कू कू करती काली कोयल ड़ाल पे बैठी गाती कोयल मीठा मीठा राग सुनाती जीने का वो डंग सिखाती जो कुछ बोलो सोंच के बोलो जो कुछ बोलो मीठा बोलो मीठी वाणी सब सुनते है कागा देख उड़ा देते है काली कितनी वो उपर से कितना म्रदु मन अंदर से कितना गोरा उपर तन हो किस काम जो काला मन हो चाहे कितना भेद हो मत का मत करना तुम भेद मन का मत का भेद तो फिर मिल जावे मन का भेद नहीं मिट पावे