जम्मू और कश्मीर

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जम्मू और कश्मीर
राजधानी जम्मू (शीतकालीन)
श्रीनगर (ग्रीष्मकालीन)
राजभाषा(एँ) उर्दू, कश्मीरी, पहाड़ी, लद्दाखी और डोगरी
स्थापना 1947/01/26
जनसंख्या 10,143,700[1]
· घनत्व 100 /कि.मी2 (259 /sq mi) [2] /वर्ग किमी
क्षेत्रफल 222,236 कि.मी2 (85806 sq mi)
तापमान 23 °C (औसत)
· ग्रीष्म 23.4-43.0 °C
· शरद 4.3-26.2 °C
ज़िले 22
सबसे बड़ा नगर श्रीनगर
लिंग अनुपात 1000:923 ♂/♀
साक्षरता 54.46%%
· स्त्री 41.82%%
· पुरुष 65.75%%
राज्यपाल नरेंद्रनाथ वोहरा
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह
विधानसभा सदस्य 89 + 36
बाहरी कड़ियाँ अधिकारिक वेबसाइट
अद्यतन‎

एक भारतीय राज्य, जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में पश्चिमी पर्वतश्रेणियों के निकट स्थित है। पहले यह भारत की बड़ी रियासतों में से एक था। यह पूर्वात्तर में सिंक्यांग का स्वायत्त क्षेत्र व तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (दोनों चीन के भाग) से, दक्षिण में हिमाचल प्रदेशपंजाब राज्यों से, पश्चिम में पाकिस्तान और पश्चिमोत्तर में पाकिस्तान अधिकृत भूभाग से घिरा है। जम्मू-कश्मीर राज्य के पश्चिम मध्य हिस्से के पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र में देवसई पर्वत है।

इतिहास

राजतरंगिणी तथा नीलम पुराण नामक दो प्रामाणिक ग्रंथों में यह आख्‍यान मिलता है कि कश्‍मीर की घाटी कभी बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। इस कथा के अनुसार कश्‍यप ऋषि ने यहाँ से पानी निकाल लिया और इसे मनोरम प्राकृतिक स्‍थल में बदल दिया, किंतु भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण खदियानयार, बारामुला में पहाड़ों के धंसने से झील का पानी बहकर निकल गया और इस तरह 'पृथ्‍वी पर स्‍वर्ग' कहलाने वाली कश्‍मीर की घाटी अस्तित्‍व में आई। ईसा पूर्व तीसरी शताब्‍दी में सम्राट अशोक ने कश्‍मीर में बौद्ध धर्म का प्रसार किया। बाद में कनिष्क ने इसकी जड़ें और गहरी कीं। छठी शताब्‍दी के आरंभ में कश्‍मीर पर हूणों का अधिकार हो गया।

त्सो मोरिरी झील, लद्दाख
Tso Moriri Lake, Ladakh

यद्यपि सन 530 में घाटी फिर स्‍वतंत्र हो गई लेकिन इसके तुरंत बाद इस पर उज्जैन साम्राज्‍य का नियंत्रण हो गया। विक्रमादित्‍य राजवंश के पतन के पश्‍चात कश्‍मीर पर स्‍थानीय शासक राज करने लगे। वहां हिंदू और बौद्ध संस्‍कृतियों का मिश्रित रूप विकसित हुआ। कश्‍मीर के हिन्‍दू राजाओं में ललितादित्‍य (सन 697 से सन 738) सबसे प्रसिद्ध राजा हुए जिनका राज्‍य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण, उत्तर-पश्चिम में तुर्किस्‍तान, और उ‍त्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। ललितादित्‍य ने अनेक भव्‍य भवनों का निर्माण किया। कश्‍मीर में इस्‍लाम का आगमन 13 वीं और 14वीं शताब्‍दी में हुआ। मुस्लिम शासको में जैन-उल-आबदीन (1420-70) सबसे प्रसिद्ध शासक हुए, जो कश्‍मीर में उस समय सत्ता में आए, जब तातरो के हमले के बाद हिंदू राजा सिंहदेव भाग गए। बाद में चक शासकों ने जैन-उल-आवदीन के पुत्र हैदरशाह की सेना को खदेड़ दिया और सन 1586 तक कश्‍मीर पर राज किया। सन 1586 में अकबर ने कश्‍मीर को जीत लिया। सन 1752 में कश्‍मीर तत्‍कालीन कमज़ोर मुग़ल शासक के हाथ से निकलकर अफ़ग़ानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के हाथों में चला गया। 67 साल तक पठानों ने कश्‍मीर घाटी पर शासन किया।

जम्‍मू का उल्‍लेख महाभारत में भी मिलता है। हाल में अखनूर से प्राप्‍त हड़प्‍पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्‍त काल की कलाकृतियों से जम्‍मू के प्राचीन स्‍वरूप पर नया प्रकाश पड़ा है। जम्‍मू 22 पहाड़ी रियासतों में बंटा हुआ था। डोगरा शासक राजा मालदेव ने कई क्षेत्रों को जीतकर अपने विशाल राज्‍य की स्‍थापना की। सन 1733 से 1782 तक राजा रंजीत देव ने जम्‍मू पर शासन किया किंतु उनके उत्तराधिकारी दुर्बल थे, इसलिए महाराजा रणजीत सिंह ने जम्‍मू को पंजाब में मिला लिया। बाद में उन्‍होंने डोगरा शाही खानदान के वंशज राजा गुलाब सिंह को जम्‍मू राज्‍य सौंप दिया। 1819 में यह पंजाब के सिक्ख शासन के अंतर्गत आया और 1846 में डोगरा राजवंश के अधीन हो गया। गुलाब सिं‍ह रणजीत सिंह के गवर्नरों में सबसे शक्तिशाली बन गए और लगभग समूचे जम्‍मू क्षेत्र को उन्‍होंने अपने राज्‍य में मिला लिया।

आज का स्वरूप

अपने वर्तमान स्वरूप में जम्मू - कश्मीर का अंचल, 1846 में रूपायित हुआ। जब प्रथम सिक्ख युद्ध के अंत में लाहौर और अमृतसर की संधियों के द्वारा जम्मू के डोगरा शासक राजा गुलाब सिंह एक विस्तृत, लेकिन अनिश्चित से हिमालय क्षेत्रीय राज्य, जिसे 'सिंधु नदी के पूर्व की ओर रावी नदी के पश्चिम की ओर' शब्दावली द्वारा परिभाषित किया गया था, के महाराजा बन गए। अंग्रेज़ों के लिए इस संरक्षित देशी रियासत की रचना ने उनके साम्राज्य के उत्तरी भाग को सुरक्षित बना दिया था, जिससे वे 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान सिंधु नदी तक और उसके आगे बढ़ सकें। इस प्रकार यह राज्य एक जटिल राजनीतिक मध्यवर्ती क्षेत्र का भाग बन गया जिसे अंग्रेज़ों ने उत्तर में अपने भारतीय साम्राज्य और रूसी व चीनी साम्राज्य के बीच स्थापित कर दिया था। गुलाब सिंह का इस पर्वतीय अंचल पर शासनाधिकार मिल जाने से लगभग एक - चौथाई सदी से पंजाब के सिक्ख साम्राज्य की उत्तरी सीमा रेखा के पास की छोटी - छोटी रियासतों के बीच चल रही मुहिम और कूटनीतिक चर्चा का अंत हो गया।

19वीं सदी के इस अंचल की सीमा - निर्धारण के कुछ प्रयास किए गए, लेकिन सुस्पष्ट परिभाषा करने के प्रयत्न अक़्सर इस भूभाग की प्रकृति और ऐसे विशाल क्षेत्रों के कारण, जो स्थायी बस्तियों से रहित थे, सफल नहीं हो पाए। उदाहरणार्थ - सुदूर उत्तर में महाराजा की सत्ता कराकोरम पर्वत श्रेणी तक फैली हुई थी। लेकिन उसके आगे तुर्किस्‍तान और मध्य एशिया के सिक्यांग क्षेत्रों की सीमा रेखा पर एक विवादास्पद क्षेत्र बना रहा और सीमा रेखा कभी निश्चित नहीं हो पाई। इसी प्रकार की शंकाएँ उस सीमा क्षेत्र के बारे में रही, जो उत्तर में अक्साई चीन को आस पास से घेरे हुए है और आगे जाकर तिब्बत की सुस्पष्ट सीमा रेखा से मिलता है और जो सदियों से लद्दाख क्षेत्र की पूर्वी सीमा पर बना हुआ था। पश्चिमोत्तर में सीमाओं का स्वरूप 19वीं शताब्दी के आख़िरी दशक में अधिक स्पष्ट हुआ। जब ब्रिटेन ने पामीर क्षेत्र में सीमा निर्धारण सम्बन्धी समझौते अफ़ग़ानिस्तान और रूस के साथ सम्पन्न किए। इस समय गिलगित, जो हमेशा कश्मीर का भाग समझा जाता था, रणनीतिक कारणों से 1889 में एक ब्रिटिश एजेंट के तहत एक विशेष एजेंसी के रूप में गठित किया गया। सन 1947 में जम्‍मू पर डोगरा शासकों का शासन रहा। इसके बाद महाराज हरि सिंह ने 26 अक्‍तूबर, 1947 को भारतीय संघ में विलय के समझौते पर हस्‍ताक्षर कर दिये।

स्थिति

जम्‍मू और कश्‍मीर राज्‍य 32-15 और 37-05 उत्तरी अक्षांश और 72-35 तथा 83-20 पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। भौगोलिक रूप से इस राज्‍य को चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है।

  1. पहाड़ी और अर्द्ध-पहाड़ी मैदान जो कंडी पट्टी के नाम से प्रचलित है;
  2. पर्वतीय क्षेत्र जिसमें शिवालिक पहाड़ियाँ शामिल हैं;
  3. कश्‍मीर घाटी के पहाड़ और पीर पांचाल पर्वतमाला तथा
  4. तिब्‍बत से लगा लद्दाख और करगिल क्षेत्र।

भौगोलिक तथा सांस्‍कृतिक रूप से राज्‍य के तीन ज़िला क्षेत्र जम्‍मू कश्‍मीर और लद्दाख हैं।

राजधानी

इस राज्य की राजधानी ग्रीष्‍मकाल में श्रीनगर और शीतकाल में जम्‍मू राजधानी रहती है।

जलवायु

राज्य का 90 प्रतिशत से अधिक भाग पहाड़ी क्षेत्र है। इस क्षेत्र को भौगोलिक आकृति की दृष्टि से इस सात भागों में बाँटा गया है। जो पश्चिमी हिमालय के संरचानात्मक घटकों से जुड़े हैं। दक्षिण पश्चिम से पूर्वोत्तर तक इन क्षेत्रों में मैदान, निचली पहाड़ियाँ, पीर पंजाल पर्वत श्रेणी, कश्मीर की घाटी, वृहद हिमालय क्षेत्र, ऊपरी सिंधु घाटी और कराकोरम पर्वत श्रेणी शामिल है। जलवायु की दृष्टि से इसमें पूर्वोत्तर की आल्पीय (पहाड़ी) जलवायु से लेकर दक्षिण—पश्चिम में उपोष्ण तक की विविधता है। औसत वार्षिक वर्षा उत्तर में 75 मिमी से लेकर दक्षिण-पूर्व में 1150 मिमी तक है।

भूगोल

भौगोलिक रूप से इस राज्य को निम्न प्रकार से विभाजित किया जाता है-

डल झील, श्रीनगर
Dal Lake, Srinagar

मैदान

जम्मू क्षेत्र में संकीर्ण मैदानी प्रवेश की विशेषता तराइयों से निकली जलधाराओं के द्वारा जमा अवसाद और दोमट मिट्टी व लोएस (वायु के द्वारा लाकर जमा की गई मिट्टी) से ढके एकदम अलग हो चुके अपरदित चट्टान से निर्मित रेतीले जलोढ़ पंखों के अंतःबंधन हैं। जो अभिनूतन (प्लीस्टोसीन) युग (यानी 10 हज़ार से 16 लाख वर्ष पुराना) के हैं। यहाँ वर्षा 380 से 500 मिमी वार्षिक तक होती है। गर्मी के मौसम में (जून से सितंबर में) जब मानसूनी हवाएँ चलती हैं, तब तेज़ लेकिन अनियमित फुहारों के रूप में वर्षा होती है। अंदरूनी इलाक़ा पेड़ों से पूरी तरह विहीन हो गया है और कंटीली झाड़ियाँ या मोटी घास ही यहाँ की मुख्य वनस्पति है।

तराई क्षेत्र

हिमालय की तराइयों से, जिनकी ऊँचाई 610 से 2134 मीटर तक है, बाहरी और भीतरी प्रक्षेत्र निर्मित है। बाहरी परिक्षेत्र की रचना बलुआ पत्थर, चिकनी मिट्टी, पंक और संपिड़ित चट्टानों से हुई है। ये क्षेत्र हिमालय की वलन गतिविधि से प्रभावित होकर और अपरदन के कारण लम्बे पर्वतीय कटकों और घाटियों (दून) के आकार के हो गए हैं। अंदरूनी प्रक्षेत्र अधिक भीमकाय तलछटी चट्टानों से, जिसमें मिओसीन युग (लगभग 53 से 237 लाख वर्ष पूर्व) के लाल बलुआ पत्थर शामिल हैं, से बना है। जिनके मुड़ने टुटने और क्षारित होने से खड़ी ढलान वाले पर्वत स्कंधों व पठारों का निर्माण हुआ। नदी घाटियों की कटान तीखी व सीढ़ीदार है और भ्रंशों से ऊधमपुर तथा पुंछ जैसे जलोढ़ मिट्टी के बेसिन बन गए हैं। ऊँचाई के साथ - साथ वर्षा बढ़ती जाती है और ऊँचाई बढ़ने के साथ निचली झाड़ीदार भूमि का स्थान देवदार और चीड़ के जंगल ले लेते हैं।

थिक्सेय गोम्पा, लद्दाख
Thiksey Gompa, Ladakh

पीर पंजाल पर्वत श्रेणी

पीर पंजाल पर्वत श्रेणी हिमालय से संम्बद्ध पहली पर्वत श्रृंखला है। इसकी औसत शीर्ष रेखा 3,810 मीटर ऊँची है। जिसमें कोई - कोई चोटी 4,572 मीटर तक ऊँची है। ग्रेनाइट, शैल, क्वार्टज व स्लेट से बनी चट्टानों वाली यह पर्वतश्रेणी अभिनूतन (प्लीस्टोसीन) युग में कई बार उत्थान तथा दरार पड़ने जैसी भौगोलिक घटनाओं का शिकार हुई और ग्लेशियरों से प्रभावित हुई। पर्वतमाला पर शीत ­ऋतु में काफ़ी बर्फ़ गिरती है और गर्मी में काफ़ी बारिश होती है। इसमें विशाल चरागाह क्षेत्र हैं, जो वृक्ष क्षेत्र से ऊपर की तरफ़ हैं।

कश्मीर की घाटी

कश्मीर की घाटी का एक गहरा तथा विषम बेसिन है, जो पीर पंजाल और विशाल हिमालय पर्वत श्रेणी के पश्चिम छोर के बीच में स्थित औसतन 1,600 मीटर की ऊँचाई वाली है। अभिनूतन (प्लीस्टोसीन) युग के दौरान यह कभी करेवा झील की तलहटी थी। अब यह ऊपरी झेलम नदी के द्वारा जमा की गई तलछट और जलोढ़ मिट्टी से भरी हुई है। मिट्टी और पानी की स्थितियों में उल्लेखनीय विविधता है। जलवायु की दृष्टि से यहाँ लगभग 750 मिमी वार्षिक वर्षा होती है। कुछ तो ग्रीष्म कालीन मानसूनी हवाओं से और कुछ शीत ­ ऋतु में कम दाब की प्रणाली से सम्बद्ध हवाओं से होती है। अक्सर हिमपात का साथ वर्षा और ओले देते हैं। ऊँचाई के कारण तापमान काफ़ी परिवर्तित हो जाता है। श्रीनगर में न्यूनतम औसत तापमान जनवरी में 2 डिग्री से. होता है और अधिकतम औसत तापमान जुलाई में 31 डिग्री से. तक रहता है।

कश्मीर की घाटी
Kashmir Valley

2,134 मीटर की ऊँचाई तक जटिल और स्थलाकृति की दृष्टि से विशाल वृहद हिमालय में 6,096 मीटर से अधिक तक ऊँचाई वाली कुछ पर्वत श्रेणियाँ हैं, जिनके बीच - बीच में बहुत गहरी घाटियाँ हैं। अभिनूतन (प्लीस्टोसीन) युग में यह क्षेत्र भारी ग्लेशियरों के अंतर्गत आता था और ग्लेशियरों के अवशेष व हिमक्षेत्र रहे होने के चिह्न अभी भी यहाँ मौजूद हैं। इस प्रक्षेत्र में गर्मी के महीनों में दक्षिण - पश्चिमी मानसूनी हवाओं से कुछ वर्षा होती है। इसके निचले ढलान वनाच्छादित हैं, लेकिन हिमालय एक जलवायु विभाजक जैसा है। इस ओर भारतीय उपमहाद्वीप की मानसूनी जलवायु है और दूसरी ओर मध्य एशिया की शुष्क महाद्वीपीय जलवायु है।

ऊपरी सिंधु घाटी

ऊपरी सिंधु घाटी की एक सुपरिभाषित भौगोलिक विशेषता है, जो भूगर्भीय संरचना की प्रवृत्ति के अनुसार है। यह तिब्बत की सीमा से पश्चिम की ओर आगे बढ़ते हुए पाकिस्तानी भू - भाग में उस बिन्दु तक जाती है, जहाँ विशाल नंगा पर्वत का चक्कर काटकर दक्षिण की ओर इसके आर पार कटे महाखड्ड की ओर जाती है। ऊपरी भागों में यह नदी दोनों तरफ़ बजरी की सीढ़ीनुमा संरचनाओं से घिरी है। प्रत्येक सहायक नदी मुख्य घाटी में बाहर निकलते हुए एक जलोढ़ पंख बनाती है। लेह नगर इसी प्रकार के एक जलोढ़ पंख पर स्थित है और समुद्री सतह से 3,500 मीटर की ऊँचाई पर है। यहाँ की जलवायु की विशेषताएँ हैं – वर्षा का लगभग न होना, सूर्य की किरणों का तीखापन और तापमान के दैनिक व वार्षिक अंतरों में उतार - चढ़ाव, यहाँ पर जीवन आसपास के पर्वतों से पिघले हुए पानी पर निर्भर है। यहाँ की वनस्पति पहाड़ी (आल्पीय, यानी वृक्षों के उगने की सीमा रेखा के ऊपर की वनस्पति) है, जो पतली परत वाली मिट्टी पर उगती है।

कराकोरम पर्वत श्रेणी

ग्रेनाइट - पट्टिताश्म का विशाल पर्वत पिंड, कराकोरम श्रृंखला, भारतीय क्षेत्र से पाकिस्तानी भूमि तक फैली हुई है। इसमें संसार की सर्वोच्च चोटियों में से कुछ हैं, जिसमें से एक 'के - 2' है, जिसकी ऊँचाई 8,611 मीटर है। कम से कम 30 अन्य चोटियाँ 7,315 मीटर से अधिक ऊँची हैं। यह पर्वतमाला, जो बड़े भारी ग्लेशियरों से पटी पड़ी है, शुष्क और वीरान पठारों से ऊपर उभरी हुई हैं। विषम तापमान और विखंडित चट्टानों के मलबे इसकी विशेषताएँ हैं। कराकोरम को 'दुनिया की छत' कहा जाना बिल्कुल उचित प्रतीत होता है।

जनजीवन और ग्रामीण बस्तियाँ

गुलमर्ग का मंदिर
Temple Of Gulmarg

भू - आकृति की विविधता के कारण इस क्षेत्र में लोगों के व्यवसायों में भी भारी विविधता पाई जाती है। लोगों के पंजाब से आकर बसने की दीर्घकालीन प्रवृत्ति के कारण मैदानों और तराइयों में कृषि बस्तियाँ हैं। लोग और उनकी संस्कृति, दोनों की पंजाब के पड़ोसी क्षेत्रों और पश्चिम की अन्य निम्नभूमि के समरूप है। जहाँ जलाढ़ मिट्टी और सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धि ने खेती को सम्भव बनाया है। जैसा की दूनों और निचली घाटियों में हुआ। जनसंख्या गेंहूँ और जौ कि फ़सलों पर निर्भर है। यह फ़सल बसन्त (रबी) में काटी जाती है और चावल तथा मक्का ग्रीष्म के अंत (ख़रीफ़) की फ़सलें हैं, साथ ही पशुपालन भी विरल है और मक्का की खेती, पशुपालन और वन्य उपजों पर निर्भर है। दक्षिणी मैदानी बाज़ारों के लिए दूध और शुद्ध घी के उत्पादन के लिए बसन्त में ऊँचे चरागाहों की ओर प्रवास ज़रूरी होता है। शीत ऋतु में पहाड़ियों के निवासी निचले क्षेत्रों में लौट आते हैं और शासकीय वनों या लकड़ी की मिलों में काम करते हैं। खेतिहर छोटी बस्तियों और गाँवों की बहुतायत है। जम्मू और उधमपुर जैसे नगर ग्रामीण और आसपास के इस्टेट के लिए बाज़ार केन्द्र व प्रशासनिक मुख्यालय का काम करते हैं।

घाटी और पहाड़ी क्षेत्रों के कश्मीरी लोग

कश्मीर की घाटी और उसके आसपास के ऊँचाई वाले क्षेत्र (मुख्यतः कश्मीर) ने सदा से अपनी अलग पहचान बनाए रखी है। जनसंख्या का अधिकांश भाग मुस्लिमों का है, जो सांस्कृतिक और मानव विज्ञान की दृष्टि से पाकिस्तानी इलाक़े के गिलगित ज़िले के पश्चिमोत्तर के ऊँचे क्षेत्र के लोगों से निकटतम रूप से सम्बन्धित हैं। जनसंख्या का बड़ा भाग घाटी के निचले इलाक़े में रहता है। जम्मू - कश्मीर राज्य का सबसे बड़ा शहर श्रीनगर झेलम नदी पर स्थित है।

प्राणी जीवन

जंगली जानवर, जिनमें साइबेरियाई साकिन (आइबेक्स), लाल लद्दाखी जंगली भेड़, दुर्लभ कश्मीरी हिरन (हंगल) शामिल है, दकिंघम राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाते हैं। इनके अलावा काले और भूरे रंग के रीछ, कई शिकार सुलभ चिड़ियाएँ और बड़ी संख्या में प्रवासी बत्तख़ें भी यहाँ पर पाई जाती हैं।

भाषा

कश्मीरी भाषा संस्कृत से प्रभावित है और गिलगित की विभिन्न पहाड़ी जनजातियों के द्वारा बोली जाने वाली भारतीय - आर्य भाषाओं की दर्दीय शाखा की है। उर्दू, डोगरी, कश्‍मीरी, लद्दाखी, बाल्‍टी, पहाड़ी, पंजाबी, गुजरी और ददरी भाषाओं का प्रयोग साधारण नागरिकों द्वारा किया जाता है। कश्मीर की घाटी के निवासी उर्दू या कश्मीरी बोलते हैं। कश्मीरी भाषा भारतीय आर्य वर्ग की दर्दीय शाखा की है और लोकगीतों व साहित्य से समृद्ध है।

जनसंख्या

2001 की जनसंख्या गणना के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या 1,00,69,917; ग्रामीण जनसंख्या 75,64,608; शहरी जनसंख्या 25,05,309 है।

अर्थव्यवस्था

पश्मीना बकरी, जम्मू और कश्मीर
Pashmina Goats, Jammu And Kashmir

अधिकांश लोग जीवन निर्वाह के लिए कृषि में लगे हैं और चावल, मक्का, गेहूँ, जौ, दालें, तिलहन तथा तम्बाकू सीढ़ीनुमा पहाड़ी ढलानों पर उगाते हैं। कश्मीर की घाटी में बड़े - बड़े बाग़ों में सेब, नाशपाती, आडू, शहतूत, अखरोट और बादाम उगाए जाते हैं। कश्मीर की घाटी भारतीय उपमहाद्वीप के लिए एकमात्र केसर उत्पादक है। गूजर और गद्दी ख़ानाबदोशों के द्वारा भेड़, बकरी, यॉक व खच्चरों का पालन और ऋतु प्रवास किया जाता है। कश्मीर के प्रसिद्ध पश्मीना का उत्पादन यहीं पाली जाने वाली बकरियों से होता है। रेशम पालन भी बहुत प्रचलित है।

राज्य की अर्थव्यवस्था हस्तकला उद्योगों, जैसे हथकरघा से स्थानीय रेशम व ऊन की बुनाई, गलीचा और दरी बुनना, लकड़ी पर नक़्क़ाशी काग़ज़ की लुग्दी की कारीगरी आदि पर निर्भर है। परिशुद्धता की जाँच करने वाले उपकरण, धातु के बर्तन, खेल का सामान, फ़र्नीचर, माचिस और राल व तारपीन मुख्य औद्यागिक उत्पादन हैं। पर्यटन यहाँ का प्राचीनतम उद्योग है। इस ऊबड़ - खाबड़ और वनाच्छादित क्षेत्र में यातायात एक महत्त्वपूर्ण समस्या है। जम्मू, भारत के उत्तरी रेलवे का अन्तिम स्टेशन है।

उद्योग

हस्‍त‍शिल्‍प यहाँ का परपंरागत उद्योग है। हाथ से बनी वस्‍तुओं की व्‍यापक रोजगार क्षमता और विशेषज्ञता को देखते हुए राज्‍य सरकार ह‍स्‍तशिल्‍प को उच्‍च प्राथमिकता दे रही है। कश्‍मीर के प्रमुख हस्‍तशिल्‍प उत्‍पादों में कागज की लुगदी से बनी वस्‍तुएं, लकड़ी पर नक़्क़ाशी, कालीन, शॉल और कशीदाकारी का सामान आदि शामिल हैं। हस्‍तशिल्‍प उद्योग से काफ़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा अर्जित होती है। हस्‍तशिल्‍प उद्योग में 3.40 लाख कामगार लगे हुए हैं। उद्योगों की संख्‍या बढ़ी है। करथोली, जम्‍मू में 19 करोड़ रुपये का निर्यात प्रोत्‍साहन औद्योगिक पार्क बनाया गया है। ऐसा ही एक पार्क ओमपोरा, बडगाम में बनाया जा रहा है। जम्‍मू में शहरी हाट हैं जबकि इसी तरह के हाट श्रीनगर में बनाए जा रहे है। राग्रेथ, श्रीनगर में 6.50 करोड़ रुपये की लागत से सॉफ्टेवयर टेक्‍नोलॉजी पार्क शुरू किया गया है।

कश्मीरी शॉल
Kashmiri Shawl

भूमि सुधार किए गए हैं। अन्न का उत्पादन बढ़ा है और 1947 के बाद मुख्य निर्यात वस्तुओं, लकड़ी, फल और सूखे मेवे व दस्तकारी के उत्पादन की मात्रा बहुत बढ़ी है। धातु के बर्तन, परिशुद्धता के उपकरण, खेल का सामान (मुख्यतः क्रिकेट के बल्ले), फ़र्नीचर, कशीदाकारी, माचिस, राल और तारपीन इस राज्य के प्रमुख औद्योगिक उत्पाद हैं। श्रीनगर में कई कृषि मंडियाँ, फुटकर विक्रय केन्द्र और इनसे जुड़े हुए उद्योग भी अब ग्रामीण कारीगरी से आगे बढ़े हैं और अब इसमें स्थानीय रेशम, कपास और ऊन की हस्तकरघों पर बुनाई, गलीचे बुनना, लकड़ी पर नक़्क़ाशी और चमड़े का काम शामिल हैं। चाँदी और ताँबे के काम और आभूषण—निर्माण सहित इन सभी उद्योगों को राज दरबार की उपस्थिति के कारण पहले बढ़ावा मिला था और अब मुख्यतः पर्यटन व्यापार से मिलता है। साथ ही, पश्चिम हिमालयी व्यापार में श्रीनगर द्वारा अर्जित महत्त्वपूर्ण स्थिति के कारण भी इन उद्योगों को प्रोत्साहन मिला है। गत समय में यह शहर एक तरफ़ पंजाब क्षेत्र के उत्पादनों और दूसरी तरफ़ कराकोरम के पूर्वी पठारी क्षेत्र, पामीर और लद्दाख श्रेणियों के बीच पुनर्निर्यात केन्द्र की भूमिका निभाता था। अभी भी पश्चिमोत्तर की ओर गिलगित तक राज दियंगन दर्रे से होकर और पूर्वोत्तर की तरफ़ ज़ोजि दर्रे से होकर लेह तक व आगे भी मार्ग उपलब्ध है। हस्तकला उत्पाद भी लद्दाख में महत्त्वपूर्ण हैं। विशेषकर कश्मीरी शालें, गलीचे और कम्बल।

कृषि

गुलमर्ग, जम्मू और कश्मीर
Gulmarg,Jammu and Kashmir

राज्‍य की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्‍या कृषि पर निर्भर है। धान, गेहूं और मक्‍का यहाँ की प्रमुख फसलें हैं। कुछ भागों में जौ, बाजरा और ज्‍वार उगाई जाती है। लद्दाख में चने की खेती होती है। फलोद्यानों का क्षेत्रफल 242 लाख हेक्‍टेयर है। राज्‍य में 2000 करोड़ रुपये के फलों का उत्‍पादन प्रतिवर्ष होता है जिसमें अखरोट निर्यात के 120 करोड़ रुपये भी शामिल हैं। जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य सेब और अखरोटों के लिए कृषि निर्यात क्षेत्र घोषित किया गया है। बाज़ार हस्‍तक्षेप योजना की शुरूआत से उचित ग्रेडिंग सुनिश्चित करते हुए फलों की गुणवत्ता में सुधार लाया जाता है। 25 लाख से अधिक लोगों को प्रत्‍यक्ष अथवा रूप से बागवानी क्षेत्र से रोजगार मिलता हैं। कश्मीरी जनसंख्या का अधिकांश भाग विविध तरीक़ों की खेती में लगा हुआ है, जिन्हें स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप ढाला गया है। चावल, जो यहाँ का मुख्य भोजन है, मई में बोया जाता है और सितंबर में काटा जाता है। मक्का, ज्वार, बाजरा, दलहन (फलियाँ जैसे मटर, सेम तथा मूंग) कपास और तम्बाकू, चावल के साथ गर्मी की मुख्य फ़सलें है, जबकि गेहूँ व जौ बसन्त की प्रमुख फ़सलें हैं। कई शीतोष्ण फल व सब्ज़ियाँ शहरी बाज़ारों के नज़दीक क्षेत्रों में उगाई जाती है या काफ़ी पानी वाले क्षेत्रों में, जहाँ की भूमि अच्छी तरह सिंचित और उपजाऊ है। कश्मीर की घाटी में बड़े - बड़े बाग़ों में सेब, नाशपाती, आडू, अखरोट, बादाम और चेरी उगाए जाते हैं। कश्मीर की घाटी उपमहाद्वीप में केसर की एकमात्र उत्पादक है। झील के किनारों पर विशेष तौर पर सब्ज़ियाँ और फूलों की गहन खेती होती है। ऐसा ही पुनर्प्राप्त दलदली ज़मीन या तैरते हुए बग़ीचों में किया जाता है। भूमि पर जनसंख्या का दबाव सब जगह प्रकट होता है और सभी उपलब्ध संसाधनों का उपयोग किया जाता है। झील और नदियाँ मछलियाँ, सिंघाड़े तथा जल विद्युत उपलब्ध कराती हैं और इनका उपयोग यातायात के लिए भी किया जाता है। जो पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण भी है। पर्वतों से कई प्रकार की लकड़ी प्राप्त होती है और वहीं भेड़ों और दुग्ध उत्पादक जानवरों को चरागाह मिलते हैं।

खनिज सम्पदा

इस क्षेत्र में खनिज और जीवाश्म ईंधन के साधन सीमित हैं। इनका अधिकांश भाग जम्मू क्षेत्र में संकेंन्द्रित है। प्राकृतिक गैस के छोटे भण्डार जम्मू के निकट पाए जाते हैं। बाक्साइट और जिप्सम के भण्डार ऊधमपुर ज़िले में हैं। अन्य खनिजों में चूना पत्थर, कोयला, जस्ता और ताँबा शामिल है।

बिजली

राज्‍य में बिजली क्षेत्र को उच्‍च प्राथमिकता दी गई है जिसमें राज्‍य की 20,000 मेगावाट की विशाल संभाव्‍य पनबिजली क्षमता के उपयोग पर विशेष बल दिया गया है।

25 मेगावाट तक की लघु पनबिजली परियोजनाओं में निजी निवेश को प्रोत्‍साहन देने हेतु नई नीति घोषित की गई है। एन.एच.पी.सी. को 2,798 मेगावाट की क्षमता की सात पनबिजली परियोजनाएं सौंपी गई हैं। राज्‍य की कुल आवश्‍यकता नेशनल ग्रिड से बिजली ख़रीद कर पूरी होती है। लेह सहित अधिकांश महत्त्वपूर्ण नगरों और गाँवों में बिजली है। बिजली पैदा करने के लिए जलविद्युत और तापविद्युत संयंत्र लगाए गए हैं, जो स्थानीय कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को बिजली की आपूर्ति करते हैं। चिनेनी और सलान में मुख्य विद्युत केन्द्र हैं, जो ऊपरी सिंधु और निचली झेलम नदी पर हैं। उरी जलविद्युत परियोजना का पहला चरण भी प्रारम्भ किया गया है।

प्राशनिक व्यवस्थाएं

शाह हमदान मस्जिद, श्रीनगर
Shah Hamdan Mosque, Srinagar

विभाजन से पहले यह सम्पूर्ण क्षेत्र जम्मू और कश्मीर के प्रान्त व सीमावर्ती राज्यों लद्दाख, बाल्टिस्तान तथा गिलगित एजेंसी को समाविष्ट किए हुए था। मुज़फ़्फ़राबाद, कोटली और मीरपुर ज़िले के साथ - साथ उत्तरी क्षेत्रों में शामिल पुंछ, बाल्टिस्तान, असतौर और गिलगित एजेंसी, जो अब पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र है, के हिस्से हैं। यह सम्पूर्ण क्षेत्र लद्दाख (लेह) ज़िला और अनंतनाग, बारामूला, श्रीनगर, पुलवामा, बड़गाम, कुपवाड़ा और कारगिल ज़िला, जो श्रीनगर प्रान्त में हैं और जम्मू प्रान्त के ज़िले, कठुआ, उधमपुर, राजौरी, डोडा और पुंछ का कुछ भाग, ये सभी भारत के जम्मू - कश्मीर राज्य के भाग हैं। जम्मू - कश्मीर राज्य का संघ सरकार में एक विशेष दर्जा बना हुआ है। भारत के शेष राज्य भारतीय संविधान का पालन करते हैं, लेकिन जम्मू - कश्मीर का अपना पृथक संविधान (1956 में स्वीकृत) है, जो भारतीय गणराज्य का अभिन्न अंग होने की पुष्टि करता है। संघ सरकार के पास प्रतिरक्षा, विदेश नीति एवं संचार के मामलों में प्रत्यक्ष वैधानिक अधिकार हैं और नागरिकता, सुप्रीम कोर्ट के क्षेत्राधिकार और आपातकालीन शक्तियों के मामलों में अप्रत्यक्ष प्रभाव हासिल है। जम्मू - कश्मीर के संविधान के अंतर्गत, राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। प्रशासनिक अधिकार, निर्वाचित मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल के पास होते हैं। विधानसभा के दो सदन है - विभिन्न क्षेत्रों के 87 प्रतिनिधियों से गठित विधानसभा और 36 सदस्यीय विधान परिषद, राज्य से छह निर्वाचित प्रतिनिधि सीधे भारतीय संसद की लोकसभा में भेजे जाते हैं और विधानसभा व विधान परिषद द्वारा संयुक्त रूप से निर्वाचित छह सदस्य राज्यसभा में भेजे जाते हैं। उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायधीश और 11 अन्य न्यायधीश होते हैं, जो भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।

शिक्षा और स्वास्थ्य

शिक्षा हर स्तर पर निःशुल्क है। साक्षरता की दर, विशेषकर लेह में, राज्य के औसत के बराबर है। उच्च शिक्षा के दो केन्द्र हैं। दोनों 1969 में स्थापित हुए थे। ये हैं – कश्मीर महाविद्यालय, श्रीनगर और जम्मू विश्वविद्यालय, चिकित्सा सेवा राज्य भर में फैले हुए अस्पतालों और दवाख़ानों द्वारा प्रदान की जाती है। 1982 में स्थापित चिकित्सा विज्ञान का एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ संस्थान श्रीनगर में है। इसके अलावा दो कृषि विश्वविद्यालय भी श्रीनगर और जम्मू में क्रमशः 1982 वे 1999 में स्थापित किए गए थे। लद्दाख में स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता अपेक्षाकृत कम है। इनफ़्लुएंज़ा, दमा और पेचिश स्वास्थ्य सम्बन्धी सामान्य समस्याएँ हैं। हृदय रोग, कैंसर व क्षयरोग के मामले भी घाटी में बढ़ रहे हैं।

जनगणना 2001 के अनुसार राज्‍य की साक्षरता दर 54.46 प्रतिशत है; ग्रामीण साक्षरता 48.22 प्रतिशत और शहरी साक्षरता 72.17 प्रतिशत हैं। राज्‍य में पुरूष साक्षरता अनुमानत: 67.75 प्रतिशत और महिला साक्षरता 41.82 प्रतिशत हैं। यहाँ पांच विश्‍वविद्यालय और 41 महाविद्यालय हैं जिनमें से 8 निजी क्षेत्र के हैं।

परिवहन

भारतीय संघ सरकार ने जम्मू - कश्मीर में राजमार्गों और संचार सुविधाओं के विकास पर भारी विनियोग किया है। देश के विभाजन और कश्मीर पर भारत - पाकिस्तान विवाद के कारण श्रीनगर से झेलम की घाटी होते हुए रावलपिंडी का मार्ग अवरुद्ध हो गया। इसके कारण एक लम्बे और अधिक कठिन गाड़ी मार्ग को, जो बनिहाल दर्रे से होकर जाता था, सभी मौसमों में उपयोग योग्य राजमार्ग में बदलना ज़रूरी हो गया। इसी में शामिल है 'जवाहर सुरंग' (1959) का निर्माण, जो एशिया की सबसे लम्बी सुरंग है। मगर यह सड़क कई बार तीखे मौसम के कारण दुर्गम हो जाती है। जिसके कारण घाटी में आवश्यक वस्तुओं की कमी हो जाती है। एक सड़क श्रीनगर को कारगिल और लेह से मिलाती है। जम्मू उत्तर रेलवे का अन्तिम स्टेशन है। श्रीनगर और जम्मू वायमार्ग से दिल्ली और दूसरे भारतीय शहरो से जुड़े हुए हैं। श्रीनगर से लेह, लेह—जम्मू और लेह—दिल्ली के बीच भी वायुसेवाएँ उपलब्ध हैं।

ऊंटों का झुंड, जम्मू और कश्मीर
Camels herds, Jammu And Kashmir

सड़कें राज्‍य में लोक निर्माण विभाग द्वारा रखरखाव की जाने वाली सड़कों की लंबाई 15,012 कि.मी. तक पहुंच गई है।

रेलवे रेल सेवाएं केवल जम्‍मू तक उपलब्‍ध हैं। जम्‍मू-उधमपुर रेल लाइन के निर्माण का काम पूरा हो गया है। श्रीनगर तथा बारामुला तक रेलमार्ग विस्‍तार का काम शुरू हो गया है। उधमपुर-कटरा और काजीगुंज-बारामुला रेल लिंक परियोजना एक राष्‍ट्रीय परियोजना है जिसके 2007 तक पूरा होने की संभवना है।

उड्डयन श्रीनगर, जम्‍मू और लेह राज्‍य के मुख्‍य हवाई अड्डे हैं जो जम्‍मू और कश्‍मीर को हवाई मार्ग से देश के अन्‍य भागों से जोड़ते हैं। श्रीनगर हवाई अड्डे को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर का बनाया गया है।

त्‍योहार

आश्विन मास में शुक्‍ल पक्ष की दशमी को रावण पर राम की विजय के प्रतीक रूप में दशहरा या वियजदशमी का त्‍योहार मनाया जाता है। शिवरात्रि भी जम्‍मू और कश्‍मीर में श्रद्धा और भाक्ति के साथ मनाई जाती है। राज्‍य में मनाए जाने वाले चार मुस्लिम त्‍योहार हैं- ईद-उल-फितर, ईद उल ज़ुहा, ईद-ए-मिलाद-उन्‍नबी और मेराज आलम। मुहर्रम भी मनाया जाता हैं। लद्दाख का विश्‍व प्रसिद्ध गोम्‍पा उत्‍सव जून महीने में मनाया जाता है। हेमिस उत्‍सव का प्रमुख आकर्षक मुखौटा नृत्‍य है। लेह में स्पितुक बौद्ध विहार में हर साल जनवरी में होने वाले पर्व में काली की प्रतिमाएं बड़े पैमाने पर प्रदर्शित की जाती हैं। इसके अलावा सर्दी के चरम का त्‍योहार लोहड़ी तथा रामबन और पड़ोस के गांवों में सिंह संक्रांति और अगस्‍त माह में भदरवाह में मेला पात मनाया जाता हैं।

पर्यटन स्‍थल

हाउसबोट, श्रीनगर
Houseboat, Srinagar

पर्यटन सुविधाओं में काफ़ी सुधार किए गए हैं, यद्यपि सम्भावनाओं का अभी भी काफ़ी उपयोग करना शेष है। पर्यटन का लद्दाख पर महत्त्वपूर्ण सामाजिक - आर्थिक प्रभाव पड़ा है। यह 1970 तक बाहरी लोगों से सामान्यतः कटा रहा था। (1974 में 500 पर्यटक और 1992 में 16,018)। ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के अलावा पर्यटकों के आकर्षण के केन्द्र हैं -

  • गुलमर्ग में आइस स्केटिंग केन्द्र, जो बारामूला के दक्षिण में पीर पंजाल श्रेणी में स्थित है और पहलगाम, जो लिद्दर नदी के किनारे स्थित है।
  • गंधक के सोते, जो जोड़ों के दर्द और गठिया के रोगों के शीघ्र इलाज के लिए प्रसिद्ध हैं, लेह के निकट चुमथंग में और नोबरा व पूगा (चागथंग) में स्थित है, पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
  • कश्‍मीर घाटी को पृथ्‍वी का स्‍वर्ग माना जाता है। कश्‍मीर घाटी में चश्‍मेशाही झरना, शालीमार बाग, डल झील, गुलमर्ग, पहलगाम, सोनमर्ग और अमरनाथ की पर्वत गुफा तथा जम्‍मू के निकट वैष्‍णो देवी मंदिर, पटनी टाप और लद्दाख के बौद्ध मठ राज्‍य के प्रमुख पर्यटन केंद्र हैं। 15 सितंबर को लद्दाख महोत्‍सव तथा जून सिंधु दर्शन प्रसिद्ध त्‍योहार हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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