हंटरवाली (फ़िल्म)

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:30, 9 दिसम्बर 2012 का अवतरण (''''हंटरवाली''' भारतीय सिनेमा में सन 1935 में बनी फ़िल्म...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

हंटरवाली भारतीय सिनेमा में सन 1935 में बनी फ़िल्म है। इस फ़िल्म के लेखक और निर्माता जमशेद बोमन वाडिया थे। फ़िल्म के निर्देशक और पटकथा लेखक होमी वाडिया थे, जो जमशेद बोमन जी के ही छोटे भाई थे। इस फ़िल्म के संवाद जोसफ़ डेविड ने लिखे थे। 'हंटरवाली' में नाडिया, शारीफ़ा और गुलशन ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई थीं। इस फ़िल्म में संगीतकार जयदेव ने भी कार्य किया था, हालाँकि वे इस फ़िल्म के संगीतकार नहीं थे। फ़िल्म का संगीत मास्टर मोहम्मद ने तैयार किया था।

निर्माण योजना

यह उल्लेखनीय है कि 20वीं शताब्दी के दौर में जब 'हंटरवाली' के निर्माण की योजना वाडिया बंधु बना रहे थे, उस समय दुनिया भर में दुनिया खुद को नए सिरे से ईजाद करने में लगी हुई थी। पूरे भारत में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ आज़ादी के आन्दोलन ने ज़ोर पकड़ लिया था। 26 जनवरी, 1930 को कांग्रेस ने 'पूर्ण स्वराज' सम्बंधी प्रस्ताव पारित कर दिया था। 'नमक सत्याग्रह' और 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के चलते अंग्रेज़ सरकार का दमन चक्र तेज़ी से घूम रहा था। क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च, 1931 को फाँसी हो गई थी। भारतीय जनता अब खुलकर बर्बर, अत्याचारी हुकूमत से मुक्ति के लिए पूरी तरह उठ खड़ी हुई थी। इसी दौर में एक ऐसी फ़िल्म आई, जिसमें अत्याचारी वज़ीर के ज़ुल्मों और उससे निपटने को उठ खड़ी हुई एक औरत की कहानी थी। इस कहानी और कहानी को प्राण देने वाली अभिनेत्री नाडिया के हैरत भरे कारनामों से हैरान लोगों ने जब होश सम्भाला, तो हॉल में तालियों की गूंज थी।[1]

कथावस्तु

फिल्म की कहानी एक ऐसे राजा की है जो अपने ही वज़ीर राणामल (सयानी ‘आतिश’) की कुटिल चालों का शिकार है. राजा कमज़ोर है और वज़ीर उसे एक मोहरे की तरह इस्तेमाल करता है और देश की प्रजा पर अत्याचार करता है. चारों ओर त्राहि-त्राहि मची है मगर कोई ऐसा नहीं है जो इस अन्याय और अत्याचार को चुनौती दे सके.

राजा की एक बेटी है माधुरी (नाडिया). शक्लो-सूरत से एकदम विदेशी बाला – सुनहरे बाल, एकदम खूब गोरा रंग, चेहरे से भारतीय नारी की स्थापित कोमल छवि की बजाय एक दृढ़ प्रतिज्ञता मगर पहनावा भारतीय साड़ी ही है. आदाबो-अन्दाज़ भी भारतीय हैं. यही माधुरी वज़ीर के बड़ते ज़ुल्मो-सितम के विरुद्ध एक दिन उठ खड़ी होती है. उसे इस बात का बखूबी अन्दाज़ है कि सेना सहित हुकूमत की हर चीज़ पर वज़ीर का कब्ज़ा है. वह ताकतवर है. ऐसे में उससे सीधे भिड़ना सम्भव नहीं. सो युक्ति से काम लेना होगा. और युक्ति बनती है – एक औरत दो रूप. पहला रूप है शहज़ादी जिसे दुनिया जानती है और दूसरा रूप है हंटरवाली का, जिसकी असलियत कोई नहीं जानता.

हंटरवाली बहादुर है. हाथ में हंटर है जो ग़रीबो पर अत्याचार करने वालों की खाल खींच लेता है. घोड़े को बिजली सा दौड़ाती है. ‘हे-ए-ए’ करती हुई ऊंची-ऊंची इमारतों पर एक जगह से दूसरी जगह कूद जाती है. सर पर टोपी, पांव में शिकारी जूते, आंखों पर नक़ाब और साड़ी की जगह चुस्त विदेशी निकर और शर्ट.

इस हंटरवाली की खूबी यह है कि जब-जब, जहां-जहां वज़ीर के लोग किसी ग़रीब, किसी मज़लूम पर ज़ुल्म करते हैं, अचानक प्रकट हो जाती है. दस-दस, बीस-बीस हथियारबंद सिपाहियों से अकेले दो-दो हाथ कर लेती है. उन्हें मार भगाती है और बदले में जय-जयकार पाती है.

वज़ीर राणामल हंटरवाली से परेशान है. वह उसे ढूंढकर सख्त सज़ा देना चाहता है मगर वह है कहां ? जैसे अचानक प्रकट होती है वैसे ही अचानक हवा में गुम हो जाती है. किसी को इसका कोई पता-ठिकाना नहीं मालूम.

राजकुमारी माधुरी, जिसके पिता को राणामल ने अगवा करवाया हुआ है, हंटरवाली के बारे में वज़ीर के सामने अनभिज्ञ बनी रहती है. वज़ीर को भी लम्बे समय तक माधुरी पर हंटरवाली होने का सन्देह ही नहीं होता, लेकिन एक दिन हर बात खुलकर सामने आती है. संघर्ष होता है. और जैसा कि फिल्मों में होता है, अछाई की बुराई पर जीत होती है. हंटरवाली की जय होती है और फिल्म ‘द एंड’.

फिल्म के इस ‘द एंड’ के बाद ‘हंटरवाली’ की कहानी खत्म नहीं बल्कि शुरू होती है. इस फिल्म के बाद नाडिया की दर्जनों फिल्में बनीं जिनके नाम ‘जंगल प्रिंसेस’, ‘सर्कस क़्वीन’ और ‘मिस फ्रंटियर मेल’ जैसे थे मगर उसकी पहचान हमेशा सिर्फ ‘हंटरवाली’ की ही रही. नाडिया को आज 75 साल बाद भी उसके असल नाम की बजाय ‘हंटरवाली’ के नाम से ही ज़्यादा याद किया जाता है.

इस नाम का जादू उस दौर में ऐसा चला कि जिन निर्माताओं को नाडिया बतौर हीरोइन न मिल सकी उन्होने ‘हंटरवाली’ के नाम की नकल कर ही काम चलाने की कोशिश की और कुछ लोग इसमें सफल भी हुए. अकेले 1938 में ही इस तरह की ‘चाबुकवाली’ , ‘साईकलवाली’, ‘घूंघटवाली’ नाम से फिल्में बन गईं. नाडिया के साथ भी बाद में ‘बम्बईवाली’ और ‘हंटरवाली की बेटी’ नाम की फिल्में भी बनीं हैं.

इस फिल्म में यूं तो और भी बहुत से कलाकार थे जिनमे बोमन श्राफ, जान कवास, शरीफा और मास्टर मोहम्मद भी थे लेकिन फिल्म पूरी तरह नाडिया के इर्द-गिर्द ही घूमती है. वज़ीर के हाथों सताए गए जसवंत की भूमिका में बोमन श्राफ एक जगह आकर नाडिया के साथ संघर्ष में शामिल हो जाते हैं फिर भी उनकी गिनती बाकी के साथ ही होती है.

आखिर ऐसी क्या बात थी कि वाडिया बंधुओं जैसे चतुर व्यापारियों ने अपने आपको इस क़दर नाडिया पर केन्द्रित कर लिया. इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है. नाडिया और वाडिया की कहानी.

7 जनवरी 1908 को आस्ट्रेलिया के शहर पर्थ में जन्मी नाडिया, जिसका असल नाम मेरी ईवांस था, अंग्रेज़ पिता और ग्रीक मां की संतान थी. पिता हर्बर्ट ब्रिटिश सेना में थे. 1912 में उनकी पदस्थापना बम्बई में हो गई. 4 साल की मेरी जब अपने परिवार के साथ यहां आई तो फिर तमाम उम्र को यहीं की होकर रह गए. अलबता वक़्त के साथ एक ज्योतिषी की सलाह से वह मेरी से नाडिया ज़रूर बन गई.

कोई 12-13 बरस की उम्र से बैले डांस सीखने का शौक लगा तो उस दौर की मशहूर मादाम अस्त्रोवा के पास जा पहुंची. उनसे बैले की शिक्षा लेकर देश भर में अलग-अलग समूहों के साथ काम किया और फिर ज़रको सरकस में शामिल हो गई.

इसी जगत में जहां नाडिया अपने करतब दिखाकर वाह-वाही लूट रही थी, वहीं हालीवुड की मार-धाड़ वाली डगलस फैयरबैंक्स की फिल्मों से प्रेरित होकर वाडिया बन्धु फिल्में बना रहे थ. 1934 में योग बना और दोनो साथ-साथ हो गए. बड़े भाई जमशेद के मन नाडिया को लेकर हालीवुड की एक्शन फिल्मों के ‘लेडी वर्शन’ की तमन्ना जाग गई. यह काम इतना आसान न था. नाडिया के पास स्टंट करने का साहस तो भरपूर था मगर बाकी सारी चीज़ें उसके विरुद्ध जाती थीं. एक तो उसका विदेशी रंग-रूप और दूसरे उसकी भाषा.

1935 में ‘हंटरवाली’ से पहले वाडिया ने नाडिया को अपनी दो फिल्मों ‘देश दीपक (1934) और फिर ‘नूर-ए-यमन’ (1934) में छोटी-छोटी भूमिकाए देकर दर्शकों की प्रतिक्रिया देखनी चाही. फिल्म ‘नूर-ए-यमन’ में, जिसमें नाडिया हीरो की दो बहनो में से एक थी, उसे एक संवाद दिया गया – ‘जब दिल न रहा काबू में तो मेरी खता क्या’. शूटिंग के दौरान अनेक कोशिशों के बावजूद उसकी ज़बान से निकलता – ‘जब दिल न रहा काबुल में तो मेरी खता क्या’. अब सवाल यह था कि ऐसी भाषा के साथ काम आगे कैसे बड़े.

देश की जनता ने इस समस्या का समाधान निकालकर वाडिया के सामने पेश कर दिया. दोनो फिल्मों में जब नाडिया के ऐसे दोषपूर्ण उच्चारण, सुनहरे बाल और विदेशी रंग-रूप पर भी तालियां ठोकीं तो वाडिया के लिए भी काम आसान हो गया. बाकी रही बात जोखिम भरे स्टंट करने की तो नाडिया ने सारे स्टंट खुद अंजाम देकर अपने अदम्य साहस का आबूत दे दिया.

इस साहस को इस देश की जनता ने दिल खोलकर सलाम किया. फिल्म तो सुपर हिट हो ही गई लेकिन साथ ही इस फिल्म ने सामाजिक रूप से भी काफी बड़ा असर डाला. यह वो समय था जब औरत को पर्दे की आड़ में छुपाकर रखा जा रहा था. उस समय दस-दस मर्दों पर घूंसे और चाबुक बरसाती और उन पर भारी पड़ती नाडिया. रेलगाड़ी की रफ्तार से तेज़ घोड़ा भगाती नाडिया. यहांवहां छतों पर कूदती-फांदती नाडिया.कसरत करती नाडिया उस दौर में नारी शक्ति की प्रतीक बन गई. उसकी बेखौफ अदाओं से उसका नाम ही पड़ गया – फीयरलेस नाडिया’.

इस दौर में आज़ादी के लिए संघर्षरत महिलाओं को कितना साहस प्रदान किया और कितने अहंकारी पुरुषों की आंखें खुलीं इसका कोई बयान इतिहास में नहीं है लेकिन न जाने क्यों दिल मानता है कि इतिहास की अलिखित सैकड़ों कथाओं में यह एक कथा भी ज़रूर है. आखिर ऐसा कैसे सम्भव है कि जिस समाज में फिल्मों से रहन-सहन, कपड़ा-लता, फैशन-वैशन सब प्रभावित होता हो इस साहसिक सन्देश कोई असर न करे. आखिर नाडिया और नाडिया की तर्ज़ पर बनी उस दौर की फिल्मों की अपार सफलता भी तो यही कहती है.

आखिर में एक बात और. नाडिया के साथ अधिकांश फिल्मों में उसका नायक जान कवास रहा मगर उसका नाम बस नाडिया के साथ ही याद किया जाता है. अकेले जान कवास का नाम महज़ कुछ फिल्मी दीवाने एक टीस के साथ ही लेते हैं.

25 साल बाद ‘हंटरवाली’ के सौ साल पूरे होंगे. तब तक शायद फिल्म की सी.डी.बाकी पुरानी फिल्मों की तरह ही बाज़ार में आ चुकी होगी. उस दिन शायद कोई लिखने वाला यह भी लिखेगा कि – ‘…कमाल है ! कोई सौ साल पहले एक औरत ने ऐसे अदभुत स्टंट कर दिखाए थे जिन्हें आज तक हमारे हीरोज़ दुहरा-दुहरा कर बड़े स्टार और सुपर-स्टार कहलाते हैं जबकि नाडिया की फिल्म को सिर्फ एक स्टंट फिल्म कहा जाता है’.


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हंटरवाली (1935) (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 दिसम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख