नवरेह
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नवरेह शब्द संस्कृत शब्द "नववर्ष" से बना है। कश्मीर में नवरेह नवचंद्र वर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह दिन चैत्र नवरात्र का प्रथम दिन है तथा चैत्रमास के शुक्लपक्ष का भी प्रथम दिवस है। ज्यातिष शास्त्र के अनुसार भी यह वर्ष का प्रथम दिन माना जाता है। नवरेह उत्साह व रंगों का त्यौहार है। कश्मीरी पंडित इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं।
त्यौहार से एक दिन पूर्व कश्मीरी पंडित पवित्र विचर नाग के झरने की यात्रा करते हैं तथा इसमें पवित्र स्नानकर मलिनता का त्याग करते हैं। इसके पश्चात् प्रसाद ग्रहण किया जाता है। प्रसाद को 'व्ये' कहते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार की जड़ी—बूटियाँ डाली जाती हैं तथा घर में पिसे चावल की पिट्ठी भी सम्मिलित की जाती है। कश्मीर नवरेह की सुबह लोग सर्वप्रथम चावल से भरे पात्र को देखते हैं। यह धन, उर्वरता तथा समृद्धशाली भविष्य का प्रतीक है।
नेचिपत्री
- भविष्य फल कथन
पंडित परिवार का कुलगुरु, नया कश्मीरी पंचांग; जिसे नेची[1] पत्री कहते हैं, अपने परिवारजनों को प्रदान करता है। इस पंचांग में कई महत्वपूर्व सूचनाएँ होती हैं। जैसे शुभ तिथि व समय, अन्य पर्वों की तिथि तथा अन्य धार्मिक दिन। एक अलंकृत पत्रावली, 'क्रीच प्रच' जिसमें देवी शारिका की मूर्ति बनी होती है, भी प्रदान की जाती है।
थाली सज्जा और पूजाकर्म
सायंकाल में गृह स्त्री एक बड़ी थाली तैयार करती है। भरी हुई थाली में चावल या धान व्यवस्थित रूप से रखे जाते हैं। सबसे ऊपर होते हैं नवपंचांग, क्रीचप्रच, सूखे व ताजा पुष्प, शीशा, स्याही, व्ये, जड़ी–बूटियाँ, अंकुरित घास, दही, कलम, स्याही की दवात, पके चावल, रोटी, नमक, स्वर्ण व चाँदी के सिक़्क़े। एक अन्य थाली से इस थाली को ढंककर अगली प्रातः तक रखा जाता है। सभी परिवारीजन नववर्ष के दिन नए वस्त्र धारण करते हैं।
नववर्ष की एक दिन पूर्व मूल तैयारी के बाद, अगले दिन[2] परिवार का लड़का या लड़की तैयार की गई थाली का ढक्कन हटाते हैं। फिर इस थाली को घर के वरिष्ठतम व्यक्ति के पास तथा बाद में सभी सदस्यों के पास ले जाया जाता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य थाली में रखी वस्तुओं की झलक लेता है। थाली में रखी वस्तुएँ भोजन, धन व ज्ञान की द्योतक हैं। थाली दिखाने के लिए भेंट स्वरूप व्यक्ति को परिवार के सदस्यों से धन मिलता है।
नवरेह के अनुष्ठान
परिवार का प्रत्येक सदस्य थाली में से कुछ अखरोट उठाता है तथा नारियल को नदी में प्रवाहित करता है। स्नान के पश्चात् सभी लोग नए वस्त्र पहनते हैं तथा महोत्सव के अवसर का नया पवित्र धागा धारण करते हैं। हिन्दू पंडित फिर मन्दिर जाते हैं।
घर का मुखिया देवी शारिका को पीले चावल की भेंट प्रदान करता है। शेष चावल फिर सभी सदस्यों में प्रसाद के रूप में बाँट दिया जाता है।
स्वादिष्ट भोजन और शुभकामनाएँ
इस दिन सभी घरों में स्वादिष्ट कश्मीरी व्यंजन बनाए जाते हैं। सम्बन्धियों व मित्रों को भोजन पर आमंत्रित किया जाता है। सभी लोग एक–दूसरे को नवरेह की मंगल कामना कहकर शुभकामनाएँ देते हैं। परिवार के छोटे सदस्यों को भेंट प्रदान की जाती हैं। नवविवाहिता स्त्रियाँ अपने माता–पिता के घर पर आमंत्रित की जाती हैं। ये स्त्रियाँ अपने साथ शुभ की इच्छा से दही व मिष्ठान ले जाती हैं। सायंकाल में लोग सैर–सपाटे के लिए जाते हैं।
नवदुर्गा पूजा का पर्व है-नवरेह
कश्मीर में नवदुर्गा पूजन भी इसी दिन से आरम्भ हो जाता है। नवरात्र का नवां दिन रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। इन दिनों में हज़ारों लोग वैष्णोदेवी मन्दिर तथा अन्य मन्दिरों की यात्रा करते हैं। अनेक लोग इन नौ दिनों में व्रत–उपवास करते हैं और जो, जई का रोपण कर दुर्गा व दश महाविद्या की आराधना करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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