जैन उपनीति संस्कार

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  • इस उपनीति संस्कार को उपनयन एवं यज्ञोपवीत भी कहते हैं।
  • इसका विधान है कि यह संस्कार ब्राह्मणों को गर्भ से आठवें वर्ष में, क्षत्रियों को ग्यारहवें वर्ष में और वैश्यों को बारहवें वर्ष में करना चाहिए।
  • यदि किसी कारण नियत समय तक उपनयन विधान न हो सका तो ब्राह्मणों की सोलह वर्ष तक, क्षत्रियों को बाईस वर्ष तक और वैश्यों को चौबीस वर्ष तक यज्ञोपवीत संस्कार कर लेना उचित हे।
  • पूजा-प्रतिष्ठा, जप, हवन आदि करने के लिए इस संस्कार को आवश्यक बतलाया है।