सदस्य:रेणु/अभ्यास

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

₪ अभ्यास सम्पादन

╠ अभ्यास सम्पादन ╣


संस्कार

अन्त्येष्टि एक संस्कार है। यह द्विजों द्वारा किये जाने वाले सोलह या इससे भी अधिक संस्कारों में एक है और मनु[1], याज्ञवल्क्यस्मृति[2] एवं जातुकर्ण्य[3] के मत से यह वैदिक मन्त्रों के साथ किया जाता है।[4] ये संस्कार पहले स्त्रियों के लिए भी[5] होते थे, किन्तु बिना वैदिक मन्त्रों के (किन्तु विवाह संस्कार में वैदिक मन्त्रोंच्चारण होता है) और शूद्रों के लिए[6] भी बिना वैदिक मन्त्रों के। बौधायन पितृमेधसूत्र[7] का कथन है कि प्रत्येक मानव के लिए दो संस्कार ऋण-स्वरूप हैं (अर्थात् उनका सम्पादन अनिवार्य है) और वे हैं, जन्म संस्कार एवं मृतक संस्कार। दाह संस्कार तथा श्राद्ध आदि आहिताग्नि[8] एवं स्मार्ताग्नि[9] के लिए भिन्न-भिन्न रीतियों से होते हैं, तथा उन लोगों के लिए भी जो श्रौत या स्मार्त कोई अग्नि नहीं रखते। जो स्त्री है, बच्चा है, परिव्राजक है, जो दूर देश में मरता है, जो अकाल मृत्यु पाता है या आत्महत्या करता है या दुर्घटनावश मर जाता है; उनके लिए अन्त्येष्टि-कृत्य भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। एक ही विषय की कृत्य-विधियों में श्रौतसूत्र एवं गृह्यसूत्र विभिन्न बातें कहते हैं और आगे चलकर मध्य एवं पश्चात्यकालीन युगों युगों में विधियाँ और भी विस्तृत होती चली गयी हैं। निर्णयसिन्धु[10] ने स्पष्ट कहा है कि, अन्त्येष्टि प्रत्येक शाखा में भिन्न रूप से उल्लिखित है, किन्तु कुछ बातें सभी शाखाओं में एक-सी हैं।[11] अन्त्य-कर्मों के विस्तार, अभाव एवं उपस्थिति के आधार पर सूत्रों, स्मृतियों, पुराणों एवं निबन्धों के काल-क्रम-सम्बन्धी निष्कर्ष निकाले गये हैं,[12] किन्तु ये निष्कर्ष बहुधा अनुमानों एवं वैयक्तिक भावनाओं पर ही आधारित हैं।

ऋग्वेद के सूक्त

श्रौतसूत्रों, गृह्यसूत्रों एवं पश्चात्कालीन ग्रन्थों में उल्लिखित अन्त्य कर्मों को उपस्थित करने के पूर्व ऋग्वेद के पाँच सूक्तों[13] का अनुवाद इस प्रकार है। इन सूक्तों की ऋचाएँ (मन्त्र) बहुधा सभी सूत्रों द्वारा प्रयुक्त हुई हैं और उनका प्रयोग आज भी अन्त्येष्टि के समय होता है और उनमें अधिकांश वैदिक संहिताओं में भी पायी जाती हैं। भारतीय एवं पाश्चात्य टीकाकारों ने इन मन्त्रों की टीका एवं व्याख्या विभिन्न प्रकार से की है।[14]

टीका टिप्पणी

  1. मनु 2।16
  2. याज्ञवल्क्यस्मृति 1|10
  3. जातुकर्ण्य (संस्कारप्रकाश, पृष्ठ 135 एवं अन्त्यकर्मदीपक, पृष्ठ 1)
  4. निषेकादिश्मशानान्तो मन्त्रैर्यस्योदितो विधि:। तस्य शास्त्रेऽधिकारोऽस्मिन् ज्ञेयो नान्यस्य कस्यचित्।। मनु 2।16; ब्रह्मक्षत्रियविट्शूद्रा वर्णास्त्वाद्यास्त्रो द्विजा:। निषेकाद्या: श्मशानान्तास्तेषां वै मन्त्रत: क्रिया:।। याज्ञवल्क्यस्मृति (1।10); आधानपुंससीमन्तजातनामान्नचौलका:। मौञ्जी व्रतानि गोदानं समावर्तविवाहका:।। अर्न्त्य चैतानि कर्माणि प्रोच्यन्ते षोडशैव तु।। जातूकर्ण्य (संस्कारप्रकाश, पृष्ठ 135 एवं अन्त्यकर्मदीपक, पृष्ठ 1)।
  5. आश्वलायनगृह्यसूत्र 1|15|12, 1|16|6, 1|17|11 एवं मनु 2|66
  6. मनु 10।127 एवं याज्ञवल्क्यस्मृति 1।10
  7. बौधायन पितृमेधसूत्र 3|1|4
  8. जो श्रौत अग्निहोत्र अर्थात् वैदिक यज्ञ करता है
  9. जो केवल स्मार्त अग्नि को पूजता है, अर्थात् स्मृतियों में व्यवस्थित धार्मिक कृत्य करता है
  10. निर्णयसिन्धु पृष्ठ 569
  11. प्रतिशाखं भिन्नेप्यन्त्यकर्मणि साधारणं किंचिदुच्यते। निर्णयसिन्धु (पृष्ठ 569)।
  12. जैसा कि डॉक्टर कैलैण्ड ने किया है
  13. ऋग्वेद 10|14-18
  14. श्री बेर्ट्रम एस. पकिल (Bertrum S. Puckle) ने अपनी पुस्तक ‘फ़्यूनरल कस्टम्स’ (Funeral Customs : London 1926) में अन्त्य कर्मों आदि के विषय में बड़ी मनोरंजक बातें दी हैं। उन्होंने इंग्लैण्ड, फ़्राँस आदि यूरोपीय देशों, यहूदियों तथा विश्व के अन्य भागों के अन्त्य कर्मों के विषय में विस्तार के साथ वर्णन किया है। उनके द्वारा उपस्थापित वर्णन प्राचीन एवं आधुनिक भारतीय विश्वासों एवं आचारों से बहुत मेल खाते हैं, यथा-जहाँ व्यक्ति रोगग्रस्त पड़ा रहता है, वहाँ काक (काले कौआ) या काले पंख वाले पक्षी का उड़ते हुए बैठ जाना मृत्यु की सूचना है (पृष्ठ 17), कब्र में गाड़ने के पूर्व शव को स्नान कराना या उस पर लेप करना (पृष्ठ 34 एवं 36), मृत व्यक्ति के लिए रोने एवं शोक प्रकट करने के लिए पेशेवर स्त्रियों को भाड़े पर बुलाना (पृष्ठ 67), रात्रि में शव को न गाड़ना (पृष्ठ 77), सूतक के कारण क्षौरकर्म करना (पृष्ठ 91), मृत के लिए कब्र पर मांस एवं मद्य रखना (पृष्ठ 99-100), कब्रगाह में बपतिस्मा-रहित बच्चों, आत्महन्ताओं, पागलों एवं जातिच्युतों को न गाड़ने देना (पृष्ठ 143)।