मंगलनाथ मंदिर, उज्जैन
मंगलनाथ मंदिर मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी कहे जाने वाले उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है। उज्जैन को पुराणों में मंगल की जननी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए 'मंगलनाथ मंदिर' में पूजा-पाठ करवाने आते हैं। मान्यता है कि मंगल ग्रह की शांति के लिए दुनिया में 'मंगलनाथ मंदिर' से बढ़कर कोई स्थान नहीं है। कर्क रेखा पर स्थित इस मंदिर को देश का नाभि स्थल माना जाता है। मंगल को भगवान शिव और पृथ्वी का पुत्र कहा कहा गया है।। इस कारण इस मंदिर में मंगल की उपासना शिव रूप में भी की जाती है।
निर्माण
वैसे तो भारत में मंगल देवता के कई मंदिर हैं, लेकिन में उज्जैन इनका जन्म-स्थान होने के कारण यहाँ की पूजा को खास महत्व दिया जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। उज्जैन शहर को भगवान महाकाल की नगरी कहा जाता है, इसलिए यहाँ मंगलनाथ भगवान की शिव रूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है। हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है।[1]
पौराणिक उल्लेख
- 'स्कन्दपुराण' के 'अंवतिकाखंड' में इस मंदिर के जन्म से जुड़ी कथा है। कथा के अनुसार अंधाकासुर नामक दैत्य ने भगवान शिव से वरदाना पाया था कि उसके रक्त की बूँदों से नित नए दैत्य जन्म लेते रहेंगे। इन दैत्यों के अत्याचार से त्रस्त जनता ने शिव की अराधना की। तब शिव शंभु और दैत्य अंधाकासुर के बीच घनघोर युद्ध हुआ। ताकतवर दैत्य से लड़ते हुए शिवजी के पसीने की बूँदें धरती पर गिरीं, जिससे धरती दो भागों में फट गई और मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई। शिवजी के वारों से घायल दैत्य का सारा लहू इस नए ग्रह में मिल गया, जिससे मंगल ग्रह की भूमि लाल रंग की हो गई। दैत्य का विनाश हुआ और शिव ने इस नए ग्रह को पृथ्वी से अलग कर ब्रह्मांड में फेंक दिया। इस दंतकथा के कारण जिन लोगों की पत्रिका में मंगल भारी होता है, वह उसे शांत करवाने के लिए इस मंदिर में दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। इस मंदिर में मंगल को शिव का ही स्वरूप दिया गया है।
- उज्जैन में अंकपात के निकट क्षिप्रा नदी के तट के टीले पर मंगलनाथ का मंदिर है। 'मत्स्यपुराण' में लिखा है कि- "अवन्र्त्यांच कुजाजातों मगधेच हिमाशुन:" तथा संकल्प में भी ‘अवन्तिदेशोतभव भो भोम’ इत्यादि अनेक प्रमाणों से मंगल की जन्म भूमि उज्जैन मानी जाती है,[2] यहाँ मंगल की उत्पत्ति हुई है। अत: सर्वदा मंगल ही होता रहता है। संभवत: कभी मंगल ग्रह की खोज यहाँ से हुई होगी, ऐसी मान्यता है। यह बड़ा रम्य स्थल है।
स्वरूप
मंगल भगवान का स्थान नवग्रहों में आता है। यह 'अंगारका' और 'खुज' नाम से भी जाना जाता है। वैदिक पौराणिक कथाओं के अनुसार मंगल ग्रह शक्ति, वीरता और साहस के परिचायक है तथा धर्म के रक्षक माने जाते हैं। मंगल देव को चार हाथ वाले त्रिशूल और गदा धारण किए दर्शाया गया है। मंगल देवता की पूजा से मंगल ग्रह से शांति प्राप्त होती है तथा कर्ज से मुक्ति और धन लाभ प्राप्त होता है। मंगल के रत्न रूप में मूंगा धारण किया जाता है। मंगल दक्षिण दिशा के संरक्षक माने जाते हैं।[3]
यहाँ मंगलवार को दिनभर पूजन होता रहता है, यात्रा भी होती हैं। वैशाख मास में यात्रा भी लगती है। मंगलवार की अमावस्या को जनता यहाँ स्नान-दान कर दर्शन करती है। इसी के निकट इंदौर के सरदार किबे साहब का एक बड़ा विशाल एवं सुंदर ‘गंगा-घाट’ है। यहाँ की भात-पूजा भी बड़ा महत्व रखती हैं। स स्थान से शिप्रा का निर्मल जल और प्रकृति के मोहक दृश्य का ऐसा सुंदर-मादक चित्र नेत्र के सामने उपस्थित होता है कि एक क्षण के लिए अशांत चित्त भी शांत और प्रफुल्लित हो जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मंगलनाथ मंदिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 अक्टूबर, 2013।
- ↑ ‘यत्रहि मंगल जनिभू: सावती मंगल स्थिते र्हेतु:’।
- ↑ मंगलनाथ मंदिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 अक्टूबर, 2013।
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