हेमू

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हेमू / हेम चन्द्र विक्रमादित्य

  • हेमू के पिता राय पूरनमल राजस्थान के अलवर ज़िले से आकर रेवाड़ी के कुतुबपुर में बस गए थे। हेमू तब छोटे ही थे। बड़े होने पर वे भी पिता के व्यवसाय में जुट गए। वे शेरशाह सूरी की सेना को शोरा सप्लाई करते थे।
  • शेरशाह उनके व्यक्तित्व से काफ़ी प्रभावित था।
  • उसने हेमू को अपनी सेना में उच्च पद दे दिया।
  • इसके बाद हेमू ने 22 युद्ध जीते और दिल्ली सल्तनत का सम्राट बना।
  • युद्ध में हेमू को बैरम खां की रणनीति पर छल से मारा गया।
  • हेमचंद्र शेरशाह का योग्य दीवान, कोषाध्यक्ष और सेनानायक था। शेरशाह की सफलता में उसकी प्रबंध कुशलता और वीरता का हाथ रहा था। आर्थिक सूझ−बूझ में उसके समान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था।
  • शेरशाह के बाद उसका पुत्र इस्लामशाह अपने शासन का भार हेमचंद्र पर डाल निश्चिंत हो गया था।
  • इस्लामशाह के बाद आदिलशाह बादशाह हुआ तब राज्य के पठान सरदारों में आपसी संघर्ष होने लगा था।
  • हेमचंद्र आदिलशाह का वजीर और प्रधान सेनापति था। वह बिहार में अव्यवस्था दूर करने में लगा हुआ था, तभी हुमायूँ ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया; किंतु 7 महीने बाद ही उसकी मृत्यु हो गई थी।
  • बैरम ख़ाँ की सहायता से अकबर ने शेरशाह के वंशजों को नियंत्रित करने का बीड़ा उठाया। उसके हाथ से दिल्ली और आगरा भी निकल गए। बैरम ख़ाँ पंजाब में उलझा हुआ था कि अफग़ानों की एक शाखा का मन्त्री हेमू (हेमचंद्र) ने हमला कर दिया।
  • हेमू राजवंशी न था लेकिन वह इतना प्रबल हो गया था कि उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की थी। हेमू ने शीघ्र ही ग्वालियर - आगरा पर अधिकार कर लिया। मुग़ल सेनापति उसे रोकने में असमर्थ रहे। शीघ्र ही उसका दिल्ली पर अधिकार हो गया। पश्चिम से बैरम ख़ाँ के नेतृत्व में अकबर ने उसे रोका।
  • पानीपत के प्रसिद्ध मैदान में हेमू की विशाल सेना के सामने मुग़ल सेना तुच्छ थी। स्वयं हेमू 'हवाई' नामक एक विशाल हाथी पर सवार हो सैन्य संचालन कर रहा था।
  • मुग़ल सेना में दहशत थी। बैरम ख़ाँ ने अकबर को सुरक्षित स्थान पर छोड़ा और वह स्वयं सेना लेकर आगे बढ़ा। हेमू ने अपने 1500 हाथियों को मध्य भाग में बढ़ाया। इससे मुग़ल सेना में गड़बड़ी फैल गई और ऐसा जान पड़ा कि हेमू की सेना मुग़लों को रौंद देगी, पर हेमू की एक आँख में तीर लगा जो उसके सिर को छेदकर दूसरी ओर निकल गया। हेमू के दल में भगदड़ मच गई। हेमू का महावत 'हवाई '(हाथी) को भगाकर ले जा रहा था, पर हेमू पकड़ा गया। वह अकबर के सामने लाया गया तो बैरम ख़ाँ ने अकबर से कहा कि हजरत इसे मारकर 'गाजी' की उपाधि धारण करें, पर अकबर राज़ी नहीं हुआ, हेमू को और लोगों ने मार डाला।

हिन्दू राज्य का विफल प्रयास

  • हेमचंद्र पठानों के राज्य को व्यवस्थित कर रहा था; किंतु वह शेरशाह के वंशजों और पठान सरदारों की फूट से परेशान हो गया। उसने मुग़लों को हराकर दिल्ली पर स्वतंत्र हिन्दू राज्य की स्थापना करने का निश्चय किया।
  • वह सन 1555 में 'विक्रमादित्य' की पदवी धारण कर दिल्ली के राजसिंहासन पर बैठ गया।
  • राय पिथौरा (पृथ्वीराज) और जयचंद्र जैसे हिन्दू राजाओं की परंपरा को वह आगे बढ़ाना चाहता था। उसका उद्देश्य मुग़ल शक्ति को समाप्त किये बिना संभव नहीं था। उसने मुग़ल सरदारों से युद्ध किये और उन्हें दिल्ली से खदेड़ पर पंजाब की ओर भगा दिया। मुग़ल सरदार जाने को तैयार नहीं थे। वे एक बार फिर बड़ा युद्ध कर अंतिम निर्णय करना चाहते थे। मुग़ल सेना ने खानजमाँ अलीकुलीखां और बैरमख़ाँ के नेतृत्व में पानीपत में युद्ध करने का निश्चय किया। हेमचंद्र भी सेना सहित लड़ने पहुँच गया। दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ। हेमचंद्र हाथी पर बैठा सेना का संचालन कर रहा था। उसी समय एक तीर उसकी आँख में लगा। वह उस अवस्था में भी युद्ध करता रहा; बहुत ख़ून बह जाने से वह बेहोश होकर हाथी के हौदे में गिर गया। हेमचंद्र के गिरते ही सेना तितर-बितर होने लगी। मुग़लों ने ज़ोर का हमला कर शत्रु सेना को पराजित कर दिया। बेहोश हेमचंद्र को मुग़लों ने बंदी बना लिया।
  • उसे मुग़लों के मनोनीत बालक बादशाह अकबर के समक्ष उपस्थित किया गया। मुग़ल सरदार बैरमख़ाँ ने अकबर से कहा कि वह उसे अपने हाथ से मार दे। अकबर ने उस पर वार नहीं किया। बैरमखां ने उसका अंत कर दिया।
  • इस समय अकबर 13-14 वर्ष का बालक था, उस समय तक उसमें इतनी समझ नहीं थी कि हेमचंद्र को अपने पक्ष में करने की कोशिश करता।
  • हेमचंद्र की पराजय 6 नवंबर सन 1556 में पानीपत के मैदान में हुई थी। उसी दिन स्वतंत्र हिन्दू राज्य का सपना टूट बालक अकबर के नेतृत्व में मुग़लों का शासन जम गया।