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मार दी तुझे पिचकारी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
शरण में जन, जननि -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
ध्वनि -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
अट नहीं रही है -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
गीत गाने दो मुझे -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
प्रियतम -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
कुत्ता भौंकने लगा -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
गर्म पकौड़ी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
दीन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
तुम और मैं -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
पथ आंगन पर रखकर आई -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
खेलूँगी कभी न होली -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
मातृ वंदना -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
आज प्रथम गाई पिक पंचम -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
उत्साह -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
चुम्बन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
मौन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
प्रपात के प्रति -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
प्रिय यामिनी जागी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
वन बेला -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
भिक्षुक -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
तोड़ती पत्थर -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
प्राप्ति -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
मुक्ति -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
वे किसान की नयी बहू की आँखें -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
वर दे वीणावादिनी वर दे ! -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
मरा हूँ हज़ार मरण -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
भारती वन्दना -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
रँग गई पग-पग धन्य धरा -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
भर देते हो -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
दलित जन पर करो करुणा -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
उक्ति -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
बापू, तुम मुर्गी खाते यदि... -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
ख़ून की होली जो खेली -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
आज प्रथम गाई पिक -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
स्नेह-निर्झर बह गया है -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
पत्रोत्कंठित जीवन का विष -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
केशर की कलि की पिचकारी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
भेद कुल खुल जाए -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
राजे ने अपनी रखवाली की -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
गहन है यह अंधकारा -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
मद भरे ये नलिन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
खुला आसमान -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
संध्या सुन्दरी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
तुम हमारे हो -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
टूटें सकल बन्ध -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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