त्रिवेणी संगम

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त्रिवेणी और संगम वस्तुत: एक ही स्थान है जहां गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम होता है। यह दुर्लभ संगम विश्व प्रसिद्ध है। गंगा, यमुना के बाद भारतीय संस्कृति में सरस्वती को महत्व अधिक मिला है। हालांकि गोदावरी, नर्मदा, कावेरी तथा अन्य नदियों का भी सनातन मत में महत्त्व है। मगर वरिष्ठता के हिसाब से धर्म प्रेमी सज्जन सरस्वती को तीसरा स्थान देंगे। सरस्वती नदी के साथ अद्भुत ही बात है कि प्रत्यक्ष तौर पर सरस्वती नदी का पानी कम ही स्थानों पर देखने को मिलता है। इसका अस्तित्व अदृश्य रूप में बहता हुआ माना गया है।

ऐतिहासिक एवं पौराणिक मान्यताएँ

  • हिन्दुस्तान का संगम क्षेत्र हिन्दुओं के पवित्रतम तीर्थों में से एक है। पद्म पुराण में ऐसा माना गया है कि जो त्रिवेणी संगम पर नहाता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। जैसे ग्रहों में सूर्य तथा तारों में चंद्रमा है वैसे ही तीर्थों में संगम को सभी तीर्थों का अधिपति माना गया है तथा सप्तपुरियों को इसकी रानियां कहा गया है। 
  • त्रिवेणी संगम होने के कारण इसे यज्ञ वेदी भी कहा गया है। संगम क्षेत्र में धाराएं तीन भागों में अपना अस्तित्व बिखेरती हैं। ये संगम क्षेत्र के तीनों भाग लम्बे-चौड़े विस्तृत हैं और जहां-जहां तक इनका प्रभाव है वहां-वहां पर भक्तगणों को एक-एक रात्रि का शयन अवश्य करना चाहिए। 
  • संगम क्षेत्र में पांच कुंडों का अस्तित्व है। वे सभी पुण्यदायी व मोक्षदायी हैं। जो व्यक्ति संगम स्थान पर पाटल तथा कपिल वर्ण की स्वर्ण मंडित सींग वाली, रजत मंडित खुरों वाली, वस्त्रों से आच्छादित कंठ वाली गाय का दान करता है वह रुद्रलोक में पूजित होता है। यदि त्रिवेणी संगम पर तीर्थ करने वाला बैल पर आरुढ़ होकर गमन करता है तो वह नरक वास प्राप्त करता है। 
  • संगम क्षेत्र में जो व्यक्ति आर्षपद्धति के माध्यम से कन्या का दान करता है वह चिरकाल तक आनंद सुखों का उपभोग करता है। जो मनुष्य संगम क्षेत्र में पैर ऊपर तथा सिर नीचे करके तपस्या करता है वह दीर्घकाल तक स्वर्गलोक में पूजित होता है। त्रिवेणी संगम पर मरने वाला तुरंत मोक्ष को प्राप्त होता है।
  • आठवीं शताब्दी के मीमांसक कुमारिल भट्ट ने गुरु विद्रोह के लिए प्रायश्चित स्वरूप उक्त आस्था के कारण त्रिवेणी तट पर आकर अपने शरीर को जीवित जला दिया था। प्रत्येक तीर्थ में जप, दान, उपवास, पूजा-पाठ इत्यादि के मुख्य कर्म होते हैं और इसी तरह से तीर्थों का अपना-अपना कोई प्रधान कर्म भी होता है। त्रिवेणी तट पर आम दिनों का मुख्य कर्म मुंडन है। विधवा व सधवा दोनों प्रकार की स्त्रियां यहां मुंडन कार्य अथवा बालों के कुछ अंशों को कटवाती हैं। 
  • सधवा स्त्रियों के पति इसमें सहयोग भी करते हैं। त्रिवेणी तट पर चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन ने कई बार सम्मेलन किए थे। इतिहास में ऐसा वर्णित है। गौतम बुद्ध ने भी यहां आकर धर्म प्रचार किया था। सम्राट अशोक ने भी यहां कुछ न कुछ सत्कर्म अवश्य ही किया था तभी तो उनका स्तम्भ किले के पास स्थित है।
  • भगवान राम वनवास के दौरान यहां पधारे थे और वे उस समय न केवल भारद्वाज आश्रम में ठहरे थे बल्कि उन्होंने इसी परिक्षेत्र में निषादराज के यहां रात्रि विश्राम किया था।
  • अक्षय वट संगम के निकट सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यह बरगद का बहुत पुराना पेड़ है जो प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होता। पर्याप्त सुरक्षा के बीच संगम के निकट किले में अक्षय वट की एक डाल के दर्शन कराए जाते हैं। पूरा पेड़ कभी नहीं दिखाया जाता। सप्ताह में दो दिन, अक्षय वट के दर्शन के लिए द्वार खोले जाते हैं। हालांकि यह बहुत पुराना सूखा वृक्ष है जो कितने हजार वर्ष पुराना है यह कहा नहीं जा सकता। मगर ऐसा माना जाता है कि प्रलय काल में भगवान विष्णु इसके एक पत्ते पर बाल मुकंद रूप में अपना अंगूठा चूसते हुए कमलवत शयन करते हैं।
  • प्रत्येक बारहवें वर्ष पूर्ण कुंभ का तथा प्रत्येक छठे वर्ष अर्द्ध कुंभ मेलों का त्रिवेणी संगम पर आयोजन होता है। त्रिवेणी संगम पर महापर्व कुंभ के आयोजन में भक्तों की संख्या एक करोड़ से भी पार चली जाती है। सद्भाव, सौहार्द, सामाजिक समरसता का प्रतीक त्रिवेणी पथ का महापर्व कुंभ मेला छुआछूत, जातीयता, साम्प्रदायिकता से परे और सहिष्णुता की जीती जागती मिसाल है।[1]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इलाहाबाद कुंभ त्रिवेणी संगम पर महापर्व (हिंदी) पंजाब केसरी। अभिगमन तिथि: 12 जनवरी, 2013। 

बाहरी कड़ियाँ

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