प्रयोग:फ़ौज़िया2
कोणार्क
कोणार्क पूर्वी-मध्य उड़ीसा राज्य, पूर्वी भारत बंगाल की खाड़ी के तट पर भुवनेश्वर से सड़क मार्ग से 65 किमी. और पुरी से समुद्री मार्ग से 35 किमी की दूरी पर कोणार्क स्थित है। उड़ीसा प्रांत में पुरी के निकट कोणार्क, चिल्का झील से प्राची नदी तक फैली हुई रेतीली पट्टी के उत्तरी छोर पर समुद्र तट पर स्थित है। कोणार्क का नाम दो शब्दों को जोड़ कर बना है। कोण, जिसका अर्थ है कोना और अर्क, जिसका अर्थ है सूर्य से बना है। कोणार्क शहर उड़ीसा राज्य की प्राचीन राजधानी था। यह हिन्दू मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है, जो भारतीय स्थापत्य का सर्वश्रेष्ठ नमूना है। किंवदन्ती के अनुसार चक्रक्षेत्र (जगन्नाथपुरी) के उत्तरपूर्वी कोण में यहाँ अर्क या सूर्य का मन्दिर स्थित होने के कारण इस स्थान को कोणार्क कहा जाता था। पुराणों में कोणार्क को मैत्रेयवन और पद्मक्षेत्र भी कहा गया है।
इतिहास
अर्क तीर्थ के नाम से विख्यात उड़ीसा का कोणार्क मूल रूप से अपने सूर्य मंदिर के लिए विश्व प्रसिद्ध है। मंदिर में स्थापित कोणार्क की मूर्ति के नाम पर ही इस शहर का नाम कोणार्क पड़ा है।
- सूर्य मंदिर
कोणार्क अपने 13वीं शताब्दी के सूर्य मंदिर, सूर्य देउला के लिए प्रसिद्ध है। कोणार्क नगर, पहले एक ऐतिहासिक गाँव के रूप में विख्यात था। पहले काला पगोडा कहलाने वाले इस मंदिर का उपयोग कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) की ओर यात्रा कर रहे नाविकों द्वारा जहाज़रानी सीमाचिह्न के रूप में किया जाता था। यह कहना ग़लत है कि यह कभी पूरा नहीं बना था। इतिहासकार के. एस. बेहोरा, जिन्होंने कोणार्क पर शोध किया था। के अनुसार सूर्य मंदिर नरसिंह (1238-41) ने 13 वीं शताब्दी में पूर्ण भी की गई, संभवतः उस समय आई किसी गंभीर प्राकृतिक आपदा के कारण बाद में पूजा रोक दी गई। मंदिर वास्तुकला की उड़ीसा शैली के उत्कृष्टतम नमूने इस मंदिर के भग्नावशेषों का बाद में जीर्णोद्धार किया गया। यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है। इसकी अभिकल्पना उनके रथ को प्रतिबिंबित करने के लिए की गई थी। जिसमें आधार पर उत्कीर्णित पत्थर के 12 विशाल पहिए और सात पत्थर के घोड़े हैं। सूर्य देउला की ऊँचाई लगभग 30 मीटर है और पूर्ण होने पर यह 60 मीटर से अधिक ऊँचा हो जाता। बाहरी भाग सुसज्जित मूर्तियों से युक्त हैं। जिनमें से अनेक में प्रणय दृश्यों का चित्रण है। बस्ती और मंदिर भगवान कृष्ण के पुत्र सांब की किंवदंती से जुड़े हैं। जो सूर्य देव के आशीर्वाद से कोढ़मुक्त हुए थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सूर्य मंदिर संग्रहालय में मंदिर के भग्नावशेषों के मूर्तिशिल्पों का अच्छा संग्रह है।
- कथा
एक कथा में वर्णन है कि इस क्षेत्र में सूर्योपासना के फलस्वरूप श्रीकृष्ण के पुत्र सांव का कुष्ठ रोग दूर हो गया था और यहीं चंद्रभागा में बहते हुए कमलपत्र पर उसे सूर्य की प्रतिमा मिली थी। आइने अकबरी में अबुल फ़ज़ल लिखता है कि यह मन्दिर अकबर के समय से लगभग सात सौ तीस वर्ष पुराना था, किन्तु मंडलापंजी नामक उड़ीसा के प्राचीन इतिहास-ग्रंथों के आधार पर यह कहना अधिक समीचीन होगा कि इस मन्दिर को गंगावंशीय लांगुल नरसिंह देव ने बंगाल के नवाब तुग़ानख़ाँ पर अपनी विजय के स्मारक के रूप में बनवाया था। इसका शासन काल 1238-1264 ई. में माना जाता है। एक ऐतिहासिक अनुश्रुति में मन्दिर के निर्माण की तिथि शकसंवत् 1204 (=1126 ई.) मानी गई है। जान पड़ता है कि मूलरूप में इससे भी पहले इस स्थान पर प्राचीन सूर्य मन्दिर था। सातवीं शती ई. में चीनी यात्री युवानच्वांग कोणार्क आया था। उसने इस नगर का नाम चेलितालों लिखते हुए उसका घेरा 20ली बताया है। उस समय यह नगर एक राजमार्ग पर स्थित था और समुद्रयात्रा पर जाने वाले पथिकों या व्यापारियों का विश्राम स्थल भी था। मन्दिर का शिखर बहुत ऊँचा था और उसमें अनेक मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थीं। जगन्नाथपुरी मन्दिर में सुरक्षित उड़ीसा के प्राचीन इतिहास ग्रंथों से पता चलता है कि सूर्य और चंद्र की मूर्तियों को भयवंशीय नरेश नृसिहदेव के समय (1628-1652) में पुरी ले जाया गया था।
यातायात और परिवहन
- वायु मार्ग
कोणार्क का नज़दीकी हवाई अड्डा 64 किमी. दूर पर भुवनेश्वर में स्थित है। यह हवाई अड्डा कोलकाता, दिल्ली, हैदराबाद, चैन्नई और नागपुर से से सीधी हवाई सेवा द्वारा जुड़ा हुआ है।
- रेल मार्ग
पुरी में कोणार्क का निकटतम रेलवे स्टेशन है जो 31 किमी. दूर पर स्थित है। यह रेलवे स्टेशन भारत के महत्वपूर्ण शहरों से अनेक रेलगाड़ियों द्वारा जुड़ा है।
- सड़क मार्ग
राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य राजमार्ग से कोणार्क पहुँचा जा सकता है। समुद्र के किनार बसा कोणार्क पुरी से 35 किमी. और भुवनेश्वर से 65 किमी. की दूरी पर है। पुरी, भुवनेश्वर और उड़ीसा के अनेक शहरों से सड़क मार्ग से कोणार्क पहुँच सकते हैं।
पर्यटन
कोणार्क समुद्र तट पर सूर्योदय का दृश्य मनोहारी होता है और अब इसने तटीय नृत्य महोत्सव के लिए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर ली है। यह महोत्सव उस स्थान पर आयोजित किया जाता है, जहाँ अब विलुप्त हो चुकी चंद्रभागा नदी सागर में मिलती थी। तट पर 10 किमी की दूरी पर कुशभद्रा नदी, जो वहाँ सागर में मिलती है के किनारे प्रसिद्ध रामचंडी मंदिर स्थित है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कोणार्क भारत का प्रमुख पर्यटन स्थल है। सूर्य देवता को समर्पित यह मन्दिर सामान्यतः ‘काले पैगोड़ा’ के नाम से विख्यात है। तेरहवीं सदी के खुर्दा नरेश नरसिंह देव (1238-1263ई.) को मन्दिर के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। अब इसके भग्नावशेष ही उपलब्ध हैं। मन्दिर 875 फुट लम्बे और 540 फुट चौड़े प्रांगण में बनाया गया हैं, इस मन्दिर का अहाता एक दीवार से परिवृत्त है, और इसका मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व में है। सम्पूर्ण मन्दिर पहियों वाले रथ की आकृति में बनाया गया है, जिसे सूर्य के सात घोड़े खींच रहे हैं। अंलकृत घोड़े ऐसे दिखायी देते हैं, जैसे अपने भारी बोझ को आगे खींचने के प्रयास में वे अपने पिछले दोनों पैर उठा रहे हैं, तथा ऐंठ रहे हैं। इसमें आधार पर बारह पहिये या चक्र निर्मित हैं। बारह चक्र बारह राशियों के प्रतीक हैं और सूर्य के सात घोड़े उसकी किरणों के रंगों के प्रतीक हैं। सूर्य मन्दिर के दो भाग हैं- रेखा और भद्र। मन्दिर के दोनों भाग पुरुष और स्त्री के वास्तु प्रतीक हैं,जो अभिन्न रुप से जुड़े हैं। रेखा भाग 180 फुट और भद्र 140 फुट ऊँचा है। मुख्य द्वार पर हाथी की पीठ पर आसीन सिंहों की मूर्तियाँ निर्मित हैं। दक्षिणी प्रवेश द्वार पर दो अश्व मूर्तियाँ और उत्तरी द्वार पर मनुष्यों को सूँड पर उठाये दो हाथी प्रदर्शित हैं। पहले सभी द्वारों पर मूर्तियाँ उत्कीर्ण थीं, किंतु अब केवल पूर्वी द्वार की ही नक्काशी शेष है। द्वार के ऊपर नवग्रहों का अंकन था। उसके ऊपर सूर्यदेव की पद् मासनस्थ मूर्ति गोखे (झरोखे) में प्रतिष्ठित थी। मन्दिर के सामने एक मण्ड़प था। जिसे अठारहवीं सदी में मराठों ने पुरी भेज दिया था। भद्र( जगमोहन) के आगे एक नाट्य मन्दिर है, जिसकी तक्षण कला सराहनीय है। मन्दिर के आधार के निम्नतम भाग में वन्य पशुओं तथा हाथियों के आखेट के मूर्ति शिल्प हैं। इसके ऊपर अनेक मूर्तियाँ विभिन्न प्रणय मुद्राओं में अंकित हैं, जिससे मन्दिर पर तांत्रिक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। अनेक दीर्घकाय मूर्तियों के समूह, जिनमें कुछ कला की अति श्रेष्ठ कृतियाँ हैं और जो ढाँचे में प्रमुख स्थान ग्रहण करने के लिए बनायी गयी थीं, जमीन पर यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं। मन्दिर शायद ही कभी पूरा बन सका। ऐसा अनुमान है कि भारी ऊपरी ढाँचे का निर्माण समाप्त होने से पहले ही इसकी नींव धँसने लगी। "यह मन्दिर भारतीय वास्तु शिल्पियों के सबसे सुन्दर वास्तु कलात्मक प्रयासों में से एक है। यह मन्दिर फर्श से छत तक इतने जटिल और सूक्ष्म शैल्पिक अलंकरण से आच्छादित है कि प्रत्येक पत्थर एक अनुपम आभूषण जैसा प्रतीत होता है। अबुल फ़ज़ल ने आइने-अकबरी में इस मन्दिर के स्थापत्य की प्रशंसा की है।
जनसंख्या
2001 की जनगणना के अनुसार इस शहर की जनसंख्या 15, 015 है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक ऐतिहासिक स्थानावली से) पेज नं0 233
कोणार्क पर्यटन
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कोणार्क भारत का प्रमुख पर्यटन स्थल है।
सूर्य मंदिर
- सूर्य देवता को समर्पित यह मन्दिर सामान्यतः ‘काले पैगोड़ा’ के नाम से विख्यात है। तेरहवीं सदी के खुर्दा नरेश नरसिंह देव (1238-1263ई.) को मन्दिर के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। अब इसके भग्नावशेष ही उपलब्ध हैं।
- सूर्य मंदिर 875 फुट लम्बे और 540 फुट चौड़े प्रांगण में बनाया गया हैं, इस मन्दिर का अहाता एक दीवार से परिवृत्त है, और इसका मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व में है। सम्पूर्ण मन्दिर पहियों वाले रथ की आकृति में बनाया गया है, जिसे सूर्य के सात घोड़े खींच रहे हैं।
- अंलकृत घोड़े ऐसे दिखायी देते हैं, जैसे अपने भारी बोझ को आगे खींचने के प्रयास में वे अपने पिछले दोनों पैर उठा रहे हैं, तथा ऐंठ रहे हैं। इसमें आधार पर बारह पहिये या चक्र निर्मित हैं। बारह चक्र बारह राशियों के प्रतीक हैं और सूर्य के सात घोड़े उसकी किरणों के रंगों के प्रतीक हैं।
- सूर्य मन्दिर के दो भाग हैं- रेखा और भद्र। मन्दिर के दोनों भाग पुरुष और स्त्री के वास्तु प्रतीक हैं,जो अभिन्न रुप से जुड़े हैं। रेखा भाग 180 फुट और भद्र 140 फुट ऊँचा है। मुख्य द्वार पर हाथी की पीठ पर आसीन सिंहों की मूर्तियाँ निर्मित हैं।
- दक्षिणी प्रवेश द्वार पर दो अश्व मूर्तियाँ और उत्तरी द्वार पर मनुष्यों को सूँड पर उठाये दो हाथी प्रदर्शित हैं। पहले सभी द्वारों पर मूर्तियाँ उत्कीर्ण थीं, किंतु अब केवल पूर्वी द्वार की ही नक्काशी शेष है। द्वार के ऊपर नवग्रहों का अंकन था।
- मायादेवी मंदिर
- सूर्य मंदिर के दक्षिण पश्चिम में स्थित मायादेवी मंदिर कोणार्क का मुख्य आकर्षण है।
- मायादेवी मंदिर किसको समर्पित है यह स्पष्ट नहीं है।
- कुछ लोगों का मानना है कि यह मंदिर भगवान सूर्य की पत्नी को समर्पित है जबकि कुछ लोग कहते हैं कि यह मंदिर स्वयं भगवान सूर्य को समर्पित है।
- मंदिर की दीवारों पर रती क्रियाओं संबंधित प्रतिमाएँ उकेरी गई हैं। मंदिर में नृत्य करती परियों, शिकार, दरबार और फूलों के दृश्य काफी आकर्षण हैं।
- प्रवेश द्वार पर बने दो शेरों की आकृति और दूसरी तरफ विशालकाय हाथी की प्रतिमा मंदिर की खूबसूरती में वृद्धि करती है।
- पुरातात्विक संग्रहालय
- सूर्य मंदिर के समीप स्थित इस संग्रहालय में मंदिर की खुदाई से प्राप्त अनेक मूर्तियों और नक्कासियों को रखा गया है।
- संग्रहालय में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों, सूर्य और बहुत सी अप्सराओं की मूर्तियाँ रखी हुई हैं।
- पत्थर से बनी नवग्रह की विशाल मूर्ति यहाँ रखी गई है जो पहले सूर्यमंदिर के मुख्य द्वार के ऊपर रखी थी।
- पुरातात्विक संग्रहालय शुक्रवार के अतिरिक्त सभी दिनों खुला रहता है।
- कोणार्क तट
- सूर्य मंदिर से 3 किमी दूर स्थित यह तट पूर्वी तट के सबसे खूबसूरत तटों में एक है।
- दूर-दूर फैला समुद्र का नीला पानी देखना और रत पर लेटकर धूप सेंकना पर्यटकों को बहुत पसंद आता है।
- शाम के समय यहाँ के शांत वातावरण में टहलना और सूर्यास्त के नजार देखना मन को किसी दूसरी ही दुनिया में ले जाते हैं।
- दिसंबर के महीने में यहां कोणार्क नृत्य पर्व मनाया जाता है।
- कोणार्क नृत्य पर्व के अवसर पर अनेक शास्त्रीय नृत्यकार भरतनाट्यम, ओडिसी, मणिपुरी, कथक, छाऊ नृत्य कर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
- रामचंदी
- कोणार्क से 7 किमी. की दूर रामचंदी एक छोटा और सुन्दर तट है जो कुशभद्रा नदी और बंगाल की खाड़ी के संगम पर स्थित है।
- कोणार्क क्षेत्र की अधिष्ठात्री रामचंदी देवी यहाँ पूजी जाती है।
- पर्यटकों के घुमने के लिए यह एक आदर्श स्थान है।
- करूमा
- करूमा एक छोटा सा गाँव है जो बौद्ध पुरातात्विक खोजों के लिए लोकप्रिय है।
- करूमा में हुई खुदाई से महात्मा बुद्ध की भूमिस्पर्श मुद्रा में और हुरूका की एक प्राचीन मूर्ति प्राप्त हुई है।
- विद्वानों का कहना है कि चीनी इतिहासकार ह्वेन त्सांग ने जिन बौद्ध स्तूपों के बार में लिखा था, यह उन्हीं में एक है।
- चौरासी
- यह स्थान लक्ष्मीनारायण, अमरशरस और वसाही के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
- नौवीं शताब्दी से वसाही को तांत्रिक समुदाय द्वारा पूजा जा रहा है।
- वसाही यहाँ की मातृदेवी है जिनका मुख सूकर का है।
- वसाही देवी ने एक हाथ में मछली और दूसर में कप पकड़ा हुआ है।
- ककटापुर