उत्तंग

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  • उत्तंग गौतम ऋषि के शिष्य थे। उत्तंग की गुरु भक्ति देखकर ऋषि ने अपनी कन्या का विवाह इनके साथ कर दिया था।
  • शिक्षा पूरी करने के बाद जब उत्तंग ने गौतम ऋषि से गुरु दक्षिणा के संबंध में पूछा तो गुरुपत्नी ने सौदास की पत्नी मदयंती के कुंडल लाकर देने को कहा। सौदास नरभक्षी राक्षस था। उत्तंग निर्भय उसके पास पहुंचे।
  • उत्तंग ने सौदास को आश्वासन दिया कुंडल ऋषि की पत्नी को देकर वे सौदास का आहार बनने के लिए चले आएंगे।
  • उत्तंग ने मदयंती के कुंडल प्राप्त कर लिए। लौटते समय जब वे मार्ग में स्नान करने के लिए रूके तो तक्षक कुंडल चुराकर पाताल लोक चला गया। इस पर उत्तंग ने इंद्र की सहायता से पाताल लोक जाकर कुंडल प्राप्त किए और गुरुदक्षिणा चुकाई।
  • गौतम को उत्तंग इतना प्रिय था कि वृद्धावस्था आने पर ही उन्होंने उसे आश्रम से जाने दिया।

अन्य कथा

  • यह कथा दूसरे नाम से भी मिलती है। उसमे उत्तंग को वैद ऋषि का शिष्य बताया गया है।
  • एक बार ऋषि की अनुपस्थिति में उत्तंग के चरित्र की परीक्षा लेने के लिए ऋषि पत्नी ने किसी अन्य स्त्री के माध्यम से उत्तंग के प्रति कामेच्छा प्रकट की।
  • उत्तंग ने इसका निषेध किया। ऋषि को जब इसका पता चला तो उन्होंने उसके चरित्र की प्रशंसा की। इस कथा में उत्तंग भी शिक्षा की समाप्ति पर जब गुरुदक्षिणा देनी चाही तो गुरुपत्नी ने पौष्य राजा की पत्नी के कुंडल मांगे।
  • उत्तंग जब पौष्य के यहां से कुंडल लेकर चला तो तक्षक ने बौद्ध भिक्षु का रूप धारण करके उसका पीछा किया और अवसर मिलते ही कुंडल लेकर पाताल लोक चला गया। तब इंद्र की सहायता से उत्तंग कुंडल वापस लाकर गुरुपत्नी को दे सका। मतंग मुनि के शिष्य का नाम भी उत्तंग था जिसे दंडकारण्य में राम के दर्शन हुए थे। एक उत्तंग ऋषि की महाभारत युद्ध के बाद कृष्ण से भी भेंट हुई थी।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ