बुसी

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  • बुसी को 'बसी' या 'मारकुइस डि' नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। उसका पूरा नाम 'चार्ल्स जोसेफ़ पार्टस्स्यर, मारकुइस डि बुसी' था।
  • यह एक प्रमुख फ़्राँसीसी सेनापति था, जिसने कर्नाटक में हुए आंग्ल-फ़्राँसीसी युद्धों में भाग लिया था।
  • 1751 ई. में डूप्ले के आदेशानुसार वह नये निज़ाम मुजफ़्फ़रजंग को पदासीन करने उसकी राजधानी औरंगाबाद ले गया।
  • मुजफ़्फ़रजंग की मृत्यु के बाद सलावतजंग के गद्दी पर बैठे होने पर बुसी नये निज़ाम का परामर्शदाता बना।
  • निज़ाम के परामर्शदाता के रूप में बुसी ने उसकी सरकार का सात वर्षों तक बड़ी कुशलता के साथ संचालन किया।
  • 1753 ई. में बुसी ने निज़ाम सलावतजंग को सलाह दी कि वह फ़्राँसीसी सेना का ख़र्च चलाने के लिए, जो निज़ाम के शत्रुओं से उसकी रक्षा करने के लिए तैनात की गई थी और जिसके आधार पर निज़ाम के दरबार में फ़्राँसीसी प्रभुत्व स्थापित हो गया था, उत्तरी सरकार का राजस्व उसके सुपुर्द कर दे।
  • तीसरा आंग्ल-फ़्राँसीसी युद्ध (1753-63 ई.) शुरू होने पर 1758 ई. में 'वाउण्ट डि लाली' ने बुसी को निज़ाम के दरबार से वापस बुला लिया।
  • बुसी को वापस बुला लिए जाने से निज़ाम के दरबार में फ़्राँसीसी प्रभुत्व समाप्त हो गया।
  • सर आयरकूट के नेतृत्व में अंग्रेज सेना ने फ़्राँसीसियों को 1760 ई. में विन्दवास की लड़ाई में हराकर उत्तरी सरकार पर क़ब्ज़ा कर लिया।
  • इस लड़ाई में बुसी बन्दी बना लिया गया, मगर बाद में रिहा होकर वह फ़्राँस वापस लौट गया।
  • 1783 ई. में उसे अंग्रेज़ों के विरुद्ध हैदरअली की सहायता करने के लिए पुन: भारत भेजा गया।
  • इस समय तक बुसी वृद्ध हो चला था और बीमार रहता था।
  • उसके आने से पहले ही हैदरअली की मृत्यु हो गई।
  • ऐसी परिस्थिति में वह घटनाक्रम को प्रभावित नहीं कर सका और अन्त में सेवानिवृत्त होकर फ़्राँस वापस लौट गया।
  • निज़ाम सलामतजंग के परामर्शदाता के रूप में उसे प्रचुर धन प्राप्त हुआ था। उसके आधार पर उसने अपना शेष जीवन सुख से बिताया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण - 1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 277।

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