सांची-सांची कह रह्यो -शिवदीन राम जोशी
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सांची-सांची कह रह्यो- शिवदीन राम जोशी
काशी में संन्यासी होय वासी हों उजार हुँ को,
निरगुन उपासी होय जोग साध रहे बन में ।
तापते चौरासी धुनी केते वह सिद्ध मुनि,
शिवदीन कहे सुनी यही भस्म लगा तन में ।
एते सब प्रपंच केते बने हुए परमहंस,
ग्यान के बिना से जांको ध्यान जाय धन में ।
जब लग है स्वांग सकल सांचा से राच्यो नहिं,
कैसे हो उमंग राम बस्यो नांहीं मन में ।
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शीर्षक उदाहरण 3
शीर्षक उदाहरण 4
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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