तृतीय पंचवर्षीय योजना
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
- भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) तक लागू की गयी।
- प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि को प्राथमिकता दी गयी।
- द्वितीय पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य 'तीव्र औद्योगिकीकरण' था।
- तृतीय पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1961 से 1966 तक रहा।
- तृतीय योजना ने अपना लक्ष्य आत्मनिर्भर एवं स्वयं - स्फूर्ति अर्थव्यवस्था की स्थापना करना रखा।
- इस योजना ने कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की, परंतु इसके साथ-साथ इसने बुनियादी उद्योगों के विकास पर भी पर्याप्त बल दिया जो कि तीव्र आर्थिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक था।
- वर्ष 1965 में भारत - पाकिस्तान युद्ध से पैदा हुई स्थिति, दो साल लगातार भीषण सूखा पड़ने, मुद्रा का अवमूल्यन होने, कीमतों में हुई वृद्धि तथा योजना उद्देश्यों के लिए संसाधनों में कमी होने के कारण 'चौथी योजना' को अंतिम रूप देने में देरी हुई। इसलिए इसका स्थान पर चौथी योजना के प्रारूप को ध्यान में रखते हुए 1966 से 1969 तक तीन वार्षिक योजनाएँ बनायी गयीं। इस अवधि को 'योजना अवकाश' (Plan Holiday) कहा गया है।
- तृतीय योजना काल में व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में सुधरने के स्थान पर निरंतर विपक्ष में बढ़्ता ही गया। इसका कारण आयातों की मात्रा में निरंतर वृद्धि होना था। योजना के आरम्भ म्में आयात 1093 करोड़ रुपये के थे, जो योजना के अंत तक बढ़ कर 1409 करोड़ रुपये तक पहुँच गये।
- वार्षिक योजनाओं में विदेशी व्यापार 1966 से 1967, 1967 से 1968 तथा 1968 से 1969 तक तृतीय योजना के उपरांत चतुर्थ योजना को लागू नहीं किया गया बल्कि वार्षिक योजनाओं का सहारा लिया गया। इस प्रकार 'तीन वार्षिक योजनाएँ' क्रमश: 1966-67, 1967-68 तथा 1968-69 में लागू की गयीं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आधुनिक भारत का आर्थिक इतिहास, पृष्ठ संख्या 654 (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 14 अगस्त, 2011।