चलता है, तो चल आँधी-सा; बढता जा आगे तू! जलना है, तो जल फूसों-सा; जीवन में करता धू-धू! क्षण भर ही आँधी रहती है; आग फूस की भी क्षण भर! किन्तु उसी क्षण में हो जाता जीवन-मय भू से अम्बर! मलयानिल-सा मंद-मंद मृदु चलना भी क्या चलना है? ओदी लकड़ी-सा तिल-तिल कर जलना भी क्या जलना है?