हुमायूँ बादशाह का अहंकार दूर करना
हुमायूँ बादशाह का अहंकार दूर करना गुरु अंगद देव की साखियों में से अंतिम साखी है।
साखी
कन्नौज के युद्ध में हारकर दिल्ली का बादशाह हुमायूँ गुरु घर की महिमा सुनकर खडूर साहिब में सम्राट का वर प्राप्त करने के लिए आया। गुरु जी अपनी समाधि की अवस्था में मग्न थे। पांच दस मिनट खड़े रहने पर भी जब उसकी और ध्यान नहीं दिया गया तो इसे उसने अपना निरादर समझा क्यूंकि उसे अपने बादशाह होने का अहंकार आ गया। अपना आदर ना होते देख उसने गुरु जी को मारने के इरादे से अपनी म्यान में से तलवार निकाली। जैसे ही वह गुरु जी पर वार करने के लिए तैयार हुआ तो गुरु जी इस और संकेत देखकर कहा बादशाह शेरशाह के सामने जंग में जहाँ यह तलवार तुमने चलानी थी वहाँ तो चलाई नहीं और अब फकीरों पर चलने लगे हो। इन शब्दों का हमायूँ पर गहरा असर हुआ। उसने चरण पकडकर गुरु जी से क्षमा माँगी।
आगे से गुरु जी कहने लगे कि अगर तुम अपनी म्यान से तलवार ना निकालते तो तुम्हें तुमारा राज्य शीघ्र प्राप्त होता, परन्तु तुमने गुरु घर का निरादर करके अपने राज्य से भी हाथ धो लिया। ऐसे तुमने अहंकार में आकर किया। अब तुम्हें 12 साल बाद ही बादशाही मिलेगी। ऐसा वचन सुनकर हुमायूँ गुरु जी को नमन करके लाहौर की ओर रवाना हो गया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हुमायूँ बादशाह का अहंकार दूर करना (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) आध्यात्मिक जगत। अभिगमन तिथि: 23 मार्च, 2013।
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