कंक्रीट के पुल
कंक्रीट के पुल बनाने के लिए कंक्रीट बहुत उपयुक्त वस्तु है, क्योंकि जब यह सुघट्यावस्था में रहती है, तब यह कहीं भी भरी जा सकती है और किसी भी आकृति में ढाली जा सकती है। इसलिए पुलों के बनाने में इसका बहुत उपयोग किया जाता है। कंक्रीट के पुलों में कंक्रीट के कारण कई गुण होते हैं। जैसे चटपट निर्माण और तदनंतर मरम्मत तथा देखभाल की कम आवश्यकता। भारत में भी अब अधिकतर पुल प्रबलित कंक्रीट या पूर्व प्रतिबलित कंक्रीट के ही बनाए जाते हैं।
प्राचीन काल से उपयोग
प्राचीनतम काल से पुल बनाने के लिए सादी कंक्रीट का उपयोग किया जाता रहा है। अनिवार्य रूप से ऐसा पुल कंक्रीट की मेहराब की आकृति का होता था। भारत में 19वीं शताब्दी में पहाड़ी सड़कों पर कई पुल चूने की कंक्रीट से बनाए गए थे। कभी-कभी सादी कंक्रीट की मेहराबें पहले से ढाली गई कंक्रीट की ईटों से बनाई जाती हैं। छोटी पुलियों के लिए स्थल पर ही ढाली कंक्रीट की मेहराबें पूर्णतया उपुयक्त होती हैं। स्थल पर ढाली गई कंक्रीट के पुल का एक उत्तम उदाहरण ग्रेट ब्रिटेन में 1928 ई. में बना पुल है। इसमें दो पार्श्व वाले दर 50-50 फुट के हैं और बीच वाला दर 110 फुट का। संसार में सादी कंक्रीट का सबसे लंबा दर संयुक्त राज्य अमरीका में क्लीवलैंड में रॉकी नदी पर बने पुल का मध्य दर है। इसकी लंबाई 128 फुट है।[1]
प्रबलित कंक्रीट
अब अधिकतर इस्पात की छड़ों से प्रबलित[2] कंक्रीट का ही उपयोग होता है और पत्थर तथा सादी कंक्रीट की मेहराबों की अपेक्षा ये बहुत बड़े-बड़े दरों के बन सकती हैं। कुछ महत्तम लंबाई वाले, प्रबलित कंक्रीट की मेहराब वाले पुल निम्नलिखित हैं-
- सैंडों पुल - स्वीडन 866 फुट दर (पाट)
- एस्ला पुल - स्पेन 645 फुट दर (पाट)
- प्लाउ गेस्टल पुल - फ्रांस 612 फुट दर (पाट)
- ट्रानेबर्ग पुल - स्वीडेन 594 फुट दर (पाट)
40 फुट दर के पुलों के लिए सादी कंक्रीट की मेहराब वाले पुलों की मानक अभिकल्पनाएँ[3] 'इंडियन रोड्स कांग्रेस' ने बनाई। 4 से लेकर 30 फुट तक की दरों के लिए चूने की कंक्रीट और 440 फुट तक की दर के लिए सीमेंट कंक्रीट उपयुक्त बताई गई है।
गुण
कंक्रीट के पुलों में कंक्रीट के कारण कई एक गुण होते हैं। जैसे-
- चटपट निर्माण और तदनंतर मरम्मत तथा देखभाल की कम आवश्यकता।
- इन पुलों में न आग लगने का डर रहता है और न पानी से मोरचा खाने का।
- इस्पात के पुलों को समय-समय पर रँगते रहना नितांत आवश्यक है, परंतु कंक्रीट के पुलों को रँगना नहीं पड़ता।
- इस्पात के पुलों का वायु और जल के प्रभाव से मोरचा खाकर, क्षय होता रहता है, परंतु प्रबलित कंक्रीट के पुल समय पाकर अधिकाधिक पुष्ट होते जाते हैं।
- यदि अच्छी अभिकल्पना की जाए तो ये सुंदर लगते हैं और इन पर वास्तुकला के नियमों के अनुसार अलंकरण किया जा सकता है।
- कंक्रीट के पुलों पर घड़घड़ाहट नहीं होती, इस्पात के पुलों के बनाने में सब काम बड़ी कुशलता से करना पड़ता है और कारीगरों के काम की देखभाल बराबर करनी पड़ती है। दूसरा दोष यह है कि पुल के लिए ढोला[4]बाँधने में बहुत खर्च हो जाता है।[1]
19वीं शताब्दी के अंत में प्रबलित सीमेंट कंक्रीट का प्रयोग होने लगा और तब से इसमें तीव्र गति से प्रगति हुई है। प्रबलित कंक्रीट से पुल बनाने की रीतियों का विकास हुआ है, जिनमें से किसी एक का चुनाव स्थल की परिस्थितियों पर निर्भर है। मोटे हिसाब से सीमेंट के पुल 13 प्रमुख प्रकार के होते हैं। इनमें से अधिकांश कई विधियों से बन सकते हैं, जो पुल की अनुप्रस्थ[5] आकृति पर निर्भर करती हैं।
पाट के प्रकार
किसी विशेष स्थल के लिए संभव है, पूर्वोंक्त 13 प्रकारों में से कई एक उपयुक्त पाए जाएँ। परंतु अंत में महत्तम कार्यक्षमता, मितव्ययता और पुष्टता वाले पुल का चुनाव अत्यंत जटिल समस्या है। उचित चुनाव के लिए मोटे हिसाब से गणना करके अनुमानों की तुलना करनी पड़ती है। पूर्वकथित 13 प्रकार और वे पाट जिनके लिए वे उपयुक्त हैं, निम्नोक्त हैं-
- एक पाट (दर) का, धरन और पट्टवाला [6] अथवा केवल पट्टवाला 20-40 फुट
- कई दरों का, धरन और पट्टवाला अथवा केवल पट्टवाला 20-40 फुट
- एक दर का कैंचीदार चौखटे पट्टवाला [7] अथवा धरन और पट्टवाला[8] 15-30 फुट
- कई दरों का, कैंचीदार चौखटे पट्ट और पसलीवाला[9] अथवा पट्टवाला 20-40 फुट
- आवश्यकतानुसार परिवर्तिनीय जड़ता घूर्ण का गर्डर[10] 50-120 फुट
- दोहरे बाहुधरन[11] और एक अनबद्ध[12] मध्य दरवाला[13] 60-100 फुट
- दोहरे बाहुधरनवाला[14] 100-120 फुट
- आबद्ध लंबी मेहराबवाला[15] एक या अधिक दरों का[16] 30-100 फुट
- खुले कंधोंवाली पसलीदार मेहराब[17] वाला 100-200 फुट
- तीन-कब्जी लंबी मेहराबवाला, एक या अधिक दरों का[18] 50-100 फुट
- दो-कब्जी लंबी मेहराबवाला, एक या अधिक का[19] 50-100 फुट
- प्रत्यंचा[20] रूपी गर्डर वाला 100-150 फुट
- पसलीदार मेहराब और आंशिक लटके फर्शवाला[21] 180-250 फुट
परिस्थितियाँ
जैसा ऊपर बताया गया है, किसी विशेष स्थान पर कई प्रकार की रचनाएँ स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार उपयुक्त होंगी। अंतिम निर्णय दो कारण समूहों पर निर्भर है। पहले समूह के कारणों को प्राकृतिक कहा जा सकता है। ये स्थान की परिस्थितियों पर पूर्णत: निर्भर हैं, जैसे नींव, खदान या अन्य हलचल, पुल के ऊपर अपेक्षित खाली जगह[22] और पुल की लंबाई। कारणों का दूसरा समूह वह है जिसमें कृत्रिम कारण हों, यथा, पुल पर महत्तम भार कितना पड़ेगा। उसकी चौड़ाई कितनी हो, उसकी रूपरेखा कैसी हो और उसकी आकृति कैसी हो, और इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है उसकी लागत। साधारणत: अनबद्ध, आश्रित संरचना सबसे महँगी पड़ती है, यद्यपि इसी की अभिकल्पना सरलतम है। जहाँ अचल नींव मिल सकती है, वहाँ अनम्य ढाँचे वाला पुल सबसे सस्ता पड़ता है। पूर्वप्रतिबलित[23] कंक्रीट सुलभ हो जाने के कारण इंजीनियरों को एक नई शक्ति प्राप्त हुई है, जिससे कंक्रीट के पुलों की अभिकल्पना में विस्तृत अनुपातों के पुल का निर्माण संभव हो गया है। साधारण प्रबलित कंक्रीट के पुलों की अपेक्षा पूर्वप्रतिबलित कंक्रीट के पुल 10-15 प्रतिशत तक सस्ते पड़ते हैं। इनसे सामग्री की बचत होती है, क्योंकि बड़े पाट (दर) बनाए जा सकते हैं और उनको अपेक्षाकृत हलका रखा जा सकता है।[1]
इन्हें भी देखें: कंक्रीट एवं कंक्रीट की सड़क
उत्तम संरचना की आवश्यकताएँ
संतोषजनक संरचना के लिए तीन आवश्यकताएँ हैं, जिनकी पूर्ति होनी चाहिए। प्रथम यह कि योग्य इंजीनियर पहले पूर्ण और ब्योरेवार संरचनात्मक आलेखन तैयार करे। फिर, यह कि कंक्रीट बनाने के लिए सामग्री को सावधानी से चुना जाए और उसकी पूरी जाँच की जाए कि वह आवश्यक गुणों के अनुसार ही है, और अंत में यह कि कारीगरों के काम की उचित देखरेख हो। उचित देखरेख और अनुपातों के नियंत्रण का महत्व इसी से प्रत्यक्ष है कि किसी भी विशेष अनुपात की कंक्रीट की पुष्टता और टिकाऊपन सामग्री को भली प्रकार मिलाने, उचित ढंग से ढालने तथा ठीक तरह से कूटने और फिर उसे उचित रीति से नियमानुसार गीला रखने पर ही निर्भर है। यह आवश्यक है कि ढोला ठीक प्रकार से और पूर्णतया दृढ़ बनाया जाए तथा इस्पात की छड़ों को ठीक से मोड़ा जाए एवं कंक्रीट ढालने से पूर्व उचित स्थान में रखकर बाँध दिया जाए। इस्पात पृष्ठ के बहुत निकट न रखा जाए, अन्यथा उसमें मोरचा लगना आंरभ हो जाएगा और तब संरचना कुछ दिनों में उखड़ने लगेगी। संरचना में कहाँ-कहाँ संधियाँ डाली जाएँ, इसका निर्णय इंजीनियर ही करे। इसे ठेकेदार पर नहीं छोड़ना चाहिए।
आजकल निर्माण अधिकतर मशीनों से होता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि यंत्र पुल के स्थान पर लाए जाएँ। किन यंत्रों की आवश्यकता पड़ेगी, यह पुल के प्रकार पर निर्भर है। मुख्य यंत्र कंक्रीट मिश्रक[24], बोझ उठाने वाले क्रेन[25] कंपनोत्पादक[26], सामग्री नापने के साँचे, पंप, संपीडक[27], छड़ मोड़ने की मशीनें इत्यादि हैं।
सौंदर्य
पुल आकल्पन में सौंदर्य दृष्टि को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिलने के कारण, आकल्पन का ध्यान अब रेखा, आकृति, अनुपात तथा सामग्री की गठन पर रखना आवश्यक हो गया है। पुल का प्रकार और वास्तुकला के दृष्टिकोण से उसका औचित्य केवल इंजीनियर का ही काम नहीं है। इन दिनों डिज़ाइन को अंतिम रूप देते समय इंजीनियर के साथ कोई वास्तुकलाविद् भी रख दिया जाता है। पुल की रेखाएँ, अनुपात और संतुलन सुंदर हों तथा सामग्री का रंग और गठन सुरुचिपूर्ण होना चाहिए। पुल का अलंकरण और रूप इसके पदार्थों के अनुरूप और पास पड़ोस के अनुकूल होना चाहिए। इन बातों में कई विधियों से विभिन्नता लाई जा सकती है, उदाहरणत: पृष्ठ को न्यूनाधिक चिकना या खुरदरा रखकर, आकृतियों को स्थूलकाय अथवा कृषांगी रखकर, रंगों को बदलकर, पलस्तर करके अथवा तैल रंगों से उन्हें ऊपर से रँगकर।[1]
भारत में कंक्रीट पुल
भारत में अब अधिकतर पुल प्रबलित कंक्रीट या पूर्वप्रतिबलित कंक्रीट के ही बनाए जाते हैं। कुछ मुख्य नए बने पुल ये हैं-
- मद्रास में कोलरून पुल : लंबाई 2,100 फुट, 14 दरें, प्रत्येक 150 फुट की। असंतुलित बाहुधरन, पूर्वप्रतिबलित, पूर्वरचित धरन। लागत 34.50 लाख रुपए।
- उत्तर प्रदेश में रामगंगा पुल : लंबाई 2,210 फुट, पूर्वप्रतिबलित कंक्रीट, 14 दरें, प्रत्येक 150 फुट की। लागत 60 लाख रुपए।
- उत्तर प्रदेश में गढ़मुक्तेश्वर में गंगा पर पुल : 2,308 फुट लंबा, 13 दरें, प्रत्येक 177 फुट 10 इंच, पूर्वप्रतिबलित कंक्रीट। लागत 79 लाख रुपए।
- बिहार में उत्तरी कोयल पुल : प्रबलित कंक्रीट, 27 दरें, बीच की दर 56 फुट 5 इंच की और दो अंतिम दरें प्रत्येक 46 फुट 1ह इंच की, लंबाई 1,615 फुट। लागत 18.5 लाख रुपए।
- केरल में कुप्पम पुल : 525 फुट लंबाई, धनुषाकार धरन के ढंग की 5 दरें, प्रत्येक 100 फुट। लागत 10.60 लाख रुपए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 कंक्रीट के पुल (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 20 फ़रवरी, 2014।
- ↑ रिइन्फ़ोर्स्ड, reinforced
- ↑ डिज़ाइन
- ↑ सेंटरिंग, centering)
- ↑ ट्रांसवर्स
- ↑ बीम ऐंड स्लैब टाइप, (beam and slab type
- ↑ र्टल फ्रेम स्लैब टाइप, portal frame slab type
- ↑ स्लैब ऐंड बीम टाइप
- ↑ पोर्टल फ्रेम स्लैब ऐंड रिब टाइप, portal frame slab and rib type
- ↑ गर्डर विद वेरिइंग मोमेंट ऑव इनर्शिया, girder with varying moment of inertia
- ↑ कैंटिलीवर, cantilever
- ↑ फ्ऱी, free
- ↑ डबल कैंटिलीवर टाइप विद फ्ऱी सेंटर स्पैन, ड्डouble cantilever type with free center span
- ↑ डबल कैंटिलीवर टाइप, double cantilever type
- ↑ फिक्स्ड बैरल आर्च टाइप, fixed barrel arch type
- ↑ सिंगल ऑर मल्टिपल स्पैन, single or multiple span
- ↑ ओपन स्पैंड्रल रिब्ड आर्च, open spandrel ribbed arch
- ↑ थ्री हिंज्ड बैरल आर्च टाइप, सिंगल ऑर मल्टीपल स्पैन, three hinged barrel arch type, single or multiple span
- ↑ टू हिंज्ड बैरल टाइप, सिंगल ऑर मल्टिपल स्पैन, two hinged harrel arch type, single or multiple span
- ↑ बोस्ट्रिंग, bowstring
- ↑ आर्च रिब्ड टाइप विद पार्शियली हंग डेकिंग, arch ribbed type with partially hung decking
- ↑ अर्थात् उसपर या उसके नीचे कितनी ऊँची गाड़ियाँ जाएँगी
- ↑ प्रीस्ट्रेस्ड, prestressed
- ↑ मिक्सर्स, mixers
- ↑ डेरिक क्रेन, Derrick crane
- ↑ बाइब्रेटर, vibrator
- ↑ कंप्रेसर, compressor