त्रंकिबार दुर्ग

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
लक्ष्मी (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:14, 13 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{पुनरीक्षण}} '''त्रंकिबार दुर्ग''' तमिलनाडु में [[चैन्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

त्रंकिबार दुर्ग तमिलनाडु में चैन्नई से 240 किमी दूर समुद्र तट पर डचों द्वारा बनावाया गया एक ऐतिहासिक दुर्ग है।

  • भारत में यही एकमात्र स्थान उनके कब्जे में था।
  • त्रंकिबार दुर्ग आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है। सत्रहवीं सदी के प्रारम्भ में विदेशी व्यापार के प्रोत्साहन के लिए तंजौर (वर्तमान तंजावुर) के राजा श्री रघुनाथ नाइक (1600-1630 ई.) ने डेनमार्क के प्रथम गवर्नर को इस स्थान का आठ किमी लम्बा और चार किमी चौड़ा भू-भाग किराये पर दिया।
  • तत्पश्चात् 'द डेनिश ईस्ट इंडिया कम्पनी' ने यहाँ एक गोदाम बनाया तथा उसकी सुरक्षा के लिए 1620-21 ई. में 'डैंसबर्ग' नाम से एक क़िले का निर्माण किया। तब से 1845 ई. तक डैंसबर्ग ने कोरोमण्डल तट और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • डेनमार्क के राजा और लुथेरियन चर्च के प्रमुख फ्रेडरिक प्लुशॉ को त्रंकिबार भेजा गया। 9 जुलाई, 1706 को वे यहाँ पहुँचे।
  • जीगेनबाल ने यहाँ पर कुछ ही समय में तमिल सीख कर बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट को तमिल भाषा में अनूदित कर प्रकाशित करवा दी। क़िले के भीतर स्थित संग्रहालय त्रंकिबार के इतिहास और वहाँ हुए विदेशी व्यापार की जानकारी देता है।
  • अब यह दुर्ग तमिलनाडु के पुरातत्त्व विभाग के अंतर्गत संरक्षित स्मारक रूप में है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख