श्रेणी:भक्ति साहित्य
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घ
च
- चंडीदास
- चंदन अगर भार बहु आए
- चंदु चवै बरु अनल
- चंद्रहास हरु मम परितापं
- चक्क चक्कि जिमि पुर नर नारी
- चक्रबाक बक खग समुदाई
- चढ़ि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा
- चढ़ि चढ़ि रथ बाहेर
- चढ़ि बर बाजि बार एक राजा
- चढ़ि बिमान सुनु सखा बिभीषन
- चतुर गँभीर राम महतारी
- चतुर सखीं लखि कहा बुझाई
- चर नाइ सिरु बिनती कीन्ही
- चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे
- चरन चाँपि कहि कहि मृदु बानी
- चरन नलिन उर धरि गृह आवा
- चरन पखारि कीन्हि अति पूजा
- चरन राम तीरथ चलि जाहीं
- चरन सरोज धूरि धरि सीसा
- चरनपीठ करुनानिधान के
- चरफराहिं मग चलहिं न घोरे
- चरम देह द्विज कै मैं पाई
- चरित राम के सगुन भवानी
- चरित सिंधु गिरिजा रमन
- चल न ब्रह्मकुल सन बरिआई
- चलत दसानन डोलति अवनी
- चलत न देखन पायउँ तोही
- चलत पयादें खात फल
- चलत बिमान कोलाहल होई
- चलत महाधुनि गर्जेसि भारी
- चलत मोहि चूड़ामनि दीन्हीं
- चलत रामु लखि अवध अनाथा
- चलत होहिं अति असुभ भयंकर
- चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
- चलन चहत बन जीवननाथू
- चलहु बेगि सुनि गुर बचन
- चला अकेल जान चढ़ि तहवाँ
- चला इंद्रजित अतुलित जोधा
- चला कटकु प्रभु आयसु पाई
- चलि ल्याइ सीतहि सखीं
- चली तमीचर अनी अपारा
- चली बरात निसान बजाई
- चली सुभग कबिता सरिता सो
- चली सुहावनि त्रिबिध बयारी
- चलीं संग लै सखीं सयानी
- चले जात मुनि दीन्हि देखाई
- चले निषाद जोहारि जोहारी
- चले निसाचर आयसु मागी
- चले निसाचर निकर पराई
- चले निसान बजाइ सुर
- चले पढ़त गावत गुन गाथा
- चले बान सपच्छ जनु उरगा
- चले मत्त गज जूथ घनेरे
- चले राम त्यागा बन सोऊ
- चले राम लछिमन मुनि संगा
- चले संग हिमवंतु तब
- चले सकल बन खोजत
- चले सखा कर सों कर जोरें
- चले समीर बेग हय हाँके
- चले साथ अस मंत्रु दृढ़ाई
- चले हरषि तजि नगर
- चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा
- चलेउ निसाचर कटकु अपारा
- चहत न भरत भूपतहि भोरें
- चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका
- चहुँ दिसि कंचन मंच बिसाला
- चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालीगन
- चहू चतुर कहुँ नाम अधारा
- चातक रटत तृषा अति ओही
- चाप समीप रामु जब आए
- चापत चरन लखनु उर लाएँ
- चामर चरम बसन बहु भाँती
- चारि सिंघासन सहज सुहाए
- चारिउ चरन धर्म जग माहीं
- चारिउ भाइ सुभायँ सुहाए
- चारु चरन नख लेखति धरनी
- चारु चित्रसाला गृह
- चारु चिबुक नासिका कपोला
- चारु बिचित्र पबित्र बिसेषी
- चाहिअ कीन्हि भरत पहुनाई
- चिक्करहिं दिग्गज डोल महि
- चितइ सबन्हि पर कीन्ही दाया
- चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ
- चितवत पंथ रहेउँ दिन राती
- चितवति चकित चहूँ दिसि सीता
- चितवनि चारु मार मनु हरनी
- चितवहिं चकित बिचित्र बिताना
- चित्रकूट के बिहग मृग
- चित्रकूट गिरि करहु निवासू
- चित्रकूट महिमा अमित
- चित्रकूट रघुनंदनु छाए
- चित्रकूट सुचि थल तीरथ बन
- चित्ररेखा
- चित्रावली -उसमान
- चिदानंद सुखधाम सिव
- चिदानंदमय देह तुम्हारी
- चिरजीवी मुनि ग्यान बिकल जनु
- चुपहिं रहे रघुनाथ सँकोची
- चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई
- चैतन्य चरितामृत
- चैतन्य चरितावली
- चैतन्य भागवत
- चैतन्य शतक
- चौकें चारु सुमित्राँ पूरी
- चौकें भाँति अनेक पुराईं
- चौदह भुवन एक पति होई
छ
- छंद सोरठा सुंदर दोहा
- छतज नयन उर बाहु बिसाला
- छत्र मुकुट तांटक तब
- छत्र मेघडंबर सिर धारी
- छत्रबंधु तैं बिप्र बोलाई
- छत्रि जाति रघुकुल जनमु
- छत्रिय तनु धरि समर सकाना
- छन महिं सबहि मिले भगवाना
- छन महुँ प्रभु के सायकन्हि
- छन सुख लागि जनम सत कोटी
- छबि आवन मोहनलाल की -रहीम
- छबिसमुद्र हरि रूप बिलोकी
- छमासील जे पर उपकारी
- छरस रुचिर बिंजन बहु जाती
- छरे छबीले छयल सब
- छल करि टारेउ तासु
- छलु तजि करहि समरु सिवद्रोही
- छाँह करहिं घन
- छाड़हु बचनु कि धीरजु धरहू
- छाड़े बिषम बिसिख उर लागे
- छिनु छिनु लखि सिय
- छीजहिं निसिचर दिनु अरु राती
- छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू
- छुअत सिला भइ नारि सुहाई
- छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई
- छुधा छीन बलहीन सुर
- छुधा न रही तुम्हहि तब काहू
- छूटइ मल कि मलहि के धोएँ
- छूटी त्रिबिधि ईषना गाढ़ी
- छेत्रु अगम गढ़ु गाढ़ सुहावा
- छेमकरी कह छेम बिसेषी
- छोरन ग्रंथि पाव जौं सोई
ज
- जंबुक निकर कटक्कट कट्टहिं
- जग कारन तारन भव
- जग जग भाजन चातक मीना
- जग पतिब्रता चारि बिधि अहहीं
- जग पावनि कीरति बिस्तरिहहिं
- जग बहु नर सर सरि सम भाई
- जग मंगल भल काजु बिचारा
- जग महुँ सखा निसाचर जेते
- जगत पिता रघुपतिहि बिचारी
- जगत प्रकास्य प्रकासक रामू
- जगत बिदित तुम्हारि प्रभुताई
- जगदंबा जहँ अवतरी
- जगदंबिका जानि भव भामा
- जगदातमा महेसु पुरारी
- जगु अनभल भल एकु गोसाईं
- जगु जान षन्मुख जन्मु
- जगु पेखन तुम्ह देखनिहारे
- जगु बिरंचि उपजावा जब तें
- जगु भय मगन गगन भइ बानी
- जगु भल कहिहि भाव सब काहू
- जग्य बिधंसि कुसल कपि
- जटा मुकुट सीसनि सुभग
- जटा मुकुट सुरसरित सिर
- जटाजूट सिर मुनिपट धारी
- जड़ चेतन गुन दोषमय
- जड़ चेतन जग जीव
- जड़ चेतन मग जीव घनेरे
- जथा अनेक बेष धरि
- जथा जोगु करि बिनय प्रनामा
- जथा दरिद्र बिबुधतरु पाई
- जथा पंख बिनु खग अति दीना
- जथा मत्त गज जूथ
- जथा सुअंजन अंजि
- जथाजोग सनमानि प्रभु
- जथाजोग सेनापति कीन्हे
- जदपि कबित रस एकउ नाहीं
- जदपि कही कपि अति हित बानी
- जदपि कीन्ह एहिं दारुन पापा
- जदपि जोषिता नहिं अधिकारी
- जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें
- जदपि प्रथम दुख पावइ
- जदपि बिरज ब्यापक अबिनासी
- जदपि मित्र प्रभु पितु गुर गेहा
- जदपि सखा तव इच्छा नहीं
- जद्यपि अवध सदैव सुहावनि
- जद्यपि गृहँ सेवक सेवकिनी
- जद्यपि जग दारुन दुख नाना
- जद्यपि जनमु कुमातु