कवितावली (पद्य)-अरण्य काण्ड

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Dr, ashok shukla (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:50, 14 सितम्बर 2012 का अवतरण
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
कवितावली (अरण्य काण्ड)

अरण्य काण्ड

 

मारीचानुधावन

 
(मारीचानुधावन)

पंचबटीं बर पर्नकुटी तर बैठे हैं रामु सुभायँ सुहाए।

सोहै प्रिया, प्रिय बंधु लसै ‘तलसी’ सब अंग घने छबि छाए।।
 
देखि मृगा मृगनैनी कहे प्रिय बेन, ते प्रीतम के मन भाए।

हेमकुरंगके संग सरासनु सायकु लै रघुनायकु धाए।।

(इति अरण्य काण्ड )

इन्हें भी देखें: कवितावली -तुलसीदास इन्हें भी देखें: कवितावली (पद्य)

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख