अभिमान (फ़िल्म)
अभिमान (फ़िल्म)
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निर्देशक | ऋषिकेश मुखर्जी |
निर्माता | पवन कुमार, सुशीला कामत |
लेखक | राजेंदर सिंह बेदी, ऋषिकेश मुख़र्जी |
कलाकार | अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, असरानी, ए. के. हंगल और बिन्दू आदि। |
संगीत | सचिन देव बर्मन |
गायक | किशोर कुमार, लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी |
प्रसिद्ध गीत | 'तेरी बिन्दिया रे', 'मीत न मिला रे मन का', 'तेरे मेरे मिलन की ये रैना' |
प्रदर्शन तिथि | 27 जुलाई, 1973 |
भाषा | हिन्दी |
अन्य जानकारी | इस फ़िल्म में जया बच्चन को उनके श्रेष्ठ और दमदार अभिनय के लिए प्रतिष्ठित 'फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार' मिला था। |
अभिमान फ़िल्म सन 1973 में बनी हुई फ़िल्म है। यह फ़िल्म ऋषिकेश मुखर्जी की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में से एक है। फ़िल्म में मुख्य भूमिका अमिताभ बच्चन, जया बच्चन और असरानी ने निभाई थी। इस फ़िल्म का संगीत प्रसिद्ध संगीतकार सचिन देव बर्मन ने तैयार किया था। 'अभिमान' फ़िल्म के सभी गीतों ने भारतीय दर्शकों पर अपनी गहरी छाप अंकित की थी। फ़िल्म के गीत आज भी लोगों की जुबान पर आते रहते हैं।
पटकथा
राजू भर्तन की कहानी पर आधारित राजिंदर बेदी, नवेंदु घोष एवं ब्रजेश चटर्जी द्वारा लिखी इस पटकथा पर ऋषिकेश मुखर्जी के कुशल निर्देशन में बनी यह फ़िल्म अत्यधिक लोकप्रिय हुई थी। पुरुष का अहम, उसका प्रेम, परिवार, भावनाओं से भी ऊपर होता है। पत्नी-पति से किसी भी क्षेत्र में प्रगति कर रही हो, यह बात पुरुष का अहम स्वीकार नहीं कर पाता। जीवन की इसी वास्तविकता को केंद्र बिन्दु बनाकर ऋषिकेश मुखर्जी ने इस संवेदनशील फ़िल्म का निर्देशन किया था।[1]
संगीत
मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे गीत, सचिन देव बर्मन के सिद्धहस्त संगीत से सजे तथा किशोर कुमार, लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाये गए सुमधुर गीतों ने फ़िल्म की लोकप्रियता में चार चाँद लगा दिए थे।
कथानक
फ़िल्म की कहानी शुरू होती है एक स्टेज से, जहाँ एक उभरता हुआ गायक 'सुबीर कुमार' (अमिताभ बच्चन) गाना गाता है तो लोगों में एक अलग उमंग सी छा जाती है। उसकी तमाम महिलाएँ प्रशंसक हैं जो उस पर मर मिटने को तैयार है। लेकिन वह तो अपने मीत का इंतजार कर रहा है। 'चंदू' (असरानी) सुबीर का मैनेजर होने के साथ-साथ एक अच्छा दोस्त भी है जो उसे सही सलाह देकर उसके करियर ग्राफ़ को आगे बढ़ाने में मदद करता है। सुबीर की एक और दोस्त है 'चित्रा' (बिंदू) जो उसे मन ही मन प्रेम करती है। संगीत का ज्ञान तो सुबीर को जरूर है, लेकिन कहीं न कहीं उसके अंदर ये अभिमान भी है कि वह एक बहुत अच्छा गायक है और उसके गायन स्तर तक पहुँचने वाला और कोई नहीं है।[1]
एक दिन सुबीर के पास उसकी मुँह बोली मौसी (दुर्गा खोटे) का तार आता है, जिसे पढ़ते ही वह तुरंत गाँव पहुँचता है। यहाँ उसकी मुलाकात 'उमा' (जया बच्चन) से होती है। उमा के संगीत को सुनकर सुबीर उससे प्रेम करने लगता है और उसके पिता (ए. के. हंगल) और अपनी मौसी की रज़ामंदी होने के बाद सुबीर उमा से विवाह के बंधन में बंध जाता है। दोनों शहर वापस आते हैं और अपनी शादी की पार्टी के दौरान सुबीर उमा से गाने के लिए कहता है। वहीं पार्टी में मशहूर शास्त्रीय संगीत के ज्ञाता ब्रजेशवर लाल (डेविड) को उमा की प्रतिभा पर काफी गर्व महसूस होता है और वे उसे बधाई देते हैं। इसके बाद सुबीर उमा से कहता है कि वह और उमा दोनों साथ में गाना गाया करेंगें। बस यहीं से दोनों का गाना गाने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
सुबीर खुद ही उमा को उनकी इच्छा के खिलाफ व्यवसायिक गायन में उतारता है और बाद में उमा द्वारा लगातार सफलता पाने के कारण मन ही मन कुंठा से भर जाता है। शुरू में वह अपनी कुंठा और उमा से जलन को दबाकर रखता हैं और चुपचाप उमा को सफलता की सीढ़ी चढ़ते हुए देखता रहता है। स्त्री सूक्ष्म मनोभावों को भी समझ लेती है और उमा सुबीर के अंदर चल रही उथल-पुथल को भांप कर कम से कम दो बार अपने द्वारा व्यवसायिक रुप से गाना न गाने और कहीं भी लोगों के सामने अपनी गायन प्रतिभा का प्रदर्शन न करने की मंशा का ऐलान कर देती है। परंतु उसका ऐसा करना भी सुबीर को अपनी हार लगता है। सुबीर को लगता है कि अगर यह लोगों पर जाहिर हो गया कि वह अपनी ही पत्नी की सफलता से जलन रखता है तो उसकी छवि पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। इसी भय के कारण वह जोर देकर कहता है कि उमा को गाना गाना बंद नहीं करना चाहिए। उन लोगों का क्या होगा जिन्होंने उमा के साथ करार किए हुए हैं? सुबीर की बात मानकर उमा वे सारे गाने गाती है, जिनके लिए उसने हाँ कही थी। लेकिन उसका मन उसे कचोटता रहता है कि उसके पति का नजरिया उसके प्रति बदल गया है और एक दिन दोनों में इस बात को लेकर कहासुनी हो जाती है। उमा घर छोड़कर अपने गाँव वापस आती है।[1]
गाँव वापस आकर उसे पता चलता है कि वह माँ बनने वाली है। इस बात का पता चलते ही वह चंदू को तार लिखती है कि वह मामा बनने वाला है और ये बात वह शर्म की वजह से सुबीर से नहीं कह पाती। इसलिए वह चंदू से सुबीर तक यह बात पहुँचाने की बात करती है और कहती है कि सुबीर उसे यहाँ से ले जाएँ। लेकिन सुबीर का अंहकार तो आसमान को छू रहा था। वह चंदू की बात नहीं मानता। इससे उमा को भारी ठेस पहुँचती है और उसका गर्भपात हो जाता है। उमा बुरी तरह से टूट जाती है, उसके सपने बिखर कर चूर-चूर हो जाते हैं। बाद में सुबीर को अपनी गलती का एहसास होता है। ब्रजेशवर लाल सुबीर को समझाते हैं और कहते हैं कि जिस संगीत की वजह से तुम अलग हुए हो, अब वही संगीत तुम्हें करीब लाएगा। वे एक गीत का प्रोग्राम रखते हैं जिसमें सुबीर और उमा दोनों अपने सुखद भविष्य का गीत "तेरे मेरे मिलन की ये रैना" आँसुओं में डूब कर गाते हैं और कहानी का अंत हो जाता है।[1]
अभिनय
फ़िल्म में जया बच्चन का अभिनय तो संवेदनशील भोली लड़की, समर्पित व विरहग्रस्त गृहणी के रूप में प्रशंसनीय है ही, अमिताभ बच्चन ने भी अपने किरदार को जीवंत बनाया है। असरानी का हास्य, दुर्गा खोटे, ए. के. हंगल, डेविड सभी ने अपनी भूमिका से न्याय किया है। बिन्दु ने अपनी पूर्व भूमिकाओं से अलग भूमिका निभायी है। मनोहर कामत, ललिता कुमारी व मास्टर राजू की संक्षिप्त भूमिकायें यथायोग्य हैं।
फ़िल्म के गीत
गीत | गायक | समय |
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मीत ना मिला रे मन का | किशोर कुमार | 4:56 |
नदिया किनारे | लता मंगेशकर | 4:05 |
तेरी बिंदिया रे | लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी | 4:32 |
लूटे कोई मन का नगर | लता मंगेशकर, मनहर उधास | 3:04 |
अब तो है तुमसे हर ख़ुशी अपनी | लता मंगेशकर | 4:25 |
पिया बिना पिया बिना | लता मंगेशकर | 4:12 |
तेरे मेरे मिलन की ये रैना | किशोर कुमार, लता मंगेशकर | 5:49 |
हल्के-फुल्के हास्य से युक्त यह फ़िल्म ऋषिकेश मुखर्जी की सर्वकालिक फ़िल्म कही जा सकती है।
मुख्य कलाकार
- अमिताभ बच्चन - सुबीर
- जया बच्चन - उमा
- असरानी - चंदू
- चित्रा - बिंदू
- ए. के. हंगल - सदानन्द
- दुर्गा खोटे - मौसी
रोचक तथ्य
- 'अभिमान' फ़िल्म में जया बच्चन को अपने श्रेष्ठ अभिनय के लिए प्रतिष्ठित 'फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार' मिला था।
- अभिनेत्री बिन्दू ने भी अपनी पूर्व छवि से अलग हटकर अपनी भूमिका कुशलता से निभाई, जिस कारण अन्य भूमिकाओं में इस फ़िल्म के बाद आयीं।
- अमिताभ बच्चन व जया बच्चन इस फ़िल्म के दौरान ही पति-पत्नी के रिश्ते में बंधे थे।
- जया बच्चन ने इस फ़िल्म के बाद बहुत लम्बे समय तक किसी और फ़िल्म में काम नहीं किया।[1]
प्रेरणा
फ़िल्म 'अभिमान' मानव रिश्तों में आदर्श की भावना जगाकर और रिश्तों को समझ-बूझ और सभ्यता से निभाने की सीख देकर अपना एक गहरा असर दर्शकों पर छोड़ती है। फ़िल्म यह भी प्रेरणा दे जाती है कि पति-पत्नी जैसे रिश्ते से व्यक्तिगत अहंकार को जहाँ तक हो सके दूर ही रखना चाहिये, अन्यथा जीवन में बड़ी हानि उठानी पड़ सकती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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