कला और बूढ़ा चाँद -सुमित्रानन्दन पंत

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कला और बूढ़ा चाँद -सुमित्रानन्दन पंत
कला और बूढ़ा चाँद का आवरण पृष्ठ
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कवि सुमित्रानंदन पंत
मूल शीर्षक कला और बूढ़ा चाँद
प्रकाशक राजकमल प्रकाशन
देश भारत
पृष्ठ: 208
भाषा हिन्दी
विषय कविता
विशेष इस कृति के लिए सुमित्रानन्दन पंत को वर्ष 1960 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' द्वारा सम्मानित किया गया था।

कला और बूढ़ा चाँद छायावादी युग के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत का प्रसिद्ध कविता संग्रह है। पंत जी की कविताओं में प्रकृति और कला के सौंदर्य को प्रमुखता से जगह मिली है। इस कृति के लिए पंत जी को वर्ष 1960 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' द्वारा सम्मानित किया गया था। इस कविता संग्रह का प्रकाशन 'राजकमल प्रकाशन' द्वारा किया गया था।

बीसवीं शताब्दी के भारतीय अंतस और मानस को समझने के लिए महाकवि पंत के वृहद रचनाकाश को जानना बहुत आवश्यक है। 'वीणा', 'ग्रंथि', 'पल्लव', 'गुंजन', 'ज्योत्स्ना', 'ग्राम्या', 'युगांत', 'उत्तरा', 'अतिमा', 'चिदंबरा' ('भारतीय ज्ञानपीठ' से सम्मानित)</ref> 'कला और बूढ़ा चाँद' [1] तथा 'लोकायतन' जैसे प्रबंध-काव्य के रचयिता सुमित्रानन्दन पंत प्रगीत प्रतिभा के पुरोगामी सर्जक तथा कला-विदग्ध कवि के रूप में व्यापक पाठक वर्ग में समादृत रहे हैं, यद्यपि उन्होंने नाटक, एकांकी, रेडियो-रूपक, उपन्यास, कहानी आदि विधाओं में भी रचनाएँ प्रस्तुत की हैं।

पंत जी की समस्त रचनाएँ भारतीय जीवन की समृद्ध सांस्कृतिक चेतना से गहन साक्षात्कार कराती हैं। उन्होंने खड़ी बोली की प्रकृति और उसके पुरुषार्थ, शक्ति और सामर्थ्य की पहचान का अभिमान ही नहीं चलाया, उसे अभिनंदित भी किया। उनके प्रकृति वर्णन में हृदयस्पर्शी तन्मयता, उर्मिल लयात्मकता और प्रकृत प्रसन्नता का विपुल भाव है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ('साहित्य अकादमी' द्वारा पुरस्कृत)

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