ब्रज का स्वतंत्रता संग्राम 1857- (2)
ब्रज का स्वतंत्रता संग्राम 1857 |
श्रम-सीकर प्रहार पर जीकर, बना लक्ष्य आराध्य मैं हूँ एक सिपाही, बलि है मेरा अन्तिम साध्य! |
ख़ज़ाना-गारद का विद्रोह
29 मई को मैं छाता पहुँचा। शाम को डैशवुड, काल्विन, गिबन और ज्वायस (मेरा हैडक्लर्क) छाता पहुँचे। उन्होंने मुझे खजाने के विद्रोह को सूचना दी। यह गारद आगरा से आई दूसरी टुकड़ी ने कायमुक्त कर दी थी। उनकी ही निगरानी में खजाने को आगरा पहुँचाने के आदेश आ चुके थे। आगे जो घटा वह पहले ही विस्तार से लिखा जा चुका है। मैंने अनुमान लगाया कि विद्रोही अलीगढ़ की ओर कूँच रहे हैं किन्तु सावधानी के उद्देश्य से मैंने कुछ सवार मथुरा मार्ग पर गुप्त जानकारी के लिये भेजें। लगभग दो घन्टे में वह यह सूचना लेकर लौटे कि विद्रोही पहुँच रहे हैं।
रघुनाथसिंह की अनुशासनहीनता
हम तत्काल कप्तान निक्सन के कैम्प को चल दिये। कोसी से गुजरते हुए मैंने रघुनाथ सिंह को बुलाया। उसने आने से इन्कार कर दिया। कैम्प में मुझे घुसने तक न दिया और न सेठ की तोपें ही दीं। हम निक्सन के कैम्प में उषाकाल में पहुँचे। निक्सन ने विद्रोहियों के पहुँचने के समाचार का विश्वास नहीं किया। फिर भी उसने एक टुकड़ी विद्रोहियों के ख़िलाफ़ भेज दी। नौ बजे समाचार की पुष्टि हुई। विद्रोही कोसी पहुँच रहे थे। निक्सन ने उनसे निपटने की तैयारी की। इस पर सारी सेना के सैनिक विद्रोह पर उतर आये और उन्होंने अपनी बंदूक़ें हम पर तान दी तब निक्सन ने हमें भाग जाने को कहा। बाक़ी फिरंगी आपके साथ सोनाह की ओर चल दिये। मैं और ज्वायस मथुरा लौट आये। हम सवेरे 3 बजे मथुरा आ लगे। हमने छावनी को भस्म और सनुसान पाया। सहायता पाने की आशा में हम आगरा को चल दिये। विद्रोह की ख़बर आनन फानन में चारों तरफ फैल गई और सारा का सारा क्षेत्र एक साथ शासन के विरुद्ध खड़ा हो गया। कई गांवों से हम पर गोलियां दागी गई और हम बाल-बाल ही बच पाये।
फिरंगी मथुरा लौटे
आगरा से हमें कोई भी सहायता न मिली और हम शाम तक मथुरा वापिस लौट आये। हम शहर में सेठ ही हवेली में गये। वहां सेठ ने हमारा कृपापूर्ण स्वागत किया। हमें वहाँ हैशमेन दम्पती मिले। हम शाम को वहाँ पहुँचे मैं कार्यालय पहुँचा तो मैने उसे भस्म पाया। बर्ल्टन की लाश मुझे वहीं परिसर झाड़ियों में मिली। हमने उसे यथा अवसर दफनाया। अनेक सूत्रों से मैंने समाचार एकत्र किये और उनकी जाँच पड़ताल सावधानी से की। ख़ज़ाना लद जाने पर बर्ल्टन ने कूँच का आदेश दिया। इस पर सैनिक ने उसे मार डाला और खजाने की गाड़ियाँ दिल्ली की ओर चल दीं। 3 जून की शाम को आगरा से लौटने पर मैंने लूटे गये सामान की खोज की। लुटेरों को खोजा। परिणामत: लूट के माल का एक अच्छा ख़ासा हिस्सा टूटी फूटी दशा में मिल गया। कुछ लुटेरों को भी धर दबोचा गया।
कचहरी पर हमला
शासन की सूचनार्थ यह भी निवेदन है कि विद्रोहियों ने सहार और कोसी की कचहरियों को भी लूट लिया और रिकार्ड जला डाले गये। कोसी दिल्ली मार्ग पर है और कुछ दिन पूर्व सुरक्षा के उद्देश्य से मैने सहार तहसील छाता से कोसी स्थानान्तरित कर दी थी। सदर-कचहरी के पास ही हजूर तहसील के रिकार्ड रख दिये गये थे। एक भागे हुए तहसील के चपरासी से आज सूचना मिली है कि बीती कल नौहझील की कचहरी भी लूट ली गई और असंख्य बलबाइयों द्वारा उनके भी रिकार्ड जला डाले गये। राया का थाना भी फूँक डाला गया है और ग्रामीणों में उसके रिकार्ड भी फूँक डाले हैं।
प्रशासन लकवाग्रस्त
उक्त विवरण से आपको यह भली भाँति महसूस हो रहा होगा कि ज़िले में मथुरा, वृन्दावन और कुछ दूसरे शहरों को छोड़कर कहीं शासन नाम की कोई वस्तु नहीं रह गई। क़ानून को लकवा मार गया है। अपराधियों के ख़िलाफ़ किसी प्रकार की भी कार्यवाही का क्रियान्वयन अव्यावहारिक हो गया है। शासन के अफसर अपने कर्तव्य पालन में असहाय है। अन्त में मुझे कहना है कि मेरा कार्यालय अस्थायी रूप से सेठों के शहर स्थित भवन में चल रहा है और अत्यन्त अपरिहार्य काम ही यहाँ से चलाया जा सकता है।
देवीसिंह ने स्वयं को राया का राजा घोषित किया
थाना राया के बरकन्दाज दिलदार खाँ का बयान-
पिता का नाम- सेर खाँ पठान
आयु 60 वर्ष
आगरा का निवासी
व्यवसाय नौकरी
प्रश्न- उस समय नेता कौन था, जब सहार के निवासी लालजी आदि तथा चौदह तरफ राया के जमींदारों ने राया थाना और सिपाहियों तथा थाने के सामान को लूटा।
उत्तर- चौदह तरफ राया के जमींदारों ने एक हज़ार आदमी लेकर मुकीम पड़ाव थी तथा कस्बे और बाज़ार के निवासियों के नमक और चने से लदी बैल गाड़ियों को लूट लिया। देवी सिंह ने स्वयं को राजा घोषित किया और वह वहाँ जम बैठा। उसने आठ दिन तक थाने का घिराव रखा था। तब उसने कास्टेबिलों पर तथा थाने के रिकार्डस पर हमला किया। तब हम सब अर्थात कान्स्टेबिलों को साथ लेकर थानेदार भाटगंज चला गया। मैंने देखा कि वे असंख्य आदमी थे। उनके नाम मुझे याद नहीं हैं, हाँ, यदि मैं उन्हें देखूँ तो पहचान सकता हूँ। जब मजिस्ट्रेट आये तो उन्होंने श्रीराग और देवींसिह को फाँसी पर लटका दिया और थाना फिर से कायम किया।
आगरा में विद्रोह का सूत्रपात
'बौम्बे टाइम्स' के सम्पादक के नाम डब्ल्यू. मूर सी. एस.के पत्र का अनुवाद- '10 मई, रविवार को मेरठ में अभिनीत हो रहे दर्दनाक दृश्य का तार-समाचार हमें मिला। किन्तु दिल्ली के सन्दर्भ में इस गम्भीर व दुखद नाटक की नियताप्ति किसी भी माध्यम से हमारी जानकारी में नहीं लाई गई। इसलिये इस समाचार से ऐसी गहरी सनसनी व्याप्त नहीं हुई जो ऐसे भयंकर काँड से होनी चाहिये थी। मंगलवार तक बहुत लोग नहीं जान पाय कि यह असाधारण कांड घट गया है।' डाक-संचार साधन ठप हो गये। मेरठ के साथ तार संचार बन्द होने के कारण दिल्ली से प्रशासनिक सम्पर्क छिन्न-भिन्न हो गया, क्योंकि मेरठ होकर ही दिल्ली को तार जाता था। इतवार की डाक सोमवार को यथावत आई, मेरठ से भी और दिल्ली से भी। परन्तु तत्पश्चात डाक का गमनागमन बन्द हो गया।
विद्रोह से पूर्व आगरा
11 मई 1857 ई. को मेरठ काण्ड के समाचार तार द्वारा उत्तरी पश्चिमी शहरों को भेजे गये थे। ये अधिकारी से अधिकारी को नहीं बल्कि व्यक्तियों से व्यक्तियों तक पहुँचाये गये। यह समाचार अधिकारी वृत्त में इतनी शीघ्रता के साथ प्रसारित हो गया कि लेफ्टिनेंट गवर्नर के कानों तक पहुँच गया। जिसकी शक्ति और चतुराई पर सारे भारत की सम्पन्नता और सम्मान निर्भर करता था, वह राजनायिक इस धक्के के लिए कतई तैयार न था, जिसने संप्रभुता की जड़ पर चोट की थी, जिसकी अपराजेय और सार्वभौम नीतियां उस शताब्दी की विशेषतायें थी। उसका तात्कालिक विचार यह था कि वह एक स्थानीय गदर है और समूची सेना में वह शत्रुता नहीं फैलेगी तथा सूबों में जहाँ तहाँ एक चिनगारी यहाँ तो दूसरी कौंध वहाँ सैनिक मुख्यावासों पर हो सकती है। उसका यह भी विचार था कि सैनिकों का भारी हिस्सा अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान रहेगा और सैनिक छावनी में हुए आंशिक विद्रोह को शान्त करने में शासन की सहायता करेगा। अपनी योजना बनाने से पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर ने और समाचारों की दूरदर्शी प्रतीक्षा की। लखनऊ से प्राप्त एक पत्र से यह उसे उसी दिन कुछ देर बाद मिला। उस पत्र ने उजागर किया कि भारतीय सेना ने एक विद्रोह का षडयंत्र रचा है और सूचित किया कि लाहौर के अधिकारी इस बड़े आगामी संकट का सामना करने की सक्रिय तैयारी में है। 12 मई को दिल्ली हत्याकाण्ड की अपुष्ट अफवाहें लेफ्टिनेंट गवर्नर के कानों तक पहुँची।
जैसा कि अन्देशा किया गया था कि तीसरी लाइट कैवेलरी दिल्ली और मेरठ से आ पहुँची है और छावनी के सिपाहियों को इस उद्देश्य से तोड़ फोड़ रही है कि वे तत्काल क़िले को और तोपखाने को छीन ले। तीसरी कैवेलरी की एक कम्पनी इस स्पष्ट उद्देश्य से क़िले में घुस आई कि सिपाही तोपखाने को कार्य मुक्त कर सके, जो डाँवाडोल हो रहा था। इसी के साथ साथ दोपहर में सरकारी कार्यालय यकायक बन्द हो गये और सिविल लाइन्स से शहर में होकर क़िले की ओर निकले हुए विविध रंगों के हैट पहने हुए बालक, पुरुष और स्त्रियाँ डरे हुए सवारियों को पक्तियों में जाते हुए देखे गये। आगरा की स्थानीय जनता को इस आकाशीय संकट का न तो कोई संकेत दिया गया था और न ही कोई शब्द कहा गया था। सरकारी कार्यालयों के स्थानीय कर्मचारियों को उनके घर एक रीति से भेज दिया गया था। यह उनकी समझ में नहीं आ रहा था। कि ईसाइयों के रोकने से उनमें अविश्वास व्यक्त किया गया था कि शायद उनकी क़िले तक की संक्षिप्त यात्रा का भी भेद उजागर हो सकता है।
दिल्ली का शाहजादा आगरा में
समाचार, दिनांक 22 मई 1857 ई. हरकारु लिखता है कि उत्तरी पश्चिमी सूबे के सचिव मूर के साथ दिल्ली के बादशाह का बेटा रुका हुआ है। वह अपनी भेंट से विद्रोहियों के इरादों के साथ अपने पक्षधर होने के सन्देह को दूर करने को आशान्वित है।
आगरा में तैयारियाँ
यद्यपि कार्यालय बन्द नहीं है किन्तु काम काज सामान्यत: निलम्बित है पिछली परसों आतिशबाजों ने नेटिव इन्फेंट्री के अस्पताल को फूँक डाला है। शहर में शरारत है किन्तु जैसाकि आधी रात कहा गया था कोई भी अपराधी पकड़ा नहीं जा सका।
मथुरा से आगरा में आतंक
मई 31, 1857 ई.- आज सवेरे दूसरा आतंक फैल गया। वह इस ख़बर के कारण हुआ कि मथुरा को लूट लिया गया, कि सैनिकों ने विद्रोह कर दिया है और जेल में घुसने को और बन्दियों को छुड़ाने वाले हैं और कि शहर लूटने के लिये टूट पडने वाले हैं। वस्तुत: हर दूकान बन्द हो गई और दिनदहाड़े हर दिशा में हथियार चमकने लगे। उन निवासियों द्वारा हर तरह की झूठी अफवाहें जड़ ली गईं, जो वास्तविकता से अनभिज्ञ थे। गवर्नमेंट का मज़ाक़ बनाने के लिये असंख्य तुकबन्दियों में से एक तुकबन्दी इस प्रकार है-
छीना ना मुल्क हिन्द का ईरान या रूस ने,
तमाम किया अंग्रेज़ को कारतूस ने ।
एक दूसरी तुकबन्दी-
ना ईरान ने किया, ना शाह रूस ने,
अंग्रेज़ को तबाह किया कारतूस ने ।
मथुरा के विद्रोह की गूँज आगरा में
मथुरा में 30 मई के सायं 4 बजे विद्रोह हुआ और उसका समाचार आगरा रात 11 बजे पहुँच गया। काल्विन ने पाया कि दोनों इन्फेंट्रीयों ने दुश्मनी इस प्रकार निभाई तो उसने शीघ्र ही सुनिश्चित कर लिया कि इन पर विश्वास करना निर्बलता ही होगी। अत: अगले सवेरे इन दोनों रेजीमेंटों को नि:शस्त्र करने का निश्चय किया। एक व्यवस्थित सेना के रूप में तो उसे रहने दिया गया, परन्तु उनकी बंदूक़ें छीन ली गईं। इन इरादे की ख़बर आगरावासियों को फौरन पहुँचा दी गई। 31 मई रविवार की रात मै 1:30 बजे जग गया और अपनी ओर से लोगों को चेतावनी देने राउन्ड पर चला गया कि उपद्रव की स्थिति में वे अपने अपने कर्तव्य पर दृढ़ रहें। परेड पर नि:शस्त्रीकरण शान्तिपूर्वक सम्पन्न हुआ। जेल के पास नियुक्त कम्पनी में कुछ सुगबुगाहट हुई। इसे मैंने बैल्डरों पहाड़ी की चोटी से देखा, जहाँ हम लोग सुरक्षार्थ चले गये थे। कम्पनी हथियार लेकर भागी किन्तु तभी सभी ने हथियार शान्तिपूर्वक रख दिये। 44 वीं पलटन के काफ़ी सिपाही खिसक गये थे और 67 वीं के अनेक लोग अवकाश पर अपने घरों को चले गये। यह उपाय बड़ा नाजुक था। इस रेजीमेंट के एक हिस्से से वास्तविक ख़तरा संभावित समझा गया था। किन्तु इससे तसल्ली हो गई और चले गये लोगों में भी विश्वास वापिस हुआ।
पलटनें विद्रोहियों के साथ
मथुरा विद्रोह की श्रृंखला में अग्रेतर एक और घटना घटित हो गई। भरतपुर और अलवर सेनायें होडल में थी। इनके साथ कमिश्नर हार्वे, कप्तान निक्सन और दूसरे फिरंगी अधिकारी थे। यह बल कमांडर इन चीफ के बल के साथ सहयोग करने और बागियों को रोकने के लिये था। लेकिन मथुरा के विद्रोही खजाने को लेकर सीधे इसी दिशा में कूँच किये थे। मथुरा का कलक्टर मार्क थॉर्नहिल होडल से 8 मील दूर कोसी में था। उसके साथ थोड़े से भरतपुर के सवार थे। खजाने के साथ जब विद्रोही दिखे, तो भरतपुर के घुड़सवारों द्वारा उनसे भ्रातृत्व कर लिया दिखा। 31 को मार्क थॉर्नहिल होडल पहुँचा। दोपहर तक विद्रोही वहाँ पहुँच लिये थे और समूची सेना अस्त व्यस्त थी। मार्क थॉर्नहिल मथुरा को भाग लिया और यहाँ वह कल आया है। बयान से यह स्पष्ट नहीं होता कि भरतपुर जवानों का इरादा क्या था? किन्तु उसके विवरण में यह अन्तर्निहित है कि अलवर सेना ने विद्रोहियों के साथ भाईचारा निभाया और भरतपुर सेना ने उनके विरुद्ध कार्य नहीं किया। इस बीच पूरे देश की हर छावनी आक्रोश में है। जहाँ यूरोपियन सेना नहीं है, वहाँ मुकदमे की कार्यवाही कितनी नाजुक है, इसकी कल्पना की जा सकती है। आश्चर्य इस बात का है कि कानपुर, इलाहाबाद, बनारस, आजमगढ़ आदि छावनियाँ शान्तिपूर्ण कैसे हैं? वहाँ 600 यूरोपियन और तोपखाने के होने से ही जो कुछ किया जा सका ठीक रहा। अन्यथा हम पूरी तरह भारतीय सिपाहियों की दया पर निर्भर थे। किन्तु यह तथ्य -कि दिल्ली अब भी विद्रोहियों के अधिकार में है। बड़ी असुरक्षा का तत्व है। इस्लाम धर्म की गद्दी की पुन: स्थापना के प्रयास करने के कारण ही कट्टर मुसलमानों का विश्वास ही इन उपद्रवों के लिये उत्तरदायी है। इसीलिये चारों ओर से एक ही आवाज उठती है कि कमांडरइनचीफ दिल्ली पर फिर अधिकार करे।
इंजीनियरविंग के कॉक्स और लेफ्टिनेंट ग्रीथैड के नेतृत्व में आगरा के स्वयंसेवकों के एक जत्थे के उत्कट प्रयासों से दिल्ली-मेरठ का रास्ता एकबार फिर खुल गया है क्योंकि मीलों तक जो तार काट डाले गये हैं, उनका कहीं विरोध नहीं हुआ बल्कि हाथरस और अलीगढ़ के ग्रामीणों ने उनका स्वागत भी किया। वस्तुत: इस घटना से यह प्रदर्शित होता है कि जनता और सरकार के बीच कोई विवाद नहीं है बल्कि सरकार और देशी सैनिकों के बीच है। हाँ, जहाँ-जहाँ मुस्लिम धार्मिक भावनाओं को उभार कर अवसर अनुकूल भुनाने की कोशिशें की गई हैं, वहाँ बात दूसरी है।अलीगढ़ में विद्रोह हाने के कारण मेरठ-दिल्ली के बीच जो तारकटी हुई है, इससे हमारी स्थिति बहुत नाजुक है। दिनांक 31 मई को काल्विन को कमांडरइनचीफ का 16 मई का पत्र मिला है। अब चूँकि अलीगढ़ साफ हो चुका है तो अब बेहतर संचार की आशायें बँधी है। गत रात करनाल से कमांडरइनचीफ का 23 मई का पत्र बेहतर व्यवस्था को समझाते हुए मिला है। उसमें यह भी कहा गया है कि वह वहाँ दिनांक 8 जून से पहले ही पहुँच लेगें। 30 मई को दिल्ली के विद्रोहियों को पराजित कर दिया गया है। यह कार्यवाही ही निरन्तर चार घन्टे तक चली। दूसरे दिन दुश्मन ने सामना नहीं किया । वहाँ गोरखा रेजीमेंट तथा थोड़े से यूरोपियनों के आजाने से हमारी सेना की शक्ति बढ़ी है जो बुलन्दशहर से आये थे। इस बीच अम्बाला से आई कुमक का भी आधिकारिक समाचार मिला है। इसकी अग्रिम टुकड़ी दिल्ली से दो कूँच की दूरी पर है। ईश्वर की दुआ रही तो जल्दी ही काम पूरा हो जायगा। क़िले को बिना तोपों के, छीनने में यदि कोई कठिनाई आयेगी तो वे तोपें भी उस कुमक सेना के पीछे पीछे आ रही हैं। 21 मई को वे फिल्लौर से चल चुके हैं। इसके अतिरिक्त पंजाब गाइड 9 जून से पूर्व दिल्ली पहुँच लेंगे।
इस बीच जैसा कि अपेक्षा की गई थी, सिपाहियों में असन्तोष बढ़ रहा है। विद्रोहियों का एक दल लखनऊ से सीतापुर की ओर कूँच कर रहा है। इन विद्रोहियों ने कन्नौज पर गंगा पार करके दिल्ली की ओर कूँच शुरू कर दिया है। इससे मैनेपुरी में हमारे थोड़े से जवानों का संकट बढ़ गया है। उन्होंने ग्रांडट्रंक रोड पर उपद्रव किये हैं और तार संसाधनों को तहस-नहस करके वे अलीगढ़ आगरा के बीच भौगांव पर पड़ाव डाले हुए हैं। हमारे डाक संस्थानों को भी वे नष्टभ्रष्ट कर चुके हैं। अत: कानपुर और कलकत्ता के साथ हमारा सीधा सम्पर्क टूट गया हैं। ये गुंडे मैनपुरी से गुजरकर अलीगढ़ की ओर चल पड़े हैं।
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