कू कू करती काली कोयल -दिनेश सिंह

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Dinesh Singh (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:43, 6 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('<!-- सबसे पहले इस पन्ने को संजोएँ (सेव करें) जिससे आपको य...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

कू कू करती काली कोयल -दिनेश सिंह

चित्र:कू कू करती काली कोयल -दिनेश सिंह
कू कू करती काली कोयल -दिनेश सिंह लिंक पर क्लिक करके चित्र अपलोड करें
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

कू कू करती काली कोयल
ड़ाल पे बैठी गाती कोयल
मीठा मीठा राग सुनाती
जीने का वो डंग सिखाती

जो कुछ बोलो सोंच के बोलो
जो कुछ बोलो मीठा बोलो
मीठी वाणी सब सुनते है
कागा देख उड़ा देते है

काली कितनी वो उपर से
कितना म्रदु मन अंदर से
कितना गोरा उपर तन हो
किस काम जो काला मन हो

चाहे कितना भेद हो मत का
मत करना तुम भेद मन का
मत का भेद तो फिर मिल जावे
मन का भेद नहीं मिट पावे

टीका टिप्पणी और संदर्भ


संबंधित लेख