खजुराहो
खजुराहो
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विवरण | खजुराहो भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त, छतरपुर ज़िले में स्थित एक प्रमुख शहर है जो अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिये विश्वविख्यात है। |
राज्य | मध्य प्रदेश |
ज़िला | छतरपुर ज़िला |
मार्ग स्थिति | सड़क मार्ग द्वारा देश के सभी प्रमुख शहरों से खजुराहो पहुँचा जा सकता है। |
प्रसिद्धि | मध्यकालीन मंदिरों के लिये |
कब जाएँ | अक्टूबर से मार्च |
कैसे पहुँचें | हवाई जहाज, रेल, बस, टैक्सी |
खजुराहो हवाई अड्डा | |
खजुराहो रेलवे स्टेशन[1] | |
बस अड्डा | |
बस, रिक्शा, ऑटो रिक्शा | |
क्या देखें | मंदिर |
कहाँ ठहरें | पायल होटल, साहिल होटल (दोनों पर्यटन विभाग द्वारा संपोषित), टेंपल, ओबेराय, खजुराहो अशोक, सनसेट व्यू, चंदेल आदि। इनके अतिरिक्त पर्यटन विभाग के ही टूरिस्ट विलेज और टूरिस्ट बंगले भी हैं। |
एस.टी.डी. कोड | 07861 |
गूगल मानचित्र, हवाई अड्डा (गूगल मानचित्र) | |
मध्यप्रदेश पर्यटन |
खजुराहो वैसे तो भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त, छतरपुर ज़िले में स्थित एक छोटा सा क़स्बा है लेकिन फिर भी भारत में, ताजमहल के बाद, सबसे ज़्यादा देखे और घूमे जाने वाले पर्यटन स्थलों में अगर कोई दूसरा नाम आता है तो वह है, खजुराहो। खजुराहो, भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है। खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं। चंदेल शासकों ने इन मंदिरों की तामीर सन 900 से 1130 ईसवी के बीच करवाई थी। इतिहास में इन मंदिरों का सबसे पहला जो उल्लेख मिलता है,वह अबू रिहान अल बरूनी (1022 ईसवी) तथा अरब मुसाफ़िर इब्न बतूता का है।
दरअसल यह क्षेत्र प्राचीन काल में वत्स के नाम से, मध्यकाल में जैजाक्भुक्ति नाम से तथा चौदहवीं सदी के बाद बुन्देलखन्ड के नाम से जाना गया। खजुराहो के चन्देल वंश का उत्थान दसवीं सदी के शुरू से माना जाता है। इनकी राजधानी प्रासादों, तालाबों तथा मंदिरों से परिपूर्ण थी। स्थानीय धारणाऑं के अनुसार तक़रीबन एक हज़ार साल पहले यहां के दरियादिल व कला पारखी चंदेल राजाओं ने क़रीब 84 बेजोड़ व लाजवाब मंदिरों की तामीर करवाई थी लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ़ 22 मंदिरों की ही खोज हो पाई है, यद्यपि दूसरे पुरावशेषों के प्रमाण प्राचीन टीलों तथा बिखरे वास्तुखंडों के रूप में आज भी खजुराहो तथा इसके आस पास देखे जा सकते हैं। पंद्रहवीं सदी के बाद इस इलाक़े की अहमियत ख़त्म होती गई।
सामान्य रूप से यहां के मंदिर बलुआ पत्थर से निर्मित किए गए हैं, लेकिन चौंसठ योगिनी, ब्रह्मा तथा ललगुआँ महादेव मंदिर ग्रेनाइट (कणाष्म) से निर्मित हैं। ये मंदिर शैव, वैष्णव तथा जैन संप्रदायों से सम्बंधित हैं। खजुराहो के मंदिरों का भूविन्यास तथा ऊर्ध्वविन्यास विशेष उल्लेखनीय है, जो मध्यभारत की स्थापत्यकला का बेहतरीन व विकसित नमूना पेश करते हैं। यहां मंदिर बिना किसी परकोटे के ऊंचे चबूतरे पर निर्मित किए गए हैं। आम तौर पर इन मंदिरों में गर्भगृह, अंतराल, मंडप तथा अर्ध मंडप देखे जा सकते हैं। खजुराहो के मंदिर भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्ट व विकसित नमूने हैं,यहां की प्रतिमाऐं विभिन्न भागों में विभाजित की गई हैं। जिनमें प्रमुख प्रतिमा परिवार, देवता एवं देवी देवता, अप्सरा, विविध प्रतिमाऐं, जिनमें मिथुन (सम्भोगरत) प्रतिमाऐं भी शामिल हैं तथा पशु व व्याल प्रतिमाऐं हैं, जिनका विकसित रूप कंदारिया महादेव मंदिर में देखा जा सकता है। सभी प्रकार की प्रतिमाओं का परिमार्जित रूप यहां स्थित मंदिरों में देखा जा सकता है। यहां मंदिरों में जड़ी हुई मिथुन प्रतिमाऐं सर्वोत्तम शिल्प की परिचायक हैं जो कि दर्शकों की भावनाओं को अत्यंत उद्वेलित व आकर्शित करती हैं और अपनी मूर्तिकला के लिए विशेष उल्लेखनीय हैं। खजुराहो की मूर्तियों की सबसे अहम और महत्त्वपूर्ण ख़ूबी यह है कि इनमें गति है, देखते रहिए तो लगता है कि शायद चल रही है या बस हिलने ही वाली है, या फिर लगता है कि शायद अभी कुछ बोलेगी, मस्कुराएगी, शर्माएगी या रूठ जाएगी। और कमाल की बात तो यह है कि ये चेहरे के भाव और शरीर की भंगिमाऐं केवल स्त्री पुरुषों में ही नहीं बल्कि जानवरों में भी दिखाई देते हैं। कुल मिलाके कहा जाय तो हर मूर्ति में एक अजीब सी हलचल है।
खजुराहो के प्रमुख मंदिरों में लक्ष्मण, विश्वनाथ, कंदारिया महादेव, जगदम्बी, चित्रगुप्त, दूल्हादेव,पार्श्वनाथ,आदिनाथ, वामन, जवारी, तथा चतुर्भुज इत्यादि हैं।
परिचय
अगर भारत में कहीं भी मंदिर स्थापत्य व वास्तु कला का रचनात्मक, अद्वितीय, विलक्षण, भव्य, राजसी, बेजोड़, लाजवाब, शानदार और शाही सृजन है ... तो वह है केवल और केवल खजुराहो में। खजुराहो चंदेल शासकों के प्राधिकार का प्रमुख स्थान था जिन्होंने यहाँ अनेकों तालाबों, शिल्पकला की भव्यता और वास्तुकलात्मक सुंदरता से सजे विशालकाय मंदिर बनवाए। यशोवर्मन[2] ने विष्णु का मंदिर बनवाया जो अब लक्ष्मण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है और यह चंदेल राजाओं की प्रतिष्ठा का दावा करने वाले इसके समय के एक उदाहरण के रूप में स्थित है।
विश्वनाथ, पार्श्व नाथ और वैद्य नाथ के मंदिर राजा डांगा के समय से हैं जो यशोवर्मन के उत्तरवर्ती थे। खजुराहो का सबसे बड़ा और महान मंदिर अनश्वर कंदारिया महादेव का है जिसे राजा गंडा[3] ने बनवाया है। इसके अलावा कुछ अन्य उदाहरण हैं जैसे कि वामन, आदि नाथ, जवारी, चतुर्भुज और दुल्हादेव कुछ छोटे किन्तु विस्तृत रूप से संकल्पित मंदिर हैं। खजुराहो का मंदिर समूह अपनी भव्य छतों (जगती) और कार्यात्मक रूप से प्रभावी योजनाओं के लिए भी उल्लेखनीय है। यहाँ की शिल्पकलाओं में धार्मिक छवियों के अलावा परिवार, पार्श्व, अवराणा देवता, दिकपाल और अप्सराएँ तथा सूर सुंदरियाँ भी हैं। यहाँ वेशभूषा और आभूषण भव्यता मनमोहक हैं।[4]
इतिहास
खजुराहो का प्राचीन नाम 'खर्जुरवाहक' है। 900 से 1150 ई. के बीच यह चन्देल राजपूतों के राजघरानों के संरक्षण में राजधानी और नगर था, जो एक विस्तृत क्षेत्र 'जेजाकभुक्ति' (अब मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र) के शासक थे। चन्देलों के राज्य की नींव आठवीं शती ई. में महोबा के चन्देल नरेश चंद्रवर्मा ने डाली थी। तब से लगभग पाँच शतियों तक चन्देलों की राज्यसत्ता जुझौति में स्थापित रही। इनका मुख्य दुर्ग कालिंजर तथा मुख्य अधिष्ठान महोबा में था। 11वीं शती के उत्तरार्द्ध में चन्देलों ने पहाड़ी क़िलों को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बना लिया। लेकिन खजुराहो का धार्मिक महत्त्व 14वीं शताब्दी तक बना रहा। इसी काल में अरबी यात्री इब्न बतूता यहाँ पर योगियों से मिलने आया था। खजुराहो धीरे-धीरे नगर से गाँव में परिवर्तित हो गया और फिर यह लगभग विस्मृति में खो गया।
यातायात
खजुराहो, महोबा से 54 किलोमीटर दक्षिण में, छतरपुर से 45 किलोमीटर पूर्व और सतना ज़िले से 105 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है तथा निकटतम रेलवे स्टेशनों अर्थात् महोबा, सतना और झांसी से पक्की सड़कों से खजुराहो अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।[5]
हवाई मार्ग खजुराहो के लिए दिल्ली, बनारस और आगरा से प्रतिदिन विमान–सेवा उपलब्ध रहती है।
रेल मार्ग दिल्ली से खजुराहो माणिकपुर होते हुए उत्तर प्रदेश संपर्क क्रांति ट्रेन से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा, दिल्ली-चेन्नई रेल मार्ग पर पड़ने वाले स्टेशनों महोबा (61 किमी ), हरपालपुर (94 किमी ) और झांसी (172 किमी ) से भी ट्रेन बदलकर खजुराहो जाया जा सकता है।
बस मार्ग खजुराहो सतना, हरपालपुर, झांसी और महोबा से बस सेवा द्वारा जुड़ा हुआ है।
मन्दिरों की खोज
1838 में एक ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन टी.एस. बर्ट को अपनी यात्रा के दौरान अपने कहारों से इसकी जानकारी मिली। उन्होंने जंगलों में लुप्त इन मन्दिरों की खोज़ की और उनका अलंकारिक विवरण बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी के समक्ष प्रस्तुत किया। 1843 से 1847 के बीच छतरपुर के स्थानीय महाराजा ने इन मन्दिरों की मरम्मत कराई। जनरल अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने इस स्थान की 1852 के बाद कई यात्राएँ कीं और इन मन्दिरों का व्यवस्थाबद्ध वर्णन अपनी भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट (आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया रिपोर्ट्स) में किया। खजुराहों के स्मारक अब भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की देखभाल और निरीक्षण में हैं। जिसने अनेक टीलों की खुदाई का कार्य करवाया है। इनमें लगभग 18 स्थानों की पहचान कर ली गई है। सन 1950-51 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद खजुराहो आए। इस दौरान यहां के निवासियों ने खजुराहो के विकास की रूप्रेखा उनके समक्ष रखी,उसके बाद वर्ष 1955 में पंडित जवाहर लाल नेहरू का भी खजुराहो आगमन हुआ। उन्होंने खजुराहो के मंदिरों की सराहना करते हुए इसके विकास की दिशा में क़दम उठाने का आश्वासन दिया। इन्हीं मंदिरों की वजह से खजुराहो पर्यटन स्थल के रूप में शीघ्र विकसित हुआ। आज विश्व पर्यटन के मानचित्र पर खजुराहो का विशिष्ट स्थान है। खजुराहो को यूनेस्को से 1986 ई. में विश्व धरोहर स्थल का दर्जा भी मिला। आधुनिक खजुराहो एक छोटा-सा गाँव है, जो होटलों और हवाई अड्डे के साथ पर्यटन व्यापार की सुविधा उपलब्ध कराता है।
कलात्मकता
खजुराहो के मंदिर भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना हैं। खजुराहो में चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए ख़ूबसूरत मंदिरो में की गई कलाकारी इतनी सजीव है कि कई बार मूर्तियाँ ख़ुद बोलती हुई मालूम देती हैं। दुनिया को भारत का खजुराहो के कलात्मक मंदिर एक अनमोल तोहफ़ा हैं। उस समय की भारतीय कला का परिचय इनमे पत्थर की सहायता से उकेरी गई कलात्मकता देती है। खजुराहो के मंदिरों को देखने के बाद कोई भी इन्हें बनाने वाले हाथों की तारीफ़ किए बिना नहीं रह सकता।
निर्माण के पीछे कथा
खजुराहो के मंदिरों के निर्माण के पीछे एक बेहद रोचक कथा है। कहा जाता है कि हेमवती एक ब्राह्मण पुजारी की बेटी थी। एक बार जब जंगल के तालाब में नहा रही थी, तो चंद्र देव यानी कि चंद्रमा उस पर मोहित हो गए और दोनों के एक बेटा हुआ।
हेमवती ने अपने बेटे का नाम चंद्रवर्मन रखा। इसी चंद्रवर्मन ने बाद में चंदेल वंश की स्थापना की। चंद्रवर्मन का लालन-पालन उसकी मां ने जंगल में किया था। राजा बनने के बाद उसने मां का सपना पूरा करने की ठानी। उसकी मां चाहती थी कि मनुष्य की तमाम मुद्राओं को पत्थर पर उकेरा जाए। इस तरह चंद्रवर्मन की मां हेमवती की इच्छा स्वरूप इन ख़ूबसूरत मंदिरों का निर्माण हुआ। खजुराहो के ये मंदिर पूरी दुनिया के लिए एक धरोहर हैं।
सर्वोत्कृष्ट कलाकृतियाँ
वास्तु और मूर्तिकला की दृष्टि से खजुराहो के मन्दिरों को भारत की सर्वोत्कृष्ट कलाकृतियों में स्थान दिया जाता है। यहाँ की श्रृंगारिक मुद्राओं में अंकित मिथुन-मूर्तियों की कला पर सम्भवतः तांत्रिक प्रभाव है, किन्तु कला का जो निरावृत और अछूता सौदर्न्य इनके अंकन में निहित है, उसकी उपमा नहीं मिलती। इन मन्दिरों के अलंकरण और मनोहर आकार-प्रकार की तुलना में केवल भुवनेश्वर के मन्दिर की कला टिक सकती है। मुख्य मन्दिर तथा मण्डपों के शिखरों पर आमलक स्थित है। ये शिखर उत्तरोत्तर ऊँचे होते गए हैं, और इसलिए बड़े प्रभावोत्पादक तथा आकर्षक दिखाई देते हैं। मन्दिरों की मूर्तिकला की सराहना सभी पर्यवेक्षकों ने की है। मन्दिर का अपूर्व सौन्दर्य, काफ़ी विस्तार और चित्रकार की कूची को लज्जित करने वाला बारीक नक़्क़ाशी का काम देखकर चकित होना पड़ता है।
खजुराहो की मिथुन प्रतिमाऐं
इन मूर्तियों के बारे में भिन्न भिन्न व्याख्याऐं व विचार हैं। कुछ की मान्यता है कि ये प्रतिमाऐं समकालीन समाज की जर्जर व कमज़ोर नैतिकता का प्रतिनिधित्व करती हैं। कुछ की धारणा है कि यह कामशास्त्र के पौराणिक ग्रंथों के रत्यात्मक आसनों का निदर्शन है। यह भी माना जाता है कि ये प्रतिमाऐं, कुछ विशेष मध्यकालीन भारतीय पंथ जो कि कामुक कृत्य को धार्मिक प्रतीकवाद मानते थे, का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये लोग मोक्ष पाने के लिए योग तथा भोग दोनों ही मार्गों का अनुसरण करते रहे होंगे।
यहां हमें यह भी ध्यान रखना पड़ेगा कि प्रारम्भिक काल से ही भारतीय कला, साहित्य तथा लोक परम्परा में सदा ही एक कामुक तत्त्व की उपस्थिति रही है। मिथुन (प्रेमी युगल) प्रतिमाऐं तो शुंग काल की मूर्तिकला तथा मृण्मूर्तियों में भी मौजूद थीं। इस कला ने अमरावती और मथुरा से शुरू होकर बाद की सभी कला शैलियों को अनुप्राणित किया।
बौद्ध धर्म
खजुराहो में विराजमान बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा के प्राप्त होने से यह संकेत मिलता है कि इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म का भी प्रचलन था, भले ही वह सीमित पैमाने पर ही क्यों न रहा हो। कनिंघम के मत में गंठाई नामक मन्दिर बौद्ध धर्म से सम्बन्धित है, किन्तु यह तथ्य सत्य जान नहीं पड़ता।
हिन्दू धार्मिक प्रणाली
खजुराहो की हिन्दू धार्मिक प्रणाली तंत्र पर आधारित थी, लेकिन कापालिक सम्प्रदाय के खोपड़ी धारियों (शिव के कापाली स्वरूप के पूजक) से पृथक थी। ये लोग उग्र तांत्रिक नहीं थे, ये परम्परागत रूढ़िवादी और ब्राह्मणवादी धारा के थे, जो वैदिक पुनरुत्थान और पौराणिक तत्वों से प्रभावित थे, जैसा कि मन्दिरों के शिलालेखों से प्रमाण मिलता है।
पर्यटन स्थल
खजुराहो प्रसिद्ध पर्यटन और पुरातात्विक स्थल है। जिसमें हिन्दू व जैन मूर्तिकला से सुसज्जित 25 मन्दिर और तीन संग्रहालय हैं। 25 मन्दिरों में से 10 मंदिर विष्णु को समर्पित हैं, जिसमें उनका एक सशक्त मिश्रित स्वरूप वैकुण्ठ शामिल है। नौ मन्दिर शिव के, एक सूर्य देवता का, एक रहस्यमय योगिनियों (देवियों) का और पाँच मन्दिर दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के तीर्थकारों के हैं। खजुराहो के मन्दिर में तीन बड़े शिलालेख हैं, जो चन्देल नरेश गण्ड और यशोवर्मन के समय के हैं। 7वीं शती में चीनी यात्री युवानच्वांग ने खजुराहो की यात्रा की थी। उसने उस समय भी अनेक मन्दिरों को वहाँ पर देखा था। पिछली शती तक खजुराहो में सबसे अधिक संख्या में मन्दिर स्थित थे, किन्तु इस बीच वे नष्ट हो गए हैं।
पश्चिमी समूह के मंदिर
खजुराहो के पश्चिमी समूह में लक्ष्मण, कंदारिया महादेव, मतंगेश्वर, विश्वनाथ, लक्ष्मी, जगदम्बी, चित्रगुप्त, पार्वती तथा गणेश मंदिर आते हैं। यहीं पर वराह व नन्दी के मंडप भी हैं।
लक्ष्मण मंदिर
यह वैष्णव मंदिर, पंचायतन शैली का संधार मंदिर है। इस मंदिर को 930 से 950 ईसवी के बीच, चंदेल शासक यशोवर्मन ने बनवाया था। इस मंदिर की लम्बाई 29 मीटर तथा चौड़ाई 13 मीटर है। स्थापत्य तथा वास्तु कला के आधार पर, बलुआ पत्थरों से बने मंदिरों में लक्ष्मण मंदिर सर्वोत्तम है। ऊंची जगत पर स्थित इस मंदिर के गर्भगृह में 1.3 मीटर ऊंची विष्णु की मूर्ति अलंकृत तोरण के बीच स्थित है। पूरा मंदिर एक ऊंची जगत पर स्थित होने के कारण मंदिर में विकसित इसके सभी भाग देखे जा सकते हैं। जिनके अर्धमंडप, मंडप, महामंडप, अंतराल तथा गर्भगृह में, मंदिर की बाहरी दीवारों पर प्रतिमाओं की दो पंक्तियां जिनमें देवी देवतागण, युग्म और मिथुन वगैरह हैं। मंदिर के बाहरी हिस्से की दीवारों तथा चबूतरे पर युद्ध, शिकार, हाथी, घोड़ों, सैनिक, अप्सराऑं और मिथुनाकृतियों के दृश्य अंकित हैं। सरदल के मध्य में लक्ष्मी है, जिसके दोनों ओर ब्रह्मा एवं विष्णु हैं।
विश्वनाथ मंदिर
आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व पंचायतन शैली में महाराजा धंगदेव वर्मन द्वारा बनवाए गए विश्वनाथ[6] मंदिर में तीन सिर वाले ब्रह्माजी की मूर्ति स्थापित है। अब इसका कुछ भाग खंडित हो चुका है। भारत देश में भगवान विष्णु और शिव शंकर के मंदिर तो बहुत जगह हैं, लेकिन ब्रह्मा जी के मंदिर देश में ढूंढने से भी नहीं मिलते हैं। मंदिर की उत्तरी दिशा में स्थित शेर और दक्षिणी दिशा में स्थित हाथी की प्रतिमाएँ काफ़ी सजीव लगती हैं। इनके अलावा एक नंदी की प्रतिमा भगवान की ओर मुँह किए हुए भी मौजूद है।
कंदारिया महादेव
कंदारिया महादेव मंदिर[7] खजुराहो के मंदिरों में सबसे बड़ा, ऊंचा और कलात्मक यही मंदिर है। यह मंदिर 109 फुट लम्बा, 60 फुट चौड़ा और 116 फुट ऊँचा है। इस मन्दिर के सभी भाग- अर्द्धमण्डप, मण्डप, महामण्डप, अन्तराल तथा गर्भगृह आदि, वास्तुकला के बेजोड़ नमूने हैं। गर्भगृह चारों ओर से प्रदक्षिणापथ युक्त है। यह मंदिर शिव को समर्पित है तथा इस मंदिर में शिवलिंग के अलावा तमाम देवी-देवताओं की कलात्मक मूर्तियाँ मन मोह लेती हैं।
मन्दिर के प्रत्येक भाग में केवल दो और तीन फुट ऊँची मूर्तियों की संख्या ही 872 है। छोटी मूर्तियाँ तो असंख्य हैं। पूरी समानुपातिक योजना, आकार, ख़ूबसूरत मूर्तिकला एवं भव्य वास्तुकला की वजह से यह मंदिर मध्य भारत में अपनी तरह का शानदार मंदिर है।
मंदिर में सोपान द्वारा अलंकृत कीर्तिमुख, नृत्य दृश्य युक्त तोरण द्वार से प्रवेश किया जा साकता है। बाहर से देखने पर इसका मुख्य द्वार एक गुफ़ा यानी कि कंदरा जैसा नज़र आता है, शायद इसीलिए इस मंदिर का नाम कंदारिया महादेव पड़ा है। गर्भगृह के सरदल पर विष्णु, उनके दाऎं ब्रह्मा एवं बाऎं शिव दिखाए गए हैं। कुछ अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर की भी यह विशेशता है कि अगर कुछ दूर से आप इसे देखें तो आपको लगेगा कि आप सैंड स्टोन से बने मंदिर को नहीं बल्कि चंदन की लकड़ी पर तराशी गई कोई भव्य कृति देख रहे हैं। अब सवाल उठता है कि अगर यह मंदिर बलुआ पत्थर से बना है तो फिर मूर्तियों, दीवारों और स्तम्भों में इतनी चमक कैसे, दरअसल यह चमक आई है चमड़े से ज़बरदस्त घिसाई करने के कारण। अपनी तरह के इस अनोखे मंदिर की दीवारें और स्तम्भ इतने ख़ूबसूरत बने हुए हैं कि पर्यटक उन्हें देखकर हैरान रह जाते हैं।
चित्रगुप्त मंदिर
चित्रगुप्त मन्दिर पूर्व की ओर मुख वाला मंदिर है। यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। इस मंदिर के अंदर 5 फुट ऊँचे सात घोड़ों के रथ पर सवार भगवान सूर्य की प्रतिमा मनमोहक है। इस मंदिर की दीवारों पर राजाओं के शिकार और उनकी सभाओं में समूह नृत्य के दृश्य काफ़ी ख़ूबसूरती के साथ उकेरे गए हैं। इससे चंदेल राजाओं की संपन्नता का पता लगता है।
जगदंबी मंदिर
राजा गंडदेव वर्मन द्वारा निर्मित यह मंदिर चित्रगुप्त मंदिर के ही समीप स्थित है। विष्णु भगवान के इस मंदिर में सैकड़ों वर्ष बाद छतरपुर के महाराजा ने यहाँ पर पार्वती की प्रतिमा स्थापित करवाई थी, इसीलिए इसे ‘जगदंबी मंदिर’ कहा जाता है।
मतंगेश्वर मंदिर
राजा हर्षवर्मन द्वारा सन् 920 ईसवी में बनवाया गया यह मंदिर खजुराहो में चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए सभी मंदिरों में सबसे पुराना माना जाता है। यहाँ के सभी पुराने मंदिरों में यही एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ अभी भी पूजा–अर्चना की जाती है।[8]
चौंसठ योगिनी मन्दिर
खजुराहो में 64 योगिनियों का खुला मन्दिर[9] खुरदुरे ग्रेनाइट पत्थर का बना हुआ है। उत्तरमुखी इस मन्दिर का निर्माण 900 ईसवी में माना जाता है। जबकि 10वीं शताब्दी के मध्य में बने नागर शैली के उत्कृष्ट मन्दिर, चिकने बलुआ पत्थर से निर्मित हैं। यहां से ब्रह्माणी, इंद्राणी व महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमाऐं प्राप्त हुई हैं।
पूर्वी समूह के मन्दिर
पूर्वी समूह के मंदिरों में हैं - ब्रह्मा, वामन, जवारी व हनुमान मन्दिर ... और जैन मंदिरों में हैं - पार्श्वनाथ, आदिनाथ व घंटाई मंदिर।
वामन मन्दिर
यह मंदिर विष्णु के वामन अवतार को समर्पित है। इसके भू-विन्यास में सप्तरथ, गर्भगृह, अंतराल, महामंन्डप तथा मुखमंडप हैं। इसका गर्भगृह निरंधार है तथा चतुर्भुज वामन की प्रतिमा स्थापित की हुई है। जिनके दोनो ओर क्रमशः चक्रपुरुष व शंखपुरुष हैं। इस मंदिर के महामण्डप की छत पश्चिमी भारत के मध्यकालीन मंदिरों के समान संवर्ण शैली के अनुरूप हैं। मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार सप्त शाखाऔं से अलंकृत हैं। जो लता, पुष्प, नृत्यरत गण, मिथुन, कमला पुरुष, कुण्डलीयुक्त नारी की आकृति से सुसज्जित हैं।
प्रवेश द्वार के निचले हिस्से में स्त्री परिचर व द्वारपाल सहित गंगा और यमुना को त्रिभंग में बताया गया है, जो हाथों में कलश तथा मालाऐं लिए हुए हैं।
सरदल के मध्य भाग में चतुर्भुज विष्णु तथा दोनों ओर आलियों में ब्रह्मा और विष्णु किए गए हैं। मंदिर के मध्य भाग में प्रतिमाओं की दो पंक्तियां हैं,जिनका आकर्षण सुर-सुंदरियों की प्रतिमाएं हैं। साथ ही गर्भगृह के बाहरी भाग पर प्रमुख आलियों में वराह व नृसिंह वामन की प्रतिमाऐं लगी हुई हैं।
जवारी मन्दिर
सन 1075 से 1100 ईसवी के बीच निर्मित इस मंदिर की सानुपातिक संरचना के प्रदक्षिणापथविहीन, गर्भगृह, अंतराल तथा मंडप विद्यमान है। यह उत्कृष्ट मकरतोरण तथा सुंदर शिखर से अलंकृत है तथा बाह्य दीवारें सुंदर प्रतिमाओं से सुसज्जित हैं जो कि तीन पंक्तियों में उत्कीर्ण हैं। यह मंदिर खजुराहो के चतुर्भुज मंदिर से निकट साम्य रखता है। इसके अलावा अन्य विशेषताऐं मध्य भारत की मध्य युगीन मंदिर संरचना से समानता रखती हैं।
हनुमान मंदिर
खजुराहो एक ऐसा धार्मिक केन्द्र था, जहाँ कई सम्प्रदाय फले-फूले थे। खजुराहो की तरफ़ जाने वाले रास्ते पर हनुमान की 3 मीटर ऊंची प्रतिमा एक चबूतरे पर स्थित है। इस मूर्ति का महत्त्व इसलिए भी है क्यों कि यहां जो शिला लेख उत्कीर्ण है वह 922 ईसवी का है। इस हिसाब से खजुराहो का यह सबसे पुराना मंदिर है।
प्रतिभा व स्थापत्य शैली के आधार पर इस मंदिर का निर्माण काल तक़रीबन 1050 से 1075 ईसवी के बीच निर्धारित किया गया है।
जैन मन्दिर
खजुराहो में जो मन्दिर बनवाए गए उनमें से तीस आज भी स्थित हैं। इन मंदिरों में आठ जैन मन्दिर हैं। जैन मन्दिरों की वास्तुकला अन्य मन्दिरों के शिल्प से मिलती-जुलती है। सबसे बड़ा मन्दिर पार्श्वनाथ का है, जिसका निर्माण काल 950-1050 ई. है। यह 62 फुट लम्बा और 31 फुट चौड़ा है। इसकी बाहरी भित्तियों पर तीन पंक्तियों में जैन मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं।
पार्श्वनाथ मंदिर
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खजुराहो की मूर्तियों की सबसे अहम और महत्त्वपूर्ण ख़ूबी यह है कि इनमें गति है, देखते रहिए तो लगता है कि शायद चल रही है या बस हिलने ही वाली है, या फिर लगता है कि शायद अभी कुछ बोलेगी, मस्कुराएगी, शर्माएगी या रूठ जाएगी। और कमाल की बात तो यह है कि ये चेहरे के भाव और शरीर की भंगिमाऐं केवल स्त्री पुरुषों में ही नहीं बल्कि जानवरों में भी दिखाई देते हैं। कुल मिलाके कहा जाय तो हर मूर्ति में एक अजीब सी जुंबिश नज़र आती है।|विचारक=}} खजुराहो में जितने भी प्राचीन जैन मंदिर हैं, उनमें से यह सबसे सुंदर, विशाल व भव्य है। यह अपने भू विन्यास में विशिष्ट है। हां ...यह मंदिर साधारण है, लेकिन फिर भी इसमें किसी भी प्रकार का वातायन नहीं है। इसकी अन्य विशेषता यह है कि इसके गर्भगृह के पीछे एक और छोटा मंदिर भी जुड़ा है। दूसरे अर्थों में यह कहा जा सकता है कि यह विकसित खजुराहो (चंदेल) शैली का एक मंदिर है जिसमें अद्भुत अलंकरण तथा प्रतिमाऑं की सौम्यता दृष्ट्व्य होती है। इस मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी के मध्य हुआ था। मूलरूप से यह मंदिर प्रथम तीर्थंकर को समर्पित किया गया था।
आदिनाथ मंदिर
इस मंदिर के गर्भगृह में आदिनाथ प्रतिमा स्थापित होने के कारण यह जैन मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह निरंधार शैली का मंदिर है जिसमें मंडप तथा अर्धमंडप रहा होगा जो कि वर्तमान में पूर्ण रूप से नष्ट हो चुका है। आजकल इस में गर्भगृह तथा अंतराल हैं। इसके साथ ही वर्तमान समय में निर्मित मेहराबदार निर्माण देखा जा सकता है। जिसके अंदर गुम्बदनुमा छत है जो कि प्राचीन निर्माण से जुड़ी है। यह मंदिर सप्तरथ है एवं इसका भूविन्यास वामन मंदिर जैसा है, फिर भी यह मंदिर अत्याधिक विकसित शैली का है। इसका शिखर तथा जंघा भाग वामन मंदिर के समान ही अलंकृत है। शैली के आधार पर यह मंदिर ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में निर्मित हुआ था।
दक्षिणी समूह के मंदिर
खजुराहो के दक्षिणी समूह के मंदिरों में आते हैं चतुर्भुज और दूल्हादेव मंदिर।
चतुर्भुज मंदिर
इस मंदिर में प्रदक्षिणा पथ रहित गर्भगृह, अंतराल, मंडप तथा मुखमंडप है। यह मंदिर एक साधारण चबूतरे पर स्थित है। खजुराहो में यह एक ऐसा मंदिर है, जिसमें मिथुन मूर्तियों का अभाव है। दीवार के चारों तरफ़ मूर्तियों की तीन श्रृंखलाऐं हैं, जिनमें से ऊपरी पंक्ति में अंकित विद्याधरों की प्रतिमाओं के अलावा अन्य सभी प्रतिमाऐं एक जैसी हैं, जो कि शिल्पकला में हुए पतन का द्योतक है। दीवारों में जड़ी प्रतिमाऑं के अंतर्गत प्रथम पंक्ति में दिक्पाल की प्रतिमाऐं मध्य भाग में अष्ट बसु तथा शेष पंक्तियों में अप्सराऔं का अंकन है। आलियों में व्याल विशेष उल्लेखनीय हैं। गर्भगृह के प्रवेश द्वार के निचले भाग में त्रिभंग मुद्रा में गंगा, यमुना व द्वारपालों को प्रदर्शित किया गया है। इस मन्दिर के गर्भगृह में शिव की दक्षिणा मूर्ति स्थापित है, जिनकी मुखाकृति शांतभाव परिलक्षित करती है।
इस मंदिर का निर्माण काल सन 1100 ईसवी माना जाता है।
लाइट एंड साउंड शो
खजुराहो जैसी ऐतिहासिक जगह पर घूमने के बाद भी पर्यटकों के मन में इसके इतिहास से जुड़े कई सवाल अधूरे रह जाते हैं। पर्यटकों की तमाम शंकाओं के समाधान के लिए खजुराहो में लाइट एंड साउंड शो का आयोजन किया जाता है। इस शो में चंदेल राजाओं के वैभवशाली इतिहास से लेकर इन अप्रतिम मंदिरों के निर्माण की कहानी बताई जाती है। वेस्टर्न ग्रुप के मंदिरों के पास ही बने एक कॉम्पलेक्स में 50 मिनट तक चलने वाले एक शो में सुपर स्टार अमिताभ बच्चन अपनी आवाज में दर्शकों को खजुराहो के गौरवशाली इतिहास से रूबरू कराते हैं। ये शो रोजाना शाम को हिन्दी और अंग्रेज़ी में चलाए जाते हैं।
स्टेट म्यूज़ियम और ट्राइबल एंड फ़ोक आर्ट्स
यह संग्रहालय 'चंदेल कल्चरल कॉम्पलेक्स' में स्थित है। इस संग्रहालय में पूरे मध्य प्रदेश की आदिवासी जनजातियों की लोक कला के नमूने रखे गए हैं। मध्य प्रदेश सरकार के इस संग्रहालय में टेराकोटा, धातु शिल्प, काष्ठ शिल्प, आदिवासी और लोक चित्रकारी, टैटू, ज़ेवर और मुखौटों के 500 से ज़्यादा नमूने मौजूद हैं। यह संग्रहालय सोमवार और सरकारी छुट्टियों के अलावा रोजाना 12 बजे से 8 बजे तक खुलता है।
खजुराहो नृत्य समारोह
हर साल फ़रवरी - मार्च में खजुराहो में एक नृत्य समारोह का आयोजन किया जाता है। एक सप्ताह तक चलने वाले इस सास्कृतिक कार्यक्रम के लिए खजुराहो के मंदिरों के पश्चिमी समूह को एक पृष्ठपट की तरह इस्तैमाल किया जाता है। भारत का हर शास्त्रीय नर्तक इस भव्य समारोह में हिस्सा लेना अपना सौभाग्य समझता है।
रनेह जल प्रपात (रनेह फ़ॉल्स) तथा केन घड़ियाल अभयारण्य
रनेह (कृपया इसे "स्नेह" न समझें) प्रपात खजुराहो से केवल 19 किलो मीटर दूर है और यह वहीं स्थित है जहां से केन घड़ियाल अभयारण्य शुरू होता है। दरअसल केन घड़ियाल अभयारण्य में घड़ियाल स्थानीय नहीं हैं बल्कि लखनऊ से लाकर डाले गए हैं।
जिन चट्टानों पर रनेह जल प्रपात गिरता और बहता है, वे रंग बिरंगे ग्रेनाइटों से बनी हैं। यह चट्टानें लाल, नीले, फ़िरोज़ी और काले रंग में इतनी अद्भुत लगती हैं कि बिना इन्हें देखे इनकी भव्यता की कल्पना नहीं की जा सकती। इसके अलावा वहीं एक ज्वालामुख (क्रेटर) भी है, रनेह जल प्रपात जब रंगीन चट्टानों से गिरता हुआ इस ज्वालामुख से गुज़रता है तो बस वह नज़ारा देखते ही बनता है।
पन्ना नेशनल पार्क
पन्ना नेशनल पार्क खजुराहो से मात्र 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। केन नदी के किनारे स्थित यह नेशनल पार्क खजुराहो से सिर्फ़ आधा घंटे की दूरी पर है। पन्ना नेशनल पार्क में आप शेर के अलावा, चीता, भेड़िया और घड़ियाल देख सकते हैं। इसके अलावा, यहाँ नीलगाय, सांभर और चिंकारा के झुंड अक्सर घूमते नज़र आ जाते हैं। यहीं एक भव्य जलप्रपात तथा कुछ ग़ुफ़ाएं हैं जिन्हें पांडव जल प्रपात (पांडव फ़ॉल्स) तथा पांडव गुफ़ाऑं के नाम से जाना जाता है। [10]
पांडव (फ़ॉल्स) जल प्रपात
पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में स्थित पांडव फ़ॉल्स घने जंगलों से घिरा है तथा खजुराहो से यह लगभग 34 किलोमीटर दूर है। 98 फ़ुट से भी अधिक ऊंचाई से अनवरत गिरती एक मोटी जलधारा,पांडव गुफाओं की शोभा को और भी बढ़ा देती है। माना जाता है कि यहां पांडव आकर ठहरे थे। पौराणिक के साथ साथ इस स्थान का महत्त्व ऐतिहासिक भी है क्यों कि स्वतंत्रता सैनानी चंद्रशेखर आज़ाद ने यहां एक गुप्त गोष्ठी की थी।
खजुराहो में नई खोजें
इससे तो हम वाकिफ़ हैं ही कि खजुराहो के दृश्यपटल पर 22 मंदिर दिखाई देते हैं लेकिन सच्चाई और यथातथ्यता उन मंदिरों की अभिनिश्चित करनी थी जिनकी संख्या अनुश्रुति के अनुसार 84 बताई जाती है और जो दिखाई नहीं देते। तो इस कार्य को सम्पन्न करने का बीड़ा 1980 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने उठया और मंदिरों की खोज आरम्भ करदी। अब तक वे 18 प्राचीन टीलों को खोज निकालने में क़ामयाब रहे हैं। मार्च 1999 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण एक ऐसे टीले को खोजने में सफल हुआ जो कि अगर ध्वस्त न हुआ होता तो वह खजुराहो का सबसे बड़ा मंदिर होता। इस का नाम है बीजमंडल और आश्चर्यजनक बात यह है कि यह कंदारिया महादेव मंदिर से चार मीटर बड़ा है।
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खजुराहो चित्र वीथिका
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय रेल
- ↑ (954 ईसवी)
- ↑ (1017-29 ईसवी)
- ↑ खजुराहो (हिन्दी) भारत की आधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 13 अक्तूबर, 2010।
- ↑ खजुराहो (हिन्दी) भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण। अभिगमन तिथि: 14 अक्तूबर, 2010।
- ↑ (अंकित तिथि 999 ईसवी)
- ↑ (निर्माण 1025 - 1050 ई.)
- ↑ खजुराहो (हिन्दी) घमासान डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 14 अक्तूबर, 2010।
- ↑ (निर्माण 900 ईसवी)
- ↑ खजुराहो (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 14 अक्तूबर, 2010।
बाहरी कड़ियाँ
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