मुक्तामणि देवी

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मोइरांगथेम मुक्तामणि देवी (अंग्रेज़ी: Moirangthem Muktamani Devi, जन्म- 1958, मणिपुर) भारत की जानीमानी महिला व्यवसायी हैं। आप वह महिला हैं, जिन्होंने जीवन की कठिनाइयों को बचपन से झेला, लेकिन हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी खुद की 'मुक्ता शूज इंडस्ट्री' खड़ी की है। मुक्तामणि देवी ने अपने समाज के लोगों को बेहतर जिंदगी देने की दिशा में बहुत ही अहम काम किया है। वह 1000 से ज़्यादा लोगों को जूते बुनना सीखा चुकी हैं। उनकी फै़क्ट्री में हर उम्र के लोगों के लिए जूते बनाए जाते हैं। उनकी कंपनी ऑस्ट्रेलिया, यूके, मेक्सिको, अफ़्रीकी देशों में जूते एक्सपोर्ट करती है। मुक्तामणि देवी अपने घर पर ही मुफ़्त में लोगों को बुनाई का काम सिखाती हैं। इसके बाद या तो मुक्तामणि देवी उन्हें काम पर रख लेती हैं या फिर कारीगर अपना काम शुरू करता है। मुक्तामणि देवी ने ख़ुद तो अपनी क़िस्मत लिखी है, आज वो सैंकड़ों लोगों को भी अपनी क़िस्मत लिखने का मौक़ा दे रही हैं।

परिचय

मुक्तामणि देवी का शुरुआती जीवन कठिनाइयां पार करते हुए बीता। उनका जन्म दिसंबर 1958 में हुआ। विधवा मां ने उन्हें पाल-पोस कर बड़ा किया और सिर्फ़ 16-17 साल की उम्र में ही मुक्तामणि देवी की शादी हो गई। उनकी चार संतानें हुईं। परिवार का पेट पालने के लिए वो दिन में धान के खेत में काम करतीं और शाम को सब्ज़ियां बेचती। थोड़े और पैसे कमाने के लिए रात में वे झोले, हेयरबैंड्स आदि बुनतीं।[1] बावजूद इसके उनकी हालात इतनी खराब थी कि वह अपनी बेटी के लिए एक जूता तक नहीं खरीद सकती थीं। और यहीं से शुरू हुई एक मां की कहानी

नया आयाम

मुक्तामणि देवी की दूसरी बेटी के जूते के तलवे फट गए थे। उन्होंने ऊन की मदद से ही एक जोड़ी जूते के तलवे बुन डाले और जूतों को पहनने लायक बना दिया। उनकी बेटी ऐसे जूते पहन कर स्कूल जाने में डर रही थी कि कहीं वहां पर टीचर से डांट ना पड़ जाए। स्कूल में जैसे ही टीचर की नजर जूतों पर पड़ीं तो टीचर ने लड़की को अपने पास बुलाया। लड़की बेहद डरी हुई थी, लेकिन उसके बाद जो हुआ उसी से इस कहानी को एक नया आयाम मिला। टीचर ने पूछा कि ये जूते किसने बनाए और जब लड़की ने बताया कि उसकी मां ने ये जूते बनाए हैं तो टीचर ने उसे डांटा नहीं, बल्कि उन्होंने भी एक जोड़ी जूते का ऑर्डर दे डाला।[2]

मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री

बेटी के स्कूल में जो घटना घटी, उसके बाद मुक्तामणि को जैसे उम्मीद की एक किरण मिल गई थी। उन्होंने ऊन के जूते बनाने शुरू कर दिए और उनके जूते हाथों-हाथ बिकने भी लगे। लोकप्रियता बढ़ने पर 1990-1991 में उन्होंने अपने ही नाम पर 'मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री' की शुरुआत कर दी। वह अपने जूतों को ट्रेड फेयर और एग्जिबिशन में भी बेचने लगीं। देखते ही देखते उनके बनाए जूतों की मांग इतनी बढ़ी कि विदेशों तक से इन जूतों के ऑर्डर आने लगे। आज उनकी फैक्ट्री के जूते ऑस्ट्रेलिया, यूके, मैक्सिको, अफ्रीका जैसे देशों में निर्यात होते हैं।

पद्म सम्मान

भारत सरकार ने मुक्तामणि देवी को साल 2022 में पद्म श्री से सम्मानित किया है।

मुक्तामणि देवी को पद्म श्री का सम्मान इसलिए नहीं दिया गया कि उन्होंने 'मुक्ता शूज इंडस्ट्रीज' शुरू की और गरीबी से निकल गईं। दरअसल, मुक्तामणि देवी ने अपना जीवन बेहतर बनाने के साथ-साथ समाज के बहुत से लोगों का जीवन बेहतर बनाया है। वह 1000 से भी अधिक लोगों को ऊन के जूते बुनना सिखा चुकी हैं। अब उनकी फैक्ट्री में हर उम्र के लोगों के लिए जूते बनते हैं और उनसे जूते बनाना सीखकर बहुत से लोगों के एक बेहतर रोजगार मिला है। वह अपने घर में ही मुफ्त में लोगों को जूते बनाना सिखाती हैं। उनमें से कुछ लोगों को वह अपने साथ काम का ऑफर भी दे देती हैं, तो कुछ अपना खुद का काम शुरू कर लेते हैं।[2]

कैसे बनाए जाते हैं ऊनी जूते?

ऊन के एक जोड़ी जूते बनाने में कम से कम तीन दिन का वक्त लगता है। इन्हें कई हिस्सों में बनाया जाता है। पुरुष जूतों के सोल बनाते हैं, जबकि महिलाएं बुनाई का काम करती हैं। एक दिन में एक व्यक्ति करीब 100-150 सोल बना सकता है और उसे 50 रुपये प्रति सोल मिलता है। वहीं एक जूते की बुनाई के लिए 30-35 रुपये दिए जाते हैं। एक महिला को एक दिन के काम के लिए करीब 500 रुपये मिलते हैं। इन जूतों की कीमत पहले 200-800 रुपये के करीब भी, लेकिन वक्त गुजरने के साथ-साथ कीमत बढ़कर 1000 रुपये हो गई है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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