सिन्धु नदी

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सिन्धु नदी
सिन्धु नदी, लेह
सिन्धु नदी, लेह
अन्य नाम इंडस नदी
देश भारत, पाकिस्तान, चीन
प्रमुख नगर लेह, सुक्कुर, हैदराबाद
लम्बाई 3,200 किलोमीटर
सहायक नदियाँ क़ाबुल नदी, स्वात, झेलम, चिनाब, रावी और सतलुज
पौराणिक उल्लेख ऋग्वेद, रामायण, महाभारत में सिंधु नदी का उल्लेख हुआ है।
गूगल मानचित्र गूगल मानचित्र
अन्य जानकारी यह नदी तिब्बत और कश्मीर के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर अरब सागर में मिलती है।
सिन्धु एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सिन्धु (बहुविकल्पी)

सिन्धु नदी संसार की प्रमुख नदियों में से एक है। तिब्बत के मानसरोवर के निकट सिन-का-बाब नामक जलधारा सिन्धु नदी का उद्गम स्थल है। इस नदी की लंबाई प्रायः 3,200 किलोमीटर है। यहाँ से यह नदी तिब्बत और कश्मीर के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर अरब सागर में मिलती है।

सिन्धु का शाब्दिक अर्थ

संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं -

  1. सिन्धु नदी का नाम, जो लद्दाख और पाकिस्तान से बहती है
  2. कोई भी नदी या जलराशि।

हिन्द आर्य भाषाओं की 'स' ध्वनि ईरानी भाषाओं की 'ह' ध्वनि में लगभग हमेशा बदल जाती है (ऐसा भाषाविदों का मानना है) । इसलिये सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) में जाकर हप्त हिन्दू में परिवर्तित हो गया।[1]

इतिहास

वैदिक संस्कृति में सिंधु नदी तथा मानसरोवर का उल्लेख अत्यंत श्रद्धा के साथ किया जाता रहा है। तिब्बत, भारत और पाकिस्तान से होकर बहने वाली इस नदी में कई अन्य नदियां आकर मिलती हैं , जिनमें क़ाबुल नदी, स्वात, झेलम, चिनाब, रावी और सतलुज मुख्य हैं। हिमालय की दुर्गम कंदराओं से गुजरती हुई, कश्मीर और गिलगिट से होती यह पाकिस्तान में प्रवेश करती है और मैदानी इलाकों में बहती हुई 1610 किमी का रास्ता तय करती हुई कराची के दक्षिण में अरब सागर से मिलती है। इस नदी ने पूर्व में अपना रास्ता कई बार बदला है। 1245 ई. तक यह मुल्तान के पश्चिमी इलाके में बहती थी। मु्ल्तान में चिनाब के किनारे पर श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब की याद में एक सूर्य मंदिर बना है। इसका वर्णन महाभारत में भी है। इस मंदिर का स्वरूप कोणार्क के सूर्य मंदिर से मिलता जुलता है। सिंधु भारत से बहती हुई पाकिस्तान में 120 किमी लंबी सीमा तय करती हुई सुलेमान के निकट पाक-सीमा में प्रवेश करती है। भारत में भी इसके पानी से काफ़ी सिंचाई होती है ।

साहित्यिक उल्लेख

  • सिंधु नदी हिमालय की पश्चिमी श्रेणियों से निकल कर कराची के निकट समुद्र में गिरती है। इस नदी की महिमा ऋग्वेद में अनेक स्थानों पर वर्णित है-

'त्वंसिधो कुभया गोमतीं क्रुमुमेहत्न्वा सरथं याभिरीयसे'[2]

  • ऋग्वेद[3] में सिंधु में अन्य नदियों के मिलने की समानता बछड़े से मिलने के लिए आतुर गायों से की गई है-

'अभित्वा सिंधो शिशुभिन्नमातरों वाश्रा अर्षन्ति पयसेव धेनव:'

सिंधु के नाद को आकाश तक पहुंचता हुआ कहा गया है। जिस प्रकार मेघों से पृथ्वी पर घोर निनाद के साथ वर्षा होती है उसी प्रकार सिंधु दहाड़ते हुए वृषभ की तरह अपने चमकदार जल को उछालती हुई आगे बढ़ती चली जाती है-

'दिवि स्वनो यततेभूग्यो पर्यनन्तं शुष्ममुदियर्तिभानुना।

अभ्रादिव प्रस्तनयन्ति वृष्टय: सिंधुर्यदेति वृषभो न रोरूवत्'[4]

सिन्धु नदी के विभिन्न दृश्य
सिन्धु नदी
सिन्धु नदी
सिन्धु नदी
सिन्धु नदी का मानचित्र का मानचित्र
सिन्धु नदी का मानचित्र का मानचित्र
सिन्धु नदी
सिन्धु नदी, लेह
सिन्धु नदी, लेह
सिन्धु नदी, लेह
सिन्धु नदी (1888)
सिन्धु नदी (1888)
सिन्धु नदी (1888)
  • सिंधु शब्द से प्राचीन फ़ारसी का हिन्दू शब्द बना है क्योंकि यह नदी भारत की पश्चिमी सीमा पर बहती थी और इस सीमा के उस पार से आने वाली जातियों के लिए सिंधु नदी को पार करने का अर्थ भारत में प्रवेश करना था। यूनानियों ने इसी आधार पर सिंध को इंडस और भारत को इंडिया नाम दिया था। अवेस्ता में हिन्दू शब्द भारतवर्ष के लिए ही प्रयुक्त हुआ है [5]
  • ऋग्वेद में सप्त सिंघव का उल्लेख है जिसे अवस्ता में हप्तहिन्दू कहा गया है। यह सिंधु तथा उसकी पंजाब की छ: अन्य सहायक नदियों (वितस्ता, असिक्नी, परुष्णी, विपाशा, शुतुद्रि, तथा सरस्वती) का संयुक्त नाम है। सप्तसिंधु नाम रोमन सम्राट् आगस्टस के समकालीन रोमनों को भी ज्ञात था जैसा कि महाकवि वर्जिल के[6] उल्लेख से स्पष्ट है-

Ceu septum surgens, sedates omnibus altus per tacitum-Ganges.

  • सिंधु की पश्चिम की ओर की सहायक नदियों-कुभा सुवास्तु, कुमु और गोमती का उल्लेख भी ऋग्वेद में है। सिंधु नदी की महानता के कारण उत्तर वैदिक काल में समुद्र का नाम भी सिंधु ही पड़ गया था। आज भी सिंधु नदी के प्रदेश के निवासी इस नदी को 'सिंध का समुद्र' कहते हैं। [7]
  • वाल्मीकि रामायण[8] में सिंधु को महा नदी की संज्ञा दी गई है,

'सुचक्षुशचैव सीता च, सिंधुश्चैव महानदी, तिस्त्रश्चैता दिशं जग्मु: प्रतीचीं सु दिशं शुभा:'

इस प्रसंग में सिंधु की सुचक्षु (=वंक्षु) तथा सीता (=तरिम) के साथ गंगा की पश्चिमी धारा माना गया है। महाभारत[9] में सिंधु का, गंगा और सरस्वती के साथ उल्लेख है,

'नदी पिवन्ति विपुलां गंगा सिंधु सरस्वतीम् गोदावरी नर्मदां च बाहुदां च महानदीम्'

सिंधु नदी के तटवर्ती ग्रामणीयों को नकुल ने अपनी पश्चिमी दिशा की दिग्विजय यात्रा में जीता था।

'गणानुत्सवसंकेतान् व्यजयत् पुरुषर्षभ: संधुकूलाश्रिता ये च ग्रामणीया महाबला:'[10] ग्रामणीय या ग्रामणीय लोग वर्तमान यूसुफजाइयों आदि कबीलों के पूर्वपुरुष थे। उत्सेधजीवी ग्रामीणीयों (उत्सेधजीवी=लुटेरा¬) को पूगग्रामणीय भी कहा जाता था। ये कबीले अपने सरदारों के नाम से ही अभिहित किए जाते थे, जैसा कि पाणिनि के उल्लेख से स्पष्ट है 'स एषां ग्रामणी:'। श्रीमद्भागवत[11] में शायद सिंधु को सप्तवती कहा गया है, क्योंकि सिंधु सात नदियों की संयुक्त धारा के रूप में समुद्र में गिरती है।

महारौली स्थित लौहस्तंभ पर चंद्र के अभिलेख में सिंधु के सप्तमुखीं का उल्लेख है। रघुवंश[12] में कालिदास ने रघु की दिग्विजय के प्रसंग में सिंधु तीर पर सेना के घोड़ों के विश्राम करते समय भूमि पर लोटने के कारण अनेक कंधों से संलग्न केसरलवों के विकीर्ण हो जाने का मनोहर वर्णन किया है,

'विनीताध्वश्रमास्तस्य सिंधुतीरविचेष्टनै: दुधुवुर्वाजिन: स्कंधांल्लग्नकुंकुमकेसरान्'

इस वर्णन से यह सूचित होता है कि कालिदास के समय में केसर सिंधु नदी का दक्षिणी समुद्र तट है।

  • जैनग्रंथ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में सिंधु नदी को चुल्लहिमवान् के एक विशाल सरोवर के पश्चिम की ओर से निस्सृत माना है और गंगा को पूर्व की ओर से।

समाचार

बुधवार, 24 अगस्त, 2011

चीन ने खोजा ब्रह्मपुत्र-सिंधु का उद्गम स्थल

चीन के वैज्ञानिकों ने ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी के उद्गम स्थल का पता लगा लिया है। ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने समेत तिब्बत में कई जल परियोजनाओं को अंजाम देने के लिए तैयार बैठे चीनी वैज्ञानिकों ने इन नदियों के मार्ग की लंबाई का व्यापक उपग्रह अध्ययन पूरा करने की बात भी कही है। चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया है। ब्रह्मपुत्र के मार्ग का उपग्रह से ली गई तस्वीरों का विश्लेषण कर वैज्ञानिकों ने उसके पूरे मार्ग का अध्ययन किया। इसी तरह भारत-पाकिस्तान से बहने वाली सिंधु और म्यांमार के रास्ते बहने वाली सालवीन और इर्रावडी के बहाव के बारे में भी पूरा विवरण जुटाया गया। सीएएस की इकाई इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशंस के शोधकर्ता लियू शाओचुआंग ने शिन्हुआ संवाद समिति को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इससे पहले इन चार नदियों के उद्गम के संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं थी। इतना ही नहीं इनकी लंबाई और क्षेत्र को लेकर भी भ्रम बना हुआ था। इस कार्य में प्राकृतिक परिस्थितियों से जुड़ी कई बाधाएं होने और सर्वेक्षण की तकनीक सीमित होने के कारण भ्रम की स्थिति बनी हुई थी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अवेस्ता: वेन्दीदाद, फ़र्गर्द 1.18
  2. ऋग्वेद10,75,6
  3. ऋग्0 10,75,4
  4. ऋग्0 10,75,3
  5. मेकडानेल्ड-ए हिस्ट्री आव संस्कृत लिटरेचर, पृष्ठ 141
  6. Aeneid, 9,30
  7. मेकडानेल्ड, पृ0 143
  8. वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड 43,133
  9. महाभारत भीष्म 9,14
  10. महाभारत सभा पर्व 32,9
  11. श्रीमद् भागवत 5,19,18
  12. रघुवंश 4,67

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