल ने अपनी राजनीतिक सफर की शुरुआत नगरपालिका के चुनाव से की थी, जिसके बाद आगे पंचायत के सभापति भी बन गए। बाद में उन्होंने कांग्रेस पार्टी में प्रवेश किया और उसके बाद राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए। इन्दिरा गांधी के आपातकाल के बाद 1977 में आम चुनाव हुए, जिसमें इन्दिरा गांधी की हार हुई। इसी चुनाव में अहमद पटेल की जीत हुई और पहली बार वे लोकसभा में आए। वे तीन बार लोकसभा सांसद (1977, 1980, 1984)और पांच बार राज्यसभा सांसद (1993, 1999, 2005, 2011, 2017) रहे।

कांग्रेस के प्रति कर्तव्यनिष्ठ

2014 के बाद से, जब कांग्रेस ताश के महल की तरह दिखने लगी थी, तब भी अहमद पटेल मज़बूती से खड़े रहे और महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी के निर्माण में अहम भूमिका निभाई और धुर विरोधी शिवसेना को भी साथ लाने में कामयाब रहे। इसके बाद जब सचिन पायलट ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बग़ावत की, तब भी अहमद पटेल सक्रिय हुए। सारे राजनीतिक विश्लेषक ये कह रहे थे कि पायलट ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह बीजेपी में चले जाएंगे; तब अहमद पटेल पर्दे के पीछे काम कर रहे थे। उन्होंने मध्यस्थों के जरिए यह सुनिश्चित किया कि सचिन पायलट पार्टी में बने रहें।

सक्रियता

यदि कहा जाए कि 2014 के बाद गांधी परिवार की तुलना में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच सद्भाव क़ायम रखने में अहमद पटेल का प्रभाव ज़्यादा दिखा तो गलत नहीं होगा। लेकिन हर आदमी की अपनी खामियां या कहें सीमाएं होती हैं। अहमद पटेल हमेशा सतर्क रहे और किसी भी मुद्दे पर निर्णायक रुख लेने से बचते रहे। जब 2004 में यूपीए की सरकार बनी, तब कपिल सिब्बल और पी. चिदंबरम जैसे कांग्रेसी नेताओं का समूह गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और मौजूदा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की गुजरात दंगों पर भूमिका को लेकर नाराज था। लेकिन अहमद पटेल इसको लेकर दुविधा में थे, उनकी इस दुविधा और हिचक को सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने भांप लिया था और ये दोनों अहमद पटेल की राजनीतिक सूझबूझ पर भरोसा करते थे। यही वजह थी कि अहमद पटेल की सलाह पर दोनों ने अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति धीमी और सहज प्रक्रिया का सहारा लिया।[1]

वहीं, बाहरी दुनिया के लिए अहमद पटेल हमेशा एक पहेली बने रहे। लेकिन जो लोग कांग्रेसी संस्कृति को समझते हैं, उनकी नज़र में अहमद पटेल हमेशा एक पूँजी रहे। वे हमेशा सतर्क दिखते थे, लेकिन थे मिलनसार और व्यावहारिक। उनकी छवि भी अपेक्षाकृत स्वच्छ थी।

मृत्यु

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल (Ahmed Patel Passes Away) का देहांत 25 नवम्बर 2020, बुधवार सुबह 3 बजकर 30 मिनट पर हो गया।[2] अहमद पटेल को तकरीबन एक महीने पहले कोरोना हुआ था। इसके बाद उनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया था। इस दौरान अहमद पटेल के कई अंगों ने भी काम करना बंद कर दिया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गांधी परिवार के बाद कांग्रेस का सबसे ताक़तवर शख़्स (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 25 नवंबर, 2020।

बाहरी कड़ियाँ

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